RBI ने 6 अप्रैल की अपनी मॉनेटरी पॉलिसी (Monetary Policy) में रेपो रेट नहीं बढ़ाने का फैसला किया था। केंद्रीय बैंक पिछले साल मई से इंटरेस्ट रेट (Repo Rate) लगातार बढ़ा रहा था। सवाल यह है कि क्या इंटेरस्ट रेट वृद्धि पर आरबीआई का यह ब्रेक आने वाली मॉनेटरी पॉलिसी में भी लगा रहेगा? इस पर बहस जारी है। एक्सपर्ट्स की इस बारे में अलग-अलग राय है। लेकिन, ज्यादातर एक्सपर्ट्स का कहना है कि आगे इंटरेस्ट रेट में बढ़ोतरी का आरबीआई का फैसला कई चीजों पर निर्भर करेगा। इनमें इनफ्लेशन (Inflation) सबसे अहम होगा। आइए हम ड्यूरेशन फंड्स और ड्यूरेशन कॉल के कॉन्सेप्ट को समझने की कोशिश करते हैं। हम यह भी देखेंगे कि इंटरेस्ट रेट्स में बदलाव का इन पर किस तरह असर पड़ता है।
इंटरेस्ट रेट में उतार-चढ़ाव का डेट फंड्स पर असर
फिक्स्ड-इनकम इनवेस्टमेंट में ड्यूरेशन के कई मतलब होते हैं। किसी बॉन्ड की कीमत या बॉन्ड फंड की एनएवी में होने वाले उतार-चढ़ाव का संबंध इंटरेस्ट रेट में होने वाले बदलाव से होता है। इस उतार-चढ़ाव पर बॉन्ड या बॉन्ड फंड के ड्यूरेशन का भी असर पड़ता है। बॉन्ड का मैच्योरिटी पीरियड जितना लंबा होगा या बॉन्ड फंड का ड्यूरेशन जितना बड़ा होगा उनकी कीमत या एनएवी में उतार-चढ़ाव की उतनी ज्यादा संभावन होगी। इसी तरह मैच्योरिटी पीरियड या ड्यूरेशन कम होने पर उतार-चढ़ाव की संभावना भी कम होगी।
इंटरेस्ट रेट्स में कमी आने पर बॉन्ड्स की कीमतें चढ़ती हैं। ऐसे में लंबी अवधि वाले बॉन्ड को छोटी अवधि वाले बॉन्ड के मुकाबले ज्यादा फायदा होता है। दूसरी तरफ, जब इंटरेस्ट रेट्स बढ़ रहा होता है तो बॉन्ड की कीमत घटती है। इसका खराब असर लंबी अवधि वाले बॉन्ड्स की कीमतों पर पड़ता है। इस तरह फाइनेंशियस वर्ल्ड में ड्यूरेशन का मतलब लॉन्ग ड्यूरेशन होता है। इंटरेस्ट रेट में कमी आने की उम्मीद होने पर इनकी मांग बढ़ जाती है। इसकी वजह यह है कि छोटी अवधि वाले बॉन्ड के मुकाबले बड़ी अवधि वाले बॉन्ड को इसका ज्यादा फायदा मिलता है।
ड्यूरेशन डेट फंड कहां इनवेस्ट करता है
ड्यूरेशन फंड ऐसा डेट फंड है जिसके पोर्टफोलियो में लंबे समय में मैच्योर होने वाल पोर्टफोलियो शामिल होते हैं। हालांकि, लंबे समय की कोई एक परिभाषा नहीं है। आम तौर पर एक साल से कम मैच्योरिटी वाले इंस्ट्रूमेंट को मनी मार्केट, एक से तीन साल मैच्योरिटी को शॉर्ट मैच्योरिटी, 5 से 6 साल की मैच्योरिटी को मीडियम मैच्योरिटी और 10 साल एवं इससे ज्यादा मैच्योरिटी को लॉन्ग मैच्योरिटी माना जाता है।
जब इंटरेस्ट रेट घट रहा होता है तो लंबी मैच्योरिटी वाले बॉन्ड्स का प्रदर्शन दूसरों के मुकाबले बेहतर होता है। लेकिन, इंटरेस्ट रेट्स बढ़ने की स्थिति में इनका प्रदर्शन दूसरों के मुकाबले कमजोर होता है। आम तौर पर लॉन्ड ड्यूरेशन फंड में निवेश करने के लिए आपके निवेश की अवधि लंबी होनी चाहिए।
ड्यूरेशन कॉल का मतलब यह अनुमान है कि आने वाले दिनों में इंटरेस्ट रेट्स में कमी आएगी। ऐसा तब होता है जब RBI रेट्स घटाता है या मार्केट को रेट में कमी आने का अंदाजा होता है। अभी जो मार्केट की स्थिति है, उसमें एक वर्ग का यह मानना है कि RBI रेपो रेट में कमी करेगा। ऐसा छह महीने या एक साल में देखने को मिल सकता है। अगर आप ड्यूरेशन कॉल ले रहे हैं तो आपको निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना होगा:
रेट कब घटेगा, कितना घटेगा इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। अभी रेपो रेट 6.5 फीसदी है। इसलिए इसमें और कमी आने की सीमित संभावना दिखती है।
एक पॉपुलर इंडेक्स नहीं होने के चलते हम रेफरेंस प्वाइंट के लिए 10 साल मैच्योरिटी वाले सरकारी बॉन्ड को लेते हैं। रेपो रेट 6.5 फीसदी होने पर 10 साल के सरकारी बॉन्ड की यील्ड करीब 7.2 फीसदी है। दोनों के बीच का अंतर करीब 70 बेसिस प्वाइंट्स है। पिछले दो दशक में यह अंतर औसतन 1 फीसदी रहा है। इसलिए मार्केट में रेट में कमी की उम्मीद के बावजूद मार्केट में ज्यादा तेजी की उम्मीद नहीं दिखती।