Lok Sabha Elections 2024: इस लोकसभा चुनाव में क्या मायावती पर बरसेगा दलित वोट? पार्टियों के बीच में होगी जोरदार जंग!

Lok Sabha Elections 2024: आखिर वह कौन से कारण है की BSP को लेकर दलितों के बीच यह सवाल उठे हैं की उन्हें दलित वोट एकजुट होकर मिलेगा या नहीं। लखनऊ के पास सहपुरवा गांव के भरत, जो BSP के कैडर भी रहे हैं, कहते हैं कि कुछ ऐसी बातें हुईं, जिससे BSP के प्रति समर्थक मतदाताओं का मोह भंग हुआ

अपडेटेड Feb 19, 2024 पर 6:09 PM
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Lok Sabha Elections 2024: इस लोकसभा चुनाव में क्या मायावती पर बरसेगा दलित वोट?

Lok Sabha Elections 2024: दलित मतदाता (Dalit Voters) किसके साथ है? क्या कभी मायावती के साथ मजबूती से खड़ा दलित मतदाता, अब भी उनके साथ है या नहीं? यह सवाल उत्तर प्रदेश में हर किसी की जुबान पर है और यह जानने को बेताबी भी कि इस बार दलित मतदाता मायावती के साथ एकजुट होकर जाएगा या नहीं। मायावती के लिए यह सबसे मुश्किल चुनौती है कि वह अपने कैडर को एकजुट करें और एक बार फिर यह संदेश दें कि उनके साथ दलित मतदाता था और अभी है। आखिर यह सवाल उठे ही क्यों कि 2024 के लोकसभा चुनाव में दलित मतदाताओ का रुख कैसा रहेगा? 2012 तक दलित मतदाताओ का बड़ा वर्ग मजबूती से मायावती के साथ खड़ा था, लेकिन वह कौन से कारण हैं, जिसके कारण दलित मतदाताओं के रुख को लेकर किंतु-परंतु शब्द लग गए।

एक दौर था, जब दलित मतदाता कांग्रेस पार्टी के साथ था और कांग्रेस के बाकी नेताओं के साथ ही बाबू जगजीवन राम भी उसके दिल के करीब थे। बाबू जगजीवन राम प्रधानमंत्री पद के करीब भी पहुंचे, लेकिन प्रधानमंत्री नहीं बन सके। वक्त बदला बाबू जगजीवन राम के बाद काशीराम का उदय हुआ, जो आक्रामक राजनीति पर ज्यादा भरोसा करते थे और वह दलितों को उनके स्वाभिमान से जोड़ रहे थे। वह अपनी ताकत बता रहे थे। यह समझाने का प्रयास कर रहे थे कि भारत का शासक दलित वर्ग से होना चाहिए, तभी दलितों का उत्थान और कल्याण होगा।

उनके साथ मायावती जैसी नेता थी, जो आक्रामक भी थी और राजनीति के गुर भी समझती थीं। समय ने ऐसा पलटा खाया कि दलित मतदाता कांग्रेस से दूर हुआ और BSP उसके नजदीक आ गई। दलितों की पहली पसंद BSP ही बनी और काशीराम उनके महानायक।


मायावती में काशीराम वाला करिश्मा

अगर जमीनी तौर से देखा जाए, तो डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के बाद काशीराम ही ऐसे नायक हैं, जिनका दलितों के बीच बहुत सम्मान हुआ और उनकी आवाज में यह ताकत थी कि वह जिधर इशारा कर देते थे, दलित मतदाता उधर मुड़ जाता था।

मायावती में भी वह करिश्मा रहा कि वह जिधर चाहती थीं, दलित वोट उधर ही मुड़ जाता था, लेकिन लगभग 30 साल तक BSP के साथ जुड़ा रहने वाला दलित मतदाता थोड़ा, बिखराव की तरफ है और यह सवाल पूछे जाने लगे हैं कि 2024 में दलित किसके साथ जाएगा? जमीन और आंकड़ों से साफ हो जाता है कि दलित मतदाताओं में दो धाराएं हैं। एक मायावती का सजातीय जाटव मतदाता, जो अभी भी उन्ही के साथ मजबूती से खड़ा है और दूसरा बाकी दलित वर्ग, जिसका BSP से काफी ज्यादा मोहभंग हुआ है।

यही नहीं दलितों के बीच से भी नेतृत्व को लेकर सवाल उठे हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में चंद्रशेखर उर्फ रावण नए दलित नेता के रूप में उभरे हैं। यह अलग बात है कि दलितों के बीच अभी उनकी वैसी पकड़ नहीं है, जैसी मायावती की है।

दलित वोट एकजुट होकर मिलेगा या नहीं?

