भारत में जारी कर व्यवस्था के अनुसार नागरिकों के वर्ग को इनकम टैक्स देना होता है। नए टैक्स रिजीम के तहत जिनकी सालाना आय 7 लाख रुपये से ज्यादा है उनको टैक्स देना पड़ता है। वहीं ओल्ड टैक्स रिजीम में यह सीमा 5 लाख रुपये तक है। इनकम टैक्स बचाने के लिए लोग कई सारे निवेश साधनों में इनवेस्ट करते हैं। इन्ही इनवेस्टमेंट स्कीम में से एक है ELSS म्यूचुअल फंड यानी इक्विटी-लिंक्ड सेविंग स्कीम। यह एक म्यूचुअल फंड स्कीम है तो असेट मैनेजमेंट कंपनियों के शेयर में पैसा लगाती है।
ELSS स्कीम एक म्यूचुअल फंड बचत योजना है जिसके जरिए कोई भी शेयरों में निवेश कर सकता है। कई सारे म्यूचुअल फंड हाउस ELSS मे इनवेस्ट की पेशकश करते हैं। इनमें से कुछ योजनाएं आईडीएफसी टैक्स एडवांटेज, केनरा रोबेको इक्विटी टैक्स सेवर, मिराए एसेट टैक्स सेवर फंड और डीएसपी टैक्स सेवर हैं।
तीन साल के लिए जमा करना होता है पैसा
ELSS स्कीम में आपको तीन साल के पैसा जमा करना होता है। इस स्कीम में लॉकइन पीरियड तीन साल का है इससे पहले निवेशक अपना पैसा नहीं निकाल सकते हैं। इसके अलावा म्यूचुअल फंड यूनिट्स को बेचने के लिए यूनिट एलोकेशन की तारीख से तीन साल पूरे करने पड़ते हैं। इनवेस्टर्स को एलोकेट की गई यूनिट्स की संख्या इनवेस्ट किए गए पैसे और NAV से तय की जाती है।
ELSS देती है टैक्स सेविंग का फायदा
ELSS की सबसे बड़ी खासियत है कि इसमें आपको टैक्स में बचत करने का मौका मिलता है। आयकर अधिनियम 1961 की धारा 80सी के तहत 1.5 लाख रुपये तक की कुल कटौती का लाभ मिलता है। यानी अगर आप इस स्कीम में 50 हजार रुपये लगाते हैं तो इसे टैक्सेबल इनकम से काट लिया जाएगा। ELSS स्कीम में सालाना 46,800 रुपये तक बचाए जा सकते हैं।
चूंकी ELSS के जरिए निवेशकों का पैसा बाजार में इनवेस्ट किया जाता है जिस वजह से इसमें जोखिम भी होता है। हालांकि अगर बाजार ऊपर की और जाता है तो आपको भी उसी हिसाब से फायदा होगा। वहीं बाजार में गिरावट से आपके पैसों का नुकसान होगा।