Lok Sabha Elections 2024: कोई राम सहारे, तो कोई नाम के सहारे... अयोध्या में सपा और BJP दोनों करना चाहती हैं प्रयोग, क्या होगा सफल?
Lok Sabha Elections 2024: राम मंदिर में हुए प्राण प्रतिष्ठा समारोह की गूंज अब भी पूरी दुनिया में है, लेकिन अब यह राजनीतिक जंग के लिए तैयार हो गया है। चुनावी महाभारत के लिए व्यापक तैयारियां चल रही हैं। चर्चा इस बात की है कि कोई भारी भरकम व्यक्तित्व बाहर से आकर यहां चुनाव लड़ेगा? लेकिन यह सब चर्चाएं भर हैं। अभी तो यह तय भी नहीं की कौन मैदान में उतरेगा?
Lok Sabha Elections 2024: भगवान राम के नगरी अयोध्या... खुद राम ने अयोध्या की प्रशंसा करते हुए कहा था- 'जन्म भूमि मम पुरी सुहावन'... मतलब मेरी यह जन्म भूमि अयोध्या बहुत सुंदर है
Lok Sabha Elections 2024: भगवान राम के नगरी अयोध्या... खुद राम ने अयोध्या (Ayodhya) की प्रशंसा करते हुए कहा था- 'जन्म भूमि मम पुरी सुहावन'... मतलब मेरी यह जन्म भूमि अयोध्या बहुत सुंदर है। उत्तर दिशा में बहती सरयू नदी ने कई सत्ताओं को बनते-बिगड़ते देखा। इस नगरी ने राम का वनवास भी देखा और राम का राजतिलक भी। अयोध्या की चर्चा इस समय पूरी दुनिया में है। इस भूमि का कुछ पुण्य प्रताप है कि इस धरती पर बड़े-बड़े महापुरुष पैदा हुए। राजा रघु और दिलीप जैसे महारथी पैदा हुए। यही नहीं यह डॉक्टर राम मनोहर लोहिया की धरती भी है। प्रसिद्ध समाजवादी आचार्य नरेंद्र देव इसी नगरी से चुनाव लड़ते थे। इसी अयोध्या से उठे राम मंदिर के शोर ने भारत की राजनीतिक में उथल मचा दिया। इस शोर में कई सरकार आई और गई भी।
राम मंदिर में हुए प्राण प्रतिष्ठा समारोह की गूंज अब भी पूरी दुनिया में है, लेकिन अब यह राजनीतिक जंग के लिए तैयार हो गया है। यह दिलचस्प है कि यहां समाजवादी भी जीते कम्युनिस्ट भी जीते। कांग्रेस भी जीती और अब यह केसरिया रंग में रंग गई है। वास्तव में 1989 के बाद इस नगरी का रंग और चरित्र दोनों बदल गए। कुछ अपवादों को छोड़कर यह बीजेपी के लिए मजबूत किला बन चुका है।
इस बार का चुनाव बाकी चुनाव से अलग है। अयोध्या के चुनाव पर पूरी दुनिया की निगाह होगी। क्या राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह में जो ज्वार उठा इसका असर चुनाव पर होगा भी या नहीं? क्या अखिलेश यादव के नए प्रयोग का असर कुछ पड़ेगा? खुद बीजेपी के लिए यह प्रतिष्ठा का सवाल है। क्या होगा अयोध्या में?
चुनावी महाभारत के लिए व्यापक तैयारियां चल रही हैं। चर्चा इस बात की है कि कोई भारी भरकम व्यक्तित्व बाहर से आकर यहां चुनाव लड़ेगा? लेकिन यह सब चर्चाएं भर हैं। अभी तो यह तय भी नहीं की कौन मैदान में उतरेगा? फिलहाल माहौल बीजेपी के पक्ष में दिखता है, लेकिन समाजवादी पार्टी ने एक बड़ा दांव चल दिया है। फैजाबाद के विधायक और पूर्व मंत्री अवधेश प्रसाद को सपा ने अपना प्रत्याशी बना दिया है।
कौन हैं अवधेश प्रसाद?
