Lok Sabha Election 2024: बहुजन समाज पार्टी (BSP) सुप्रीमो मायावती (Mayawati) अप्रैल-मई में होने वाले लोकसभा चुनाव 2024 में अपनी पार्टी के प्रत्याशियों की सूची चुनाव से कई माह पहले जारी करती थी, लेकिन अभी तक BSP के एक भी प्रत्याशी का नाम सामने नहीं आया है। क्या BSP सुप्रीमो ने आगामी लोकसभा चुनाव के लिए टिकट वितरण की रणनीति पर बदलाव किया है। लेकिन चर्चा यह भी है कि चुनाव लड़ने वाले मजबूत प्रत्याशियों की तलाश हो रही है। पार्टी की लगातार हार के बाद BSP का वह रुतबा नहीं रह गया है, जो पहले हुआ करता था। मजबूत प्रत्याशियों का इंतजार हो रहा है। BSP समर्थक सूची के देर में जारी करने को रणनीति का हिस्सा बताते हैं।
BSP नेताओ को लगता है कि उनकी पार्टी चुनाव से बहुत पहले अपने पत्ते खोल देती थी, इसलिए विपक्षी सतर्क हो जाते थे। इसका विपरीत असर होता था और पार्टी की स्थिती कमजोर हो जाती थी। इसलिए BSP ने इस बार टिकट वितरण में कई बदलाव लाए। टिकट किसको मिलेगा इसकी भनक न लग पाए इसलिए लोकसभा क्षेत्र के प्रभारी तक नियुक्त नहीं किए गए। यह माना जाता था की जिसे लोकसभा क्षेत्र का प्रभारी बनाया गया है वही मैदान में उतरेगा।
वेट एंड वॉच की मुद्रा मायावती
हमेशा चुनाव से कई महीने पहले ही टिकट बांट देने वाली मायावती इस बार वेट एंड वॉच की मुद्रा पर हैं। वह अपने विपक्षियों के टिकट पर नजर रखे हुए हैं। इसके बाद ही वह अपने टिकट घोषित करेगी। माना जा रहा है की मार्च के पहले सप्ताह में या उसके पहले से टिकट घोषित करना शुरू कर देंगी। वैसे फिलहाल कुछ सीटों में दो-दो प्रत्याशियों का पैनल बन गया है और विपक्षी दलों के प्रत्याशियों के आधार पर ही सारे जाति समीकरण साधे जाएंगे। BSP को लगता है की टिकट वितरण में उनके विपक्षी वही गलती करेंगे जो पिछले चुनाव में बसपा से हो जाती थी।
BSP नेता जानते है कि अन्य दलों के कई मजबूत प्रत्याशियों को टिकट नहीं मिलेगा। एक तो गठबंधन की मजबूरी के कारण कई नेता टिकट से वंचित रह जाएंगे और दूसरा अन्य कारणो से भी कई प्रमुख नेताओं को टिकट से हाथ धोना पड़ सकता है। इसलिए ऐसे नेता बहुजन समाज पार्टी की का दरवाजा खटखटाएंगे। उस वक्त पार्टी के लिए यह बेहतर अवसर होगा कि वह कई प्रत्याशियों के नामों में जनाधार वाले लोगों को चुने और फिर इसका फायदा उठाएं।
वास्तव में BSP की पिछले चुनाव में यही रणनीति थी कि चुनाव से कई महीना पहले ही टिकट बांट दिए जाएं। सभी दलों को यह मालूम हो जाता था कि किस क्षेत्र में BSP का कौन सा प्रत्याशी चुनाव लड़ रहा है और उसकी जातीय समीकरण क्या है। इसी आधार पर विपक्षी दल अपने प्रत्याशियों का भी चयन करती थी। स्पष्ट है कि जब प्रतिद्वंदी के बारे में पहले से ही जानकारी हो तो चुनावी तैयारी कहीं बेहतर ढंग से हो सकती है।
क्या सफल होगा BSP का प्रयोग?
