Lok Sabha Elections 2024: कान्हा की नगरी मथुरा में BJP की होगी राधे-राधे? सपा से गठबंधन में कांग्रेस ने खुद मांगी ये सीट, क्या कर पाएगी मुकाबला
Lok Sabha Elections 2024: राज्य की 80 सीटो में से जिन 10 सीटों में सबसे दिलचस्प महासमर होने जा रहा है, उनमें से एक मथुरा भी है। बीजेपी के इस गढ़ को तोड़ने के लिए विपक्षियों की तरफ से तमाम प्रयास किए गए, लेकिन सफल नहीं हुए। इस बार चुनाव में क्या होगा। क्या भारतीय जनता पार्टी का गढ़ टूट पाएगा? यह भाजपा के लिए सबसे प्रतिष्ठा की सीटों में से एक है।
Lok Sabha Elections 2024: राज्य की 80 सीटो में से जिन 10 सीटों में सबसे दिलचस्प महासमर होने जा रहा है, उनमें से एक मथुरा भी है
Lok Sabha Elections 2024: ब्रज का ऐसा कोई रज कण नहीं, जिसने श्री कृष्ण के चरणों का स्पर्श न किया हो। यहां प्रेम की धारा बहती है। रसखान ने कहा था- 'मानुष हो तो वही रसखान बसव ब्रज गोकुल गांव के ग्वालन' इसका मतलब है कि मनुष्य का जन्म मिले, तो ब्रज के गांव में ग्वाल बाल बनूं। यह ब्रज रज ही पूरी दुनिया के लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है। इसी मथुरा नगरी में कंस की जेल में श्री कृष्ण ने जन्म लिया। यही वो भूमि है, जहां महान संतों ने श्री कृष्ण की गाथा को गया। इसी धरती पर सूर ने बाल लीला का गायन किया। यह ऐसा धाम है, जहां पर लाखों लोग प्रतिदिन खिंचे चले आते हैं। यह वो तीर्थ है, जहां औपचारिकताओं का कोई स्थान नहीं है। श्री कृष्णा किसी के लिए सखा हैं। किसी के लिए पुत्र हैं। किसी के लिए पिता हैं। किसी के लिए पति हैं।
आज भी बृजवासी श्री कृष्ण के साथ मस्ती करते हैं। हंसी ठिठोली करते हैं। उनके लिए गीत गाते हैं। उन्हें रिझाते हैं। उन्हीं से प्रेम करते हैं। उन्हीं से झगड़ा करते हैं और उन्हें ही तमाम खरी खरी बातें भी सुना देते हैं। यहीं पर गिरिराज जी हैं, जिन्हें श्री कृष्ण का स्वरूप माना जाता है। जब श्री कृष्ण ने इंद्र की पूजा से मना किया, तो नाराज होकर इंद्र ने अतिब्रष्टि करवा दी। तब श्रीकृष्ण ने ब्रजवासियों को बचाने के लिए गिरिराज जी को अपनी उंगली पर उठा लिया था और गिरिराज धरण कहलाए।
यहां एक ओर प्रेम की धारा बहती है, वहीं राजनीति की धारा भी। यहीं से निकलकर भगवान श्री कृष्ण ने गुजरात जाकर द्वारका नगरी बसाई और राजनीति क्या है, यह दुनिया को बता दिया। आज एक बार फिर मथुरा में चुनावी समर का मैदान सज रहा है। चुनावी दांव पेंच शुरू हो गए हैं।
बीजेपी के इस गढ़ को तोड़ने के लिए विपक्षियों की तरफ से तमाम प्रयास किए गए, लेकिन सफल नहीं हुए। इस बार चुनाव में क्या होगा। क्या भारतीय जनता पार्टी का गढ़ टूट पाएगा? यह भाजपा के लिए सबसे प्रतिष्ठा की सीटों में से एक है।
राज्य की 80 सीटो में से जिन 10 सीटों में सबसे दिलचस्प महासमर होने जा रहा है, उनमें से एक मथुरा भी है। समाजवादी पार्टी से गठबंधन में कांग्रेस ने यह सीट अपने लिए मांग ली है। क्यों मांगी इसका जवाब किसी के पास नहीं है। क्योंकि न यह समाजवादी पार्टी की भूमि है और न ही अब कांग्रेस की।
प्रसिद्ध अभिनेत्री हेमा मालिनी यहां से सांसद हैं। वह श्री कृष्ण भक्त हैं, इसलिए उन्होंने वृंदावन में ही अपना आवास बना लिया है। हेमा मालिनी को मथुरा वृंदावन लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections 2024) में मैदान से उतरना भी बीजेपी के रणनीति का हिस्सा था।
क्या इस बार भी हेमा मालिनी दांव लगाएगी बीजेपी?