आखिर वह कौन से कारण है की BSP को लेकर दलितों के बीच यह सवाल उठे हैं की उन्हें दलित वोट एकजुट होकर मिलेगा या नहीं। लखनऊ के पास सहपुरवा गांव के भरत, जो BSP के कैडर भी रहे हैं, कहते हैं कि कुछ ऐसी बातें हुईं, जिससे BSP के प्रति समर्थक मतदाताओं का मोह भंग हुआ।

वह बताते हैं कि मायावती उत्तर प्रदेश की चार बार मुख्यमंत्री बनीं। 2007 में वह पूर्ण बहुमत से मुख्यमंत्री बनीं। इसके पहले बीजेपी की मदद से तीन बार मुख्यमंत्री बनी थी। तब वह आरोप लगा देती थीं कि बीजेपी उन्हें काम नहीं करने दे रही है। दलित और पिछड़ों का उत्थान नहीं करने दे रही है, लेकिन 2007 में जब उनकी सरकार पूर्ण बहुमत से थी, तब भी मायावती ने ऐसा कोई काम नहीं किया, जो दलितों के उत्थान के लिए यादगार हो। हर जगह लोगों ने देखा सत्ता से जुड़े वही मठाधीश बैठे हैं, जो पहले की सरकारों में भी थे।

कानपुर देहात के पुखरायां के रहने वाले एक दलित मतदाता श्याम लाल कहते हैं कि मायावती सरकार में ही सफाई कर्मचारियों की भर्ती हुई थी और उस भर्ती में बड़ी संख्या में पिछड़े और सवर्ण भर्ती हो गए, क्योंकि उनके पास पैसा था। जबकि दलित को कम जगह मिली। इससे दलितों का मोह भंग हो गया।

यह अलग बात है कि मायावती को बड़ी संख्या में सजातीय मतदाता तमाम बातें भूलकर वोट दे देते हैं, लेकिन 2014 के बाद BSP लगातार हारती रही, क्योंकि दलित मतदाताओं का समर्थन नरेंद्र मोदी को भी मिला।

'मोदी ने सबकी मदद की है'

हरदोई के संडीला के एक मतदाता रामखेलावन कहते हैं की मोदी ने सबकी मदद की है। इसलिए दलित वोटो में बिखराव आया। आखिर कांग्रेस की तरफ यह दलित मतदाता क्यों नहीं गया? इसका सिर्फ यही जवाब है कि BSP ने दलित मतदाताओं को यह बताया कि डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के साथ कांग्रेस ने ठीक व्यवहार नहीं किया। उन्हें कांग्रेस छोड़नी पड़ी। यही नहीं डॉक्टर अंबेडकर को हराने के लिए कांग्रेस के नेता एकजुट होकर लड़े। यह बात घर-घर पहुंचाई गई।

वास्तव में बहुजन समाज पार्टी ने दलित स्वाभिमान को आगे रखा और उसके निशाने पर कांग्रेस कहीं ज्यादा रही। नतीजा यह हुआ कि दलित मतदाता बिखराव के बावजूद BSP को कहीं ज्यादा समर्थन देता है और जिन लोगों को मोदी से सहायता मिल रही है, वह उनके साथ चले जाते हैं। स्थिति यह है 1985 तक दलित मतदाता कांग्रेस के साथ रहा, लेकिन धीरे-धीरे स्थितियां बदलती चली गईं।

साल 1988 में जब वीपी सिंह कांग्रेस से अलग होकर इलाहाबाद लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव के मैदान में उतरे, तो उनके विरोध में काशीराम भी मैदान में थे। उपचुनाव में काशीराम को लगभग 76 हजार वोट मिला और इस आंकड़े ने सभी को चौंका दिया।

साल 1989 के विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी चुनाव मैदान में उतरी और उसके 11 विधायक उत्तर प्रदेश विधानसभा पहुंच गए। पहली बार लोगों को लगा की उत्तर प्रदेश में BSP धीरे-धीरे पैर पसार रही है। 1993 में BSP ने मुलायम सिंह यादव से चुनावी समझौता कर लिया और जल्दी समझौते को खत्म कर मायावती ने बीजेपी की मदद से सरकार बना ली। यह एक बड़ा परिवर्तन था।

इसके बाद 1998-2002 में मायावती फिर बीजेपी की मदद से मुख्यमंत्री बन गई। 2007 में बहुजन समाज पार्टी अपनी ताकत के बल पर सत्ता में आ गई और दलित और पिछड़ों की निगाह मायावती पर बनी रही। स्थिति यह हो गई की आम लोगों को मायावती सरकार में बदलाव, वो बदलाव नहीं दिखा, जो होना चाहिए था।

कानून-व्यवस्था पर हुई मायावती की प्रशंसा

यह अलग बात है कि कानून-व्यवस्था पर उनकी प्रशंसा जरूर हुई, लेकिन लोगों ने देखा कि BSP सरकार में भी वही लोग सत्ता के केंद्र में बने हुए हैं, जो पहले भी बने थे। 2012 के बाद से आज तक बहुजन समाज पार्टी ने कोई चुनाव नहीं जीता है। उधर दलित वोटो का कुछ झुकाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ हो गया।

लखनऊ के ही एक दलित मतदाता हजारी कहते हैं कि मोदी से उन्हें लाभ हुआ है, इसलिए उन्हें वोट देने की इच्छा भी होती है। अब 2024 में एक बार फिर दलित वोटों को लेकर जोरदार जंग होने जा रही है। BSP यह दावा करती है कि दलित वोट उसकी तरफ ही आएगा, लेकिन कितना आएगा इसका जवाब किसी के पास नहीं है। यही लग रहा है की दलित वोटों का एक हिस्सा मायावती ले जाएंगी, लेकिन मोदी उस पर सेंध लगा रहे है। इस बार बीजेपी को भी दलितों का वोट मिलेगा।

Brijesh Shukla

Brijesh Shukla

First Published: Feb 19, 2024 6:08 PM

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