अयोध्या के मिल्कीपुर क्षेत्र के विधायक अवधेश प्रसाद दलित नेता हैं। वह पहले फैजाबाद की सोहावल विधानसभा सीट और फिर उसके मिल्कीपुर क्षेत्र से नौ बार विधायक चुने गए। उनका अपना जनाधार भी है। इस बार समाजवादी पार्टी ने आनंद सेन यादव का टिकट काटकर ही अवधेश प्रसाद को टिकट दिया।
आनंद सेन यादव का इस इलाके में काफी प्रभाव है। उनके पिता मित्र सेन यादव कई बार विधायक और दो बार सांसद भी रहे। वह कम्युनिस्ट पार्टी के बड़े नेता थे। लेकिन बाद में समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए थे। उनकी क्षेत्र में गहरी पकड़ थी। मित्र सेन की मृत्यु के बाद आनंद सेन यादव यहां से सपा की टिकट पर मैदान में उतरे थे, लेकिन बीजेपी के लल्लू सिंह ने उन्हें हरा दिया था। फिर भी आनंद सेन ने बहुत कड़ी टक्कर दी।
2019 के लोकसभा चुनाव में लल्लू सिंह को पांच लाख 20,000 और आनंद सेन को पौने पांच लाख वोट मिले। अब आनंद सेन का टिकट काटने के पीछे क्या कारण है? इसको लेकर तमाम चर्चाएं हैं। यह नफा का सौदा होगा या नुकसान का। यह अभी तय नहीं, लेकिन समाजवादी पार्टी को लगता है कि यादव वोट तो उन्हें मिलेगा ही अवधेश प्रसाद के मैदान में रहने से दलित वोट भी उन्हें मिल जाएगा।
यादव मतदाता बिगाड़ भी सकते हैं खेल?
फैजाबाद में मुस्लिम मतदाता भी बड़ी संख्या में हैं। यह भी पार्टी के पक्ष में जाएगा, लेकिन अगर यादव मतदाताओं ने रुख बदला तो सपा को नुकसान भी हो सकता है। यादव मतदाता इस बात से नाराज हैं कि आनंद सेन यादव का टिकट क्यों काट दिया गया। राम जन्म भूमि के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में अखिलेश यादव के न आने से भी सपा में नाराजगी है। इसलिए इस बात की चर्चा चल रही है कि समाजवादी पार्टी की तरफ से आनंद सेन यादव का टिकट काटने का क्या असर होगा।
अयोध्या के ही रहने वाले रुपेश यादव कहते हैं कि आनंद सेन बड़े नेता हैं। उनके पिता मित्र सेन भी बहुत बड़े नेता थे। अखिलेश ने आनंद का टिकट काटकर गलत किया है और वह साइकिल को वोट नहीं देंगे। कोई कुछ भी कहे, लेकिन इतना साफ है कि अखिलेश का निर्णय उनके खिलाफ भी जा सकता है।
अयोध्या के ही एक पत्रकार रघुवर शरण कहते हैं कि आनंद सेन का असर है, इसलिए समाजवादी पार्टी के आधार वोट पर थोड़ा बिखराव जरूर होगा। वास्तव में अयोध्या सीट समाजवादी पार्टी के लिए इतनी आसान नहीं है। यह अलग बात है कि कभी यह कांग्रेस का गढ़ हुआ करती थी। अयोध्या विधानसभा से कांग्रेस के प्रत्याशी बाबा राघवदास ने प्रसिद्ध समाजवादी आचार्य नरेंद्र देव को चुनाव हरा दिया था। इसके बाद से कांग्रेस पार्टी यहां लगातार चुनाव जीतती रही।
कांग्रेस, सपा और फिर बीजेपी के हाथों में कैसे गई अयोध्या सीट
1971 तक कांग्रेस जीतती रही, लेकिन 1977 में पहली बार कांग्रेस का यह किला ढहा और अनंतराम जायसवाल जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव जीत गए। साल 80 में कांग्रेस फिर जीत गई। और 1984 में निर्मल खत्री कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते, लेकिन इसके बाद से कांग्रेस के लिए यह सीट और भी मुश्किल हो गई।
1989 में मित्र सेन यादव चुनाव जीत गए, लेकिन इसी बीच राम मंदिर आंदोलन चला, तो बीजेपी ने इस सीट पर कब्जा कर लिया और विनय कटियार लगातार दो चुनाव जीत गए। वास्तव में इस सीट पर राम मंदिर आंदोलन का असर जरूर पड़ा, लेकिन जातीय गणित फिर भी हावी रही।
इस क्षेत्र में यादव मतदाता भी बड़ी संख्या में है। लेकिन अतिपिछड़े की संख्या भी बहुत है। इसी लिए पहले कम्युनिस्ट पार्टी और बाद में सपा मजबूत रही। लेकिन 2014 के बाद यहां पर मोदी का प्रभाव भी दिखा और कभी अयोध्या से विधायक रहे लल्लू सिंह को लोकसभा का टिकट दिया गया। वह 2014 और 2019 दोनों चुनाव जीत गए।
इस बार टिकट के बदलाव की चर्चा है। सूत्रों के अनुसार पार्टी लल्लू सिंह पर दांव नहीं लगाना चाहती और कोई नया प्रयोग करने जा रही है। संघ परिवार इस बात पर विचार कर कर रहा है कि आखिर किसको टिकट दिया जाए। टिकट किसी को भी मिले, लेकिन यहां की लड़ाई बहुत रोचक होगी।