हेमा मालिनी का विवाह धर्मेंद्र से हुआ है और वह जाट हैं। हेमा मालिनी के चुनाव प्रचार के लिए पिछले चुनाव में धर्मेंद्र मथुरा आए थे। वह इस बार भी मथुरा वृंदावन लोकसभा सीट से ही बीजेपी का टिकट चाहती हैं। मथुरा वृंदावन लोकसभा सीट के चुनाव लड़ेंगी या नहीं ये बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व तय करेगा।
वैसे कांग्रेस भी अपनी अलग रणनीति तैयार कर रही है। अभी कांग्रेस ने प्रत्याशी का नाम घोषित नहीं किया, लेकिन तमाम नाम चर्चा में जरूर चल रहे हैं। सबसे पहला नाम प्रदीप माथुर का है, जो कई बार विधायक रहे और कांग्रेस विधानमंडल दल के नेता भी रहे हैं। आम लोगों के बीच उनकी लोकप्रियता भी है।
प्रदीप माथुर के साथ दिक्कत यही है कि वह हमेशा मथुरा विधानसभा क्षेत्र तक सीमित रहे। वैसे मथुरा में उनके नाम की चर्चा तो चल ही रही है और साथ में महेश पाठक का भी नाम है, जो पिछला चुनाव कांग्रेस के टिकट पर लड़े थे और हारे थे।
पिछले चुनाव में SP-BSP-RLD गठबंधन से इस सीट पर राष्ट्रीय लोक दल के टिकट पर कुंवर नरेंद्र सिंह मैदान में उतरे थे। तब उन्हे 3 लाख 77 हजार वोट मिले थे। जबकि हेमा मालिनी को 6 लाख 70 हजार वोट मिले थे। इस तरह वह लगभग 3 लाख वोटों से चुनाव जीती थीं। अब BSP के साथ कोई चुनावी गठजोड़ नहीं है। यहां मायावती का सजातीय मतदाता भी बहुत बड़ी संख्या में है, जो मायावती के कमजोर होने के बावजूद उन्हीं के साथ जुड़ा हुआ है।
एक बड़ा बदलाव हुआ
यही नहीं एक बड़ा बदलाव और हुआ है। मथुरा सीट पर जयंत चौधरी का भी बहुत प्रभाव है। वह 2009 में मथुरा से ही सांसद चुने गए थे, लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में जयंत चौधरी हेमा मालिनी से चुनाव हार गए। मथुरा में जाट मतदाता बड़ी संख्या में हैं और प्रभावी भी। इसके बावजूद 2014 के चुनाव में जयंत चौधरी चुनाव हार गए।
इस बार जयंत चौधरी बीजेपी के साथ हैं। एक और समीकरण बीजेपी के पक्ष में है। बीजेपी से चौधरी तेजवीर सिंह, जो मथुरा से तीन बार सांसद हुए उन्हें बीजेपी ने राज्यसभा भेज दिया है। तेजवीर सिंह जाट नेता हैं और मथुरा में उनका काफी प्रभाव है। वास्तव में तेजवीर के चेहरे को सामने कर बीजेपी ने उन सीटों पर अपनी पकड़ और मजबूत करना चाहती है, जो जाट बहुल हैं।
मांठ के ही चौधरी राजकुमार कहते हैं कि अब कहीं कोई शक-ओ-शुब्हा नहीं है। बीजेपी जिसे खड़ा कर देगी जाट उसी के साथ चला जाएगा। क्यों? इस सवाल के जवाब में वह बताते हैं कि राम मंदिर का जाटों पर गहरा असर है और चौधरी चरण सिंह के पोते व अजीत सिंह के बेटे जयंत चौधरी भी अब बीजेपी के साथ आ गए हैं । इसलिए किंतु परंतु की कोई गुंजाइश नहीं बची है और वैसे भी जाट मोदी के समर्थक हैं।
कांग्रेस किसके के बल पर BJP को देगी टक्कर?
अब एक तरफ दलित वोटों का नुकसान और दूसरी तरफ जाट वोटों का भी। फिर कांग्रेस किन वोट के बल पर बीजेपी प्रत्याशी को टक्कर देगी। क्या कांग्रेस बीजेपी को टक्कर दे पाएगी इसका जवाब वृंदावन के बृजेश मिश्रा देते हैं। वह कहते हैं कि जब कांग्रेस प्रत्याशी घोषित होगा, तब पता चलेगा कि किस रणनीति के चलते कांग्रेस ने यह सीट समाजवादी पार्टी से मांगी है।
वास्तव में इसके पीछे की एक अलग कहानी है। इस सीट पर समाजवादी पार्टी का कोई आधार नहीं है। मुस्लिम मतदाता इतनी बड़ी संख्या में नहीं है कि वो निर्णायक हो सके। यादव मतदाता भी यहां न के बराबर हैं। इसलिए अखिलेश के लिए भी यह सीट कांग्रेस को देना बहुत आसान था और सुविधाजनक भी।
कांग्रेस ने इस सीट से ही जुड़ी फतेहपुर सीकरी सीट भी ली है। वास्तव में समाजवादी पार्टी का अपना गढ़ मथुरा फतेहपुर सीकरी के बाद शुरू होता है। यानी फिरोजाबाद से सपा का मजबूत इलाका शुरू होता है, जो कानपुर देहात तक जाता है। इन सीटो पर यादव मतदाता नही है, इसलिए समाजवादी पार्टी को इन दोनों सीट पर सफलता कम ही मिली है। इन स्थितियों में यह दोनों देना ही सपा को फायदेमंद लगा।
हालांकि, बीजेपी के साथ भी यहां एक दिक्कत है। हेमा मालिनी दो बार चुनाव जीत चुकी हैं और उनके प्रति लोगों में कुछ नाराजगी भी है। यह अलग बात है कि उन्होंने यहां पर विकास कार्य कराए हैं और लोगों से जुड़ी भी रही हैं। हर मौके पर खड़ी भी रहीं, लेकिन उनके पास समय कम रहता है, ऐसी शिकायत करने वाले काफी लोग मिल जाएंगे। अब नाराजगी के बावजूद मतदाता क्या करेगा यह समय बताएगा, लेकिन बड़ी संख्या में मतदाता यह कहते हैं कि विकास कार्य हुए है और इसका असर भी दिख रहा है।