19 मई को आरबीआई ने कहा है कि 2000 रुपये की नोट सर्कुलेशन से हटा लिए जाएंगे। आरबीआई ने बैंकों को निर्देश दिए हैं कि वो तत्काल प्रभाव से ग्राहकों को 2000 के नोट देना बंद कर दें। इसके साथ ही आरबीआई ने पब्लिक को 2000 रुपये के नोट जमा करने और बदलने के लिए 4 महीने की समय सीमा दी है। यानी जिन लोगों के पास 2000 रुपये की नोट हैं वे 30 सितंबर तक बैंकों की शाखाओं या आरबीआई के अधिकृत सेंटर में जाकर इन नोटों को बदल सकते हैं। आरबीआई ऐलान के बाद सोशल मीडिया पर आरबीआई के इस कदम को लेकर तमाम तरह की बातें चल रही हैं। तमाम लोग आरबीआई के इस फैसले की तुलना 2016 में हुए नोटबंदी से कर रहे हैं। लेकिन आरबीआई की कल की घोषणा की तुलना 2016 की नोटबंदी से करना बुनियादी तौर पर गलत है। इसकी 5 वजहें है। आइये डालते हैं इन पर एक नजर
1 – 2016 की नोटबंदी के समय 500 और 1000 रुपये के नोट को तत्काल प्रभाव से सर्कुलेशन से हटाया गया था। तब इन दोनों डिनॉमिनेशन के नोट का सर्कुलेशन करीब 86 फीसदी था। इस नोटबंदी की घोषणा खुद पीएम मोदी ने की थी,न कि आरबीआई ने। जबकि इस बार 2000 रुपये के नोट को सर्कुलेशन से बाहर करने की घोषणा आरबीआई द्वारा की गई है। आरबीआई ने साफ तौर पर कहा है कि ये नोट लीगल टेंडर बने रहेंगे। यानी नोट की वैधता पर कोई सवाल नहीं है। इनका 30 सितंबर तक लेन-देने में इस्तेमाल किया जा सकेगा। ऐसे में आरबीआई की कल की घोषणा से 2000 रुपये के नोट की वैल्यू पर कोई असर नहीं पड़ा है। जबकि 2016 की नोटबंदी के समय से 500 और 1000 रुपये के नोट की वैल्यू रातों-रात शून्य हो गई थी।
2 – आरबीआई की कल की घोषणा से उन ईमानदार नागरिकों को डरने की कोई जरूरत नहीं है जिनके पास कमाई से वैध तरीके से आए 2000 रुपये के नोट है। इन नोटों को बदलनेके लिए आरबीआई ने अधिकृत आरबीआई सेंटरों और बैंकों को निर्देश दिए हैं कि वे इनको बदलाने में कोई कोताही न बरतें। इसके लिए आम लोगों को 30 सितंबर तक का समय दिया गया है। ग्राहक बैंकों में प्रतिदिन एक बार में 20000 रुपये बदलकर कैश ले सकते हैं। यह प्रक्रिया मंगलवार से लागू हो जाएगी। जबकि ग्राहक अपने अकाउंट में कितने भी पैसे जमा करें, इस पर कोई पाबंदी नहीं है। इसके अलावा आरबीआई ने बैंकों के एजेंट को अकाउंट होल्डर के खाते में प्रतिदिन 4000 रुपये के इस तरह के नोट बदलने की अनुमति दी हुई है।
3 –2000 रुपये के नोट का टोटल सर्कुलेशन इस समय काफी कम है। आम लोगों के पास 2000 रुपये का नोट बहुत कम मात्रा में है या है ही नहीं है। ऐसे में इस ऐलान के चलते पिछले नोटबंदी की तुलना में बहुत कम अफरा-तफरी फैलने की संभावना है। आरबीआई के आंकड़ों पर नजर डालें तो 31 मार्च 2023 तक 2000 रुपये के नोटों का सर्कुलेशन 10.8 फीसदी पर आ गया था। 2000 रुपये के नोटों की कुल वैल्यू 31 मार्च 2018 के 6.73 लाख करोड़ रुपये से घटकर 31 मार्च 2023 तक 3.62 लाख करोड़ रुपये पर आ गई है।
4 – चौथी वजह ये है कि 2000 के नोट को वापस लेने का यह ऐलान अप्रत्याशित नहीं था। आरबाई की तरफ से पहले से ही इस तरह के संकेत मिल रहे थे। आरबीआई पिछले कई सालों से 2000 रुपये के नोटों की छपाई कम करता जा रहा था। आरबाई के आंकड़ों के मुताबिक, मार्च 2022 तक 2000 रुपये के नोटों की कुल संख्या 274 करोड़ यानी 2.4 फीसदी घटकर 214 करोड़ यानी 1.6 फीसदी पर आ गई थी।
5 – यह पहली बार नहीं है जब आरबीआई ने किसी नोट को सर्कुलेशन से बाहर करने का ऐलान किया है। इसके पहले 2013 में आरबाई ने कहा था कि वह उन सभी बैंक नोटों को मार्च 2014 से सर्कुलेशन से बाहर करेगी, जिनको 2005 के पहले जारी किया था। इसके लिए आरबाई ने 1 जुलाई 2014 तक का समय दिया था। आरबाई अपने क्लीन नोट पॉलिसी के तहत इस तरह के निर्णय लेता रहता है। ऐसे में हमें आरबीआई के कल के ऐलान के तुलना 2014 के फैसले से करनी चाहिए। इसकी तुलना 2016 के डिमॉनिटाइजेश से करना सही नहीं होगा।
आरबीआई के कल के ऐलान से घबराने की जरूरत नहीं
कुल मिलाकर देखें तो लोगों को आरबीआई के कल के ऐलान से घबराने की जरूरत नहीं है। इसकी 2016 की नोट बंदी से तुलना नहीं की जा सकती है। 23 मई से बैंकों की शाखाओं और आरबीआई के सेंटरों में 2000 रुपये के नोट बदले जा सकेंगे। इन नोटों को बदलने के लिए आरबीआआई ने 4 महीने का समय दिया है, जो पर्याप्त है। आरबीआई ने लोगों में किसी तरह की अफरा तफरी न फैले इसके लिए पर्याप्त सावधानी बरती है।