BSP के एक समर्थक कहती है कि बहुजन समाज की पार्टी की सुप्रीमो बहन मायावती इस बार टिकट वितरण में वही प्रयोग कर रही है जो कभी उनके विपक्षी किया करते थे। बीएसपी का प्रयोग कितना सफल होगा यह समय बताएगा। लेकिन इसके पीछे की मुख्य वजह टिकट के मजबूत दावेदारो का न होना भी बताया जा रहा है। उत्तर प्रदेश में 2012 के चुनाव से बहुजन समाज पार्टी लगातार कमजोरी हुई है। 2014 के लोकसभा चुनाव में उसे एक भी सीट नहीं मिली थी। यही नहीं 2017 के विधानसभा चुनाव में पार्टी की स्थिति बहुत कमजोर रही। 2019 में 10 सीट उसे इसलिए मिल गई, क्योंकि उसका सपा और रालोद से गठबंधन था।
टिकट के लिए नहीं है अब होड़
2022 के विधानसभा चुनाव में BSP को एक ही सीट मिली। अब BSP के टिकट के लिए उतनी मारामारी नहीं है जितनी पहले कभी हुआ करती थी। तमाम नेता और उभरते धनवानो की पहली पसंद BSP का टिकट था। BSP से निकले तमाम नेताओं ने यह आरोप लगाया की पार्टी का टिकट बहुत बड़ी कीमत पर मिलता है। सूत्रों के अनुसार, अब इस चुनाव में BSP की टिकट को लेकर वह मारामारी नहीं है जो कभी हुआ करती थी। BSP का टिकट पाने के लिए लोग अंतिम समय तक जोर लगाया करते थे। टिकट के लिए मायावती से कैसे मिला जाए इसको लेकर तमाम जुगाड़ लगाते थे।
अच्छे प्रत्याशियों की तलाश
यही नहीं पहली बार BSP लोकसभा प्रभारी भी नहीं बना रही है। अब पार्टी के सामने दिक्कत यह है उसे मजबूत उम्मीदवार कैसे मिले। यह बहुत आसान नहीं है। यह माना जाता था की प्रत्याशी का अपना सजातीय वोट और BSP का अपना वोट बैंक मिलकर किसी भी प्रत्याशी की स्थिति को मजबूत कर देता था। यह माना जाता था कि BSP का टिकट मिलने के बाद यदि चुनाव अच्छे ढंग से लड़ा जाए तो चुनाव जीता भी जा सकता है और प्रत्याशी चुनाव जीतते भी थे। लेकिन वह स्थिति अब नहीं बची। इसीलिए मायावती को इस बार मजबूत प्रत्याशियों का इंतजार भी करना पड़ रहा है।
यह इंतजार इसलिए भी करना पड़ा है, क्योंकि अन्य दलों के कई नेता किसी भी पार्टी से चुनाव लड़ने के लिए लालाइत रहते हैं। जब अपनी पार्टी से टिकट नहीं मिला तो वह दूसरी पार्टी से टिकट की लाइन में लग जाते हैं। अब अन्य दलों का टिकट बंटना शुरू हो चुका है। मायावती प्रतिदिन इस बात का आकलन करती हैं कि जो टिकट मांग रहा है वह चुनाव जीत पाएगा भी या नहीं। उसकी आर्थिक स्थिति कैसी है। चुनाव में पैसा खर्च कर पाएगा या नहीं।
BSP के लिए यह इसलिए जरूरी हो गया है, क्योंकि इस बार उसके टिकट पर उम्मीदवार नहीं जीते तो फिर आने वाला चुनाव बसपा को और पीछे धकेल सकता है। वैसे बीएसपी के सूत्र कहते हैं कि इस बार टिकट वितरण में बहुत ही छानबीन की जा रही है। प्रत्याशियों को जो असफलता हाथ लगी उसके पीछे खराब टिकट वितरण भी रहा। अब पार्टी इस मुद्दे पर कोई समझौता नहीं करना चाहती।