यह वित्त वर्ष खत्म होने जा रहा है। 1 अप्रैल से नया वित्त वर्ष शुरू हो जाएगा। कंपनियां हर वित्त वर्ष में मार्च तक की एंप्लॉयी की सैलरी से पूरा टैक्स काट लेती है। एंप्लॉयी की सैलरी टैक्स-डिडक्टेड ऐट सोर्स (TDS) के दायरे में आती है। इसका मतलब यह है कि कंपनी हर महीने टैक्स काटकर एंप्लॉयी का पैसा उसके बैंक अकाउंट में डालती है। कंपनी एंप्लॉयी की सैलरी से कितना टैक्स काटती है, टैक्स का कैलकुलेशन कैसे होता है, क्या टीडीएस कटने के बाद एंप्लॉयी को इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करते वक्त कोई टैक्स नहीं चुकाना पड़ता है? आइए इन सवालों के जवाब जाने की कोशिश करते हैं।
सैलरी पर टीडीएस के लिए रेट फिक्स नहीं
एक्सपर्ट्स का कहना है कि दूसरी तरह की इनकम पर टीडीएस का रेट फिक्स है। लेकिन, सैलरी के मामले में टीडीएस का फिक्स रेट नहीं है। टीडीएस एंप्लॉयी की कुल सालाना सैलरी और उसके स्लैब के हिसाब से तय होता है। कंपनी का फाइनेंस डिपार्टमेंट हर वित्त वर्ष की शुरुआत में एंप्लॉयी से इसकी जानकारी देने को कहा है कि वह वित्त वर्ष के दौरान कुल कितना टैक्स-सेविंग्स इनवेस्टमेंट करेगा। इसके अलावा एचआरए क्लेम का अमाउंट भी कंपनी पूछती है।
टैक्स लायबिलिटी के आधार पर टीडीएस
कंपनी का फाइनेंस डिपार्टमेंट एंप्लॉयी के प्रस्तावित टैक्स-सेविंग्स इनवेस्टमेंट, एचआरए क्लेम आदि की जानकारी मिलने के बाद उसकी कुल टैक्स लायबिलिटी तय करता है। कुल सालाना इनकम में डिडक्शन और एग्जेम्प्शंस को हटाने के बाद एंप्लॉयी की नेट सैलरी निकलती है। फाइनेंस डिपार्टमेंट उस पर टैक्स लायबिलिटी का कैलकुलेशन करता है। इसके लिए एंप्लॉयी की कुल नेट इनकम और उसके हिसाब से लागू टैक्स स्लैब को आधार बनाया जाता है।
एंप्लॉयर हर महीने टीडीएस काटता है
टैक्स लायबिलिटी तय होने के बाद कंपनी का फाइनेंस डिपार्टमेंट एंप्लॉयी की हर महीने की सैलरी से टैक्स काटना शुरू कर देता है। इसकी जानकारी एंप्लॉयी को दी जाती है। पूरी टैक्स लायबिलिटी को हर महीने सैलरी से काटने का मकसद यह है कि एंप्लॉयी पर एक बार में टैक्स का ज्यादा बोझ नहीं पड़े। कंपनी को हर तिमाही टीडीसी से काटा गया पैसा इनकम टैक्स डिपार्टमेंट में जमा करना पड़ता है।
जनवरी से मार्च की सैलरी में पूरा टीडीएस कट जाता है
फाइनेंस डिपार्टमेंट हर वित्त वर्ष में जनवरी के पहले या दूसरे हफ्ते तक एंप्लॉयी से इनवेस्टमेंट का प्रूफ मांगता है। प्रूफ मिलने का बाद वह टैक्स लायबिलिटी का फाइनल कैलकुलेशन करता है। अगर एंप्लॉयी ने प्रस्तावित टैक्स-सेविंग्स इनवेस्टमेंट के मुकाबले वित्त वर्ष के दौरान कम इनवेस्टमेंट किया है तो उसकी टैक्स-लायबिलिटी बढ़ जाती है। इस बