हर्ष दूबे
हर्ष दूबे
छत्तीसगढ़ में पहले चरण के चुनाव में 76.47 फीसदी मतदान हुआ। दूसरे चरण की वोटिंग 17 नवंबर को है। इस राज्य में विधानसभा चुनावों में चुनावी घोषणापत्र का बहुत महत्व रहा है। 2013 और 2018 के चुनावों में ऐसा देखा जा चुका है। अब बारी 2023 के विधानसभा चुनावों की है। 2018 में Congress विपक्ष में थी। तब पार्टी ने ऐसा चुनावी घोषणापत्र तैयार किया था, जिसमें उन सभी बातों का ध्यान रखा गया था जो राज्य के विकास में बाधक थीं। तब टीएस सिंह देव की अगुवाई में एक कमेटी बनाई गई। तब देव नेता विपक्ष थे। उन्होंने सरगुजा से लेकर बस्तर तक राज्य का व्यापक दौरा किया था। हर वर्ग के लोगों से मुलाकात की थी। उनकी समस्याएं और जरूरतें समझने की कोशिश की थीं। उसके बाद कांग्रेस ने अपना घोषणापत्र जारी किया था। इसमें सरकारी नौकरियों में आउटसोर्सिंग खत्म करने, 2,500 रुपये प्रति क्विंटल की दर से धान की खरीद और संविदा पर काम कर रहे लोगों की नौकरियां पक्की करने का वादा था। राज्य में शराब पर रोक लगाने की बात कही गई थी। इसमें महिलाओं, युवाओं और बिजनेस समुदाय के लिए कई बातें शामिल थीं।
अधूरे वादों की चुकानी पड़ी बड़ी कीमत
BJP ने 2013 के चुनावों में कई वादे किए थे। इनमें से कई वादे अधूरे रह गए। 2018 के चुनावों में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा। पार्टी मुश्किल से 15 सीटे जीत सकी। पिछले विधानसभा चुनावों ने बता दिया कि चुनावी वादों को पूरा नहीं करना महंगा साबित हो सकता है। इससे यह भी साफ हो गया कि मतदाता की नजरें इस बात पर होती हैं कि राजनीतिक दल ने जो वादे किए थे उन्हें पूरे किए या नहीं। बीजेपी ने 2013 में गरीबी खत्म करने का वादा किया था। उसने 1 रुपये प्रति किलो चावल, सौर सुजला योजना और स्मार्ट कार्ड के जरिए हेल्थ कार्ड जैसी स्कीमें शुरू करने की बात कही थी। कॉलेज जाने वाले स्टूडेंट्स के लिए फ्री लैपटॉप और टैबलेट देने के भी वादे किए गए थे।
नौकरियों से जुड़े वादों पर खास नजर
इन वादों को पूरा करने में सरकार कामयाब रही, लेकिन लोगों को सरकारी नौकरियां देने और प्राइवेट कंपनियों और इंडस्ट्रीज में स्थानीय युवाओं के लिए 90 फीसदी रोजगार के उपाय नहीं करना भारी पड़ा। 2013 से 2018 के दौरान सरकारी नौकरियों में आउटसोर्सिंग बहुत ज्यादा रही, जिसका कड़ा विरोध राज्य के युवाओं ने किया। मौके का फायदा उठाते हुए कांग्रेस ने 2018 में नौकरियों में आउटसोर्सिंग खत्म करने का वादा किया। पिछले पांच साल में आउटसोर्सिंग में कमी आई है। लेकिन, रिक्रूटमेंट में भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं। कुछ मामलों में तो कोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ा है। अनियमित एंप्लॉयीज को रेगुलर करने का वादा कांग्रेस पूरा नहीं कर सकी है। 2023 के घोषणापत्र में कांग्रेस इस मसले पर मौन है।
भाजपा ने इस बार किए बड़े वादे
BJP ने 2013 में किसानों के लिए धान का सपोर्ट प्राइस बढ़ाकर 2,100 रुपये प्रति क्विंटल करने का वादा किया था। उसने प्रति क्विंटल 300 रुपये के बोनस का भी ऐलान किया था। लेकिन, अपने कार्यकाल के अंतिम दो साल भाजपा सरकार बोनस के वादे को पूरा करने में नाकाम रही। उधर, कांग्रेस ने 2018 में धान का सपोर्ट प्राइस 2,500 रुपये प्रति क्विंटल करने और फॉर्म लोन माफ करने का वादा किया। यह रणनीति सफल साबित हुई। इससे सबक लेते हुए भाजपा ने 2023 के घोषणापत्र में 3,100 रुपये प्रति क्विंटल की दर से धान खरीदने और प्रति क्विंटल 300 रुपये का बोनस देने का वाद किया है।
कांग्रेस का ट्रैक रिकॉर्ड बेहतर
भाजपा 2013 में किए गए ज्यादातर वादे पूरे करने में नाकाम रही। उधर, कांग्रेस ने 2018 के वादों को पूरा करने की कोशिश की है। ऐसे में 2023 के भाजपा के घोषणापत्र पर मतदाताओं को भरोसा करने में दिक्कत आ रही है। कुछ महीने पहले कांग्रेस मजबूत स्थिति में दिख रही थी। उसके मुकाबले भाजपा कमजोर लग रही थी। लेकिन, अब हालात बदल गए हैं। दोनों दलों में कांटे की टक्कर दिख रही है।
(हर्ष दूबे रायपुर के एक पॉलिटिकल कमेंटेटर हैं। यहां व्यक्त विचार उनके निजी विचार हैं। ये इस पब्लिकेशन की राय व्यक्त नहीं करते।)
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