जस्टिस कृष्ण दीक्षित की अगुवाई वाली कर्नाटक हाई कोर्ट (Karnataka HC) की बेंच ने रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी (RERA) अधिनियम की धारा 22 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली एक रिट याचिका मंजूर कर ली है। बेंच ने 31 जुलाई, 2023 को राज्य सरकार और कर्नाटक RERA को नोटिस भी भेजा था। RERA कानून के सेक्शन 22 में अथॉरिटी के चेयरपर्सन और सदस्यों की योग्यता के बारे में बताया गया है।
2023 की WP नंबर 15645 दायर करने वाले वकील समीर शर्मा के अनुसार, कर्नाटक RERA के सदस्य जुडिशियल बैकग्राउंट से नहीं है।
RERA एक्ट का सेक्शन 22 क्या कहता है?
सेक्शन के अनुसार, RERA के अध्यक्ष और दूसरे सदस्यों की नियुक्ति चयन समिति की सिफारिशों पर उपयुक्त सरकार की तरफ से की जाएगी। समिति में हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस या उनके नामित व्यक्ति, आवास से जुड़े विभाग के सचिव और कानून सचिव शामिल होते हैं।
भले ही इस सेक्शन में RERA के सदस्यों की योग्यता को लेकर कुछ खास नहीं कहा गया हो, लेकिन ये तय करता है कि अधिकारियों को इंफ्रास्ट्रक्चर, हाउसिंग, रियल एस्टेट विकास और शहरी विकास सहित अलग-अलग विभागों में पर्याप्त ज्ञान और पेशेवर अनुभव होना चाहिए। इसमें सदस्यों के लिए कम से कम 15 साल और अध्यक्ष के लिए कम से कम 20 साल के अनुभाव की मांग की गई है।
याचिका में कहा गया है कि धारा 22 की हाई कोर्ट की तरफ से जांच की जानी चाहिए है, क्योंकि यह RERA में एक भी कानूनी/न्यायिक सदस्य की मौजूदगी को निर्धारित नहीं करता है।
सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट की तऱफ से ये माना गया है कि जब न्यायिक कामों के निर्वहन की बात आती है, तो न्यायिक सदस्य की उपस्थिति और भागीदारी अनिवार्य है। इसमें कहा गया है कि RERA अधिनियम की धारा 22 के तहत ऐसी कोई जरूरत नहीं है।
याचिका में कहा गया है कि धारा 22 को रद्द किया जाए, क्योंकि चयन समिति के जरिए RERA में सदस्यों की नियुक्ति का तरीका न्यायिक स्वतंत्रता, संविधान के मूल सिद्धांत को कमजोर करता है।