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Chhattisgarh Elections 2023 : मतदाता घोषणापत्र को गंभीरता से लेते रहे हैं, BJP-Congress में किसका पलड़ा भारी?

छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावों में चुनावी घोषणापत्र का बहुत महत्व रहा है। 2013 और 2018 के चुनावों में ऐसा देखा जा चुका है। अब बारी 2023 के विधानसभा चुनावों की है। 2018 में Congress विपक्ष में थी। तब पार्टी ने ऐसा चुनावी घोषणापत्र तैयार किया था, जिसमें उन सभी बातों का ध्यान रखा गया था जो राज्य के विकास में बाधक थीं। तब टीएस सिंह देव की अगुवाई में एक कमेटी बनाई गई। तब देव नेता विपक्ष थे। उन्होंने सरगुजा से लेकर बस्तर तक राज्य का व्यापक दौरा किया था। हर वर्ग के लोगों से मुलाकात की थी

MoneyControl Newsअपडेटेड Nov 10, 2023 पर 1:07 PM
Chhattisgarh Elections 2023 : मतदाता घोषणापत्र को गंभीरता से लेते रहे हैं, BJP-Congress में किसका पलड़ा भारी?
छत्तीसगढ़ में पहले चरण के चुनाव में 76.47 फीसदी मतदान हुआ। दूसरे चरण की वोटिंग 17 नवंबर को है।

हर्ष दूबे

छत्तीसगढ़ में पहले चरण के चुनाव में 76.47 फीसदी मतदान हुआ। दूसरे चरण की वोटिंग 17 नवंबर को है। इस राज्य में विधानसभा चुनावों में चुनावी घोषणापत्र का बहुत महत्व रहा है। 2013 और 2018 के चुनावों में ऐसा देखा जा चुका है। अब बारी 2023 के विधानसभा चुनावों की है। 2018 में Congress विपक्ष में थी। तब पार्टी ने ऐसा चुनावी घोषणापत्र तैयार किया था, जिसमें उन सभी बातों का ध्यान रखा गया था जो राज्य के विकास में बाधक थीं। तब टीएस सिंह देव की अगुवाई में एक कमेटी बनाई गई। तब देव नेता विपक्ष थे। उन्होंने सरगुजा से लेकर बस्तर तक राज्य का व्यापक दौरा किया था। हर वर्ग के लोगों से मुलाकात की थी। उनकी समस्याएं और जरूरतें समझने की कोशिश की थीं। उसके बाद कांग्रेस ने अपना घोषणापत्र जारी किया था। इसमें सरकारी नौकरियों में आउटसोर्सिंग खत्म करने, 2,500 रुपये प्रति क्विंटल की दर से धान की खरीद और संविदा पर काम कर रहे लोगों की नौकरियां पक्की करने का वादा था। राज्य में शराब पर रोक लगाने की बात कही गई थी। इसमें महिलाओं, युवाओं और बिजनेस समुदाय के लिए कई बातें शामिल थीं।

अधूरे वादों की चुकानी पड़ी बड़ी कीमत

BJP ने 2013 के चुनावों में कई वादे किए थे। इनमें से कई वादे अधूरे रह गए। 2018 के चुनावों में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा। पार्टी मुश्किल से 15 सीटे जीत सकी। पिछले विधानसभा चुनावों ने बता दिया कि चुनावी वादों को पूरा नहीं करना महंगा साबित हो सकता है। इससे यह भी साफ हो गया कि मतदाता की नजरें इस बात पर होती हैं कि राजनीतिक दल ने जो वादे किए थे उन्हें पूरे किए या नहीं। बीजेपी ने 2013 में गरीबी खत्म करने का वादा किया था। उसने 1 रुपये प्रति किलो चावल, सौर सुजला योजना और स्मार्ट कार्ड के जरिए हेल्थ कार्ड जैसी स्कीमें शुरू करने की बात कही थी। कॉलेज जाने वाले स्टूडेंट्स के लिए फ्री लैपटॉप और टैबलेट देने के भी वादे किए गए थे।

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