2023 में भारत में बड़ी संख्या में स्मॉल और मिड साइज की कंपनियों की लिस्टिग देखने को मिल सकती है। 2022 में कुछ बड़ी टेक्नोलॉजी कंपनियों के आईपीओ के फेल होने के बाद निवेशक सतर्क नजर आ रहे हैं। ऐसे में आईपीओ बाजार के लिहाज से अगला साल छोटी-मझोली कंपनियों के नाम रह सकता है। भारत की की बड़ी स्टार्ट अप्स का वैल्यू में उनकी लिस्टिंग के बाद से काफी गिरावट देखने को मिली है। दुनियाभर में बढ़ती ब्याज दरों के कारण आगे टेक्नोलॉजी स्टॉक्स पर दबाव कायम रहने की उम्मीद है। इस स्टॉक में प्री-आईपीओ इंवेस्टरों के लिए लागू लॉक-इन के खतम होने के बाद और गिरावट आई है।
मंदी के जोखिम के चलते ग्रोथ स्टॉक्स का आउटलुक कमजोर
मंदी के जोखिम के चलते ग्रोथ स्टॉक्स का आउटलुक कमजोर हुआ है। ऐसे में निवेशक 2023 में ज्यादा सेलेक्टिव होते नजर आ सकते हैं। नए साल में निवेशक दूसरे सेक्टरों की छोटी कंपनियों पर फोकस बढ़ाते दिख सकते हैं। वर्तमान में सेबी के पास लगभग दो दर्जन आईपीओ अर्जियां पड़ी हुई हैं। इसमें सॉफ्टबैंक ग्रुप के निवेश वाली Oyo Hotels और Tata Play Ltd के आईपीओ की अर्जी भी शामिल है।
2023 में आईपीओ के जरिए होने वाली कुल फंड रेजिंग थोड़ी कम रह सकती है
बैंक ऑफ अमेरिका कॉर्प के मुंबई स्थित एनालिस्ट अमिश शाह का कहना है कि 2023 में आईपीओ के जरिए होने वाली कुल फंड रेजिंग थोड़ी कम रह सकती है क्योंकि ये साल काफी उतार-चढ़ाव भरा रहने वाला है। इसके बावजूद उनका मानना है कि नए साल में प्राइमरी मार्केट अच्छा प्रदर्शन करता नजर आ सकता है। उन्होंने ये भी कहा कि 2023 में बाजार में आईपीओ के लिए उत्साह रहेगा।
वैसे साल 2022 में भी भारत के बाजारों में छोटी कंपनियों की लिस्टिंग का ही दबदबा रहा है। हालांकि दक्षिण एशियाई देश में नए शेयरों की बिक्री से प्राप्त आय पिछले साल के रिकॉर्ड स्तर से 59 फीसदी गिरकर लगभग 6.9 बिलियन डॉलर पर आ गई है। लेकिन बाजार में लिस्ट होने वाली कंपनियों की संख्या में लगभग 10 फीसदी की वृद्धि हुई। इससे छोटी कंपनियों की लिस्टिंग में तेजी का संकेत मिलता है।
2022 में भारत में सिर्फ दो कंपनियों ने IPOs को जरिए 50 करोड़ डॉलर से ज्यादा जुटाए हैं। इसमें LIC और Delhivery के आईपीओ शामिल हैं। LIC का आईपोओ 2.7 अरब डॉलर का था। वहीं, Delhivery का आईपीओ 68.4 करोड़ डॉलर का था। पिछले साल 11 न्यूकमर्स ने मिलकर अपनी लिस्टिंग के लिए इससे ज्यादा राशि जुटाई थी।
गौरतलब है कि हाल में आए कुछ बड़े आईपीओ अपने कॉर्पोरेट गवर्नेंस प्रैक्टिस में गड़बड़ी पाए जानें की वजह से जांच के दायरे में आ गए हैं। इनमें पेटीएम और Nykaa के नाम शामिल हैं। एक तरफ जहां बड़े साइज के आईपीओ संघर्ष करते नजर आ रहे हैं वहीं, S&P BSE SME IPO Index को देखने से लगता है कि छोटी-मझोली कंपनियों का आईपीओ बाजार में जोरदार ऐक्शन है। इस इंडेक्स में अब तक 40 फीसदी से ज्यादा की तेजी देखने को मिली है। वहीं, इसी अवधि में मेन बोर्ड पर लिस्ट होने वाले आईपीओ की संख्या में 25 फीसदी की गिरावट देखने को मिली है। ये 2011 के बाद का सबसे खराब प्रदर्शन है।
मंदी की चर्चा के बावजूद आगे ब्रॉडर मार्केट अच्छी तेजी की उम्मीद
ओमनीसाइंस कैपिटल के विकास गुप्ता ने कहा "मैं उम्मीद कर रहा हूं कि मंदी की चर्चा के बावजूद आगे ब्रॉडर मार्केट अच्छी तेजी देखने को मिलेगी, जिसका मतलब है कि आईपीओ की पाइपलाइन भी मजबूत रहेगी। "लेकिन ओवरवैल्यूड या घाटे में चल रही कंपनियों के लिए फंड जुटाना आसान नहीं होगा। मुझे लगता है कि ऐसी कंपनियों के लिए प्राइमरी मार्केट रूट अपनाने की गुंजाइश बहुत कम है।"
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