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UP की राजनीति में छोटे दलों का है काफी जलवा, खुद को किंग मेकर तरह करते हैं पेश, बार-बार रंग बदलने से परेशान हैं बड़े दल

Lok Sabha Elections 2024: 2024 के लोकसभा चुनाव में यह दावा कर रहे हैं कि उनके बिना तो कोई चुनाव जीत ही नहीं सकता। इस चुनाव में यह कितना असर डालेंगे और अंत में किसके साथ खड़े हो जाएंगे यह सवाल भी बड़ा है। कुछ तो है कि ये दल बड़े दलों को चुनावी वैतरणी पार कराने की गारंटी लेते हैं। क्या है उनकी ताकत जो बड़े से बड़े दल इनसे समझौता करने को विवश हो जाते हैं। वो भी उनकी कुछ शर्तों के अनुसार

Brijesh Shuklaअपडेटेड Feb 11, 2024 पर 6:15 AM
UP की राजनीति में छोटे दलों का है काफी जलवा, खुद को किंग मेकर तरह करते हैं पेश, बार-बार रंग बदलने से परेशान हैं बड़े दल
Lok Sabha Elections 2024:UP की राजनीति में छोटे दलों का है काफी जलवा, खुद को किंग मेकर तरह करते हैं पेश

Lok Sabha Elections 2024: छोटे दल 2024 के लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections) में क्या करेंगे? यह तो सभी जानना चाहते हैं, लेकिन अजब-गजब कहानी है उत्तर प्रदेश (UP) के कई छोटे दलों की। हर बड़ा दल इन दलों से चुनावी गठबंधन करने को लालाइत है, लेकिन इनके बार-बार रंग बदलने से परेशान भी। 2024 के लोकसभा चुनाव में यह दावा कर रहे हैं कि उनके बिना तो कोई चुनाव जीत ही नहीं सकता। इस चुनाव में यह कितना असर डालेंगे और अंत में किसके साथ खड़े हो जाएंगे यह सवाल भी बड़ा है। कुछ तो है कि ये दल बड़े दलों को चुनावी वैतरणी पार कराने की गारंटी लेते हैं। क्या है उनकी ताकत जो बड़े से बड़े दल इनसे समझौता करने को विवश हो जाते हैं। वो भी उनकी कुछ शर्तों के अनुसार।

असल मे बहुजन समाज पार्टी का प्रभाव बढ़ने के बाद कई नेताओं को यह लग गया की एक जाति के बड़े वर्ग की एकजुटता किसी भी नेता की किस्मत बदल सकती है। ओमप्रकाश राजभर ने राजभर समुदाय को एकजुट करने का प्रयास किया और संजय निषाद ने निषादों को। डॉक्टर अयूब ने मुस्लिम वर्ग का समर्थन हासिल करने का प्रयास किया और महान दल के केशव देव मौर्य ने मौर्य, कश्यप आदि अति पिछड़ी जातियों को। इस तरह के कई प्रयास हुए। कुछ सफल हुए और बड़ी संख्या में जाति आधारित राजनीतिक दल समय के साथ विलीन हो गए।

विडंबना यह है की इन सभी नेताओं का प्रभाव दो तीन जिलों तक ही सीमित है। यह अलग बात है कि यह छोटे दल बड़े दलों को यह एहसास कराते रहते हैं कि कोई इनकी उपेक्षा करने की हिम्मत न करे। समाजवादी पार्टी के एक नेता कहते हैं कि गठबंधन करना मजबूरी होती है, लेकिन यह छोटे दल बहुत ही बेवफा है। हर राजनीतिक दल ने इन छोटे-छोटे दलों से चुनावी समझौता किया। लेकिन कई तो ऐसे हैं, जहां लाभ देखते हैं, उसी के साथ हो लेते हैं। यह पता करना मुश्किल है कि अगले चुनाव में यह किसके साथ हों। यह राजनीति की विडंबना ही है कि बड़े-बड़े दल इन छोटे दलों की चिरौरी करने को मजबूर हो जाते हैं। अब किसके साथ चुनाव में जाएंगे इसका पता इन्हें स्वयं नहीं होता।

अब 2024 के लोकसभा चुनाव में यह दल किसके साथ है। यह तो साफ होता जा रहा है कि ज्यादातर बीजेपी के साथ जाना चाहते हैं। लेकिन इनका यह दावा सबको परेशान किए हैं कि अगर कोई जीतेगा, तो वो उनकी कृपा से ही। 2022 के विधानसभा चुनाव में लगभग कई छोटे दल समाजवादी पार्टी के साथ थे और ज्यों ही सपा चुनाव हारी, तो ज्यादातर अपना नया ठिकाना खोजने लगे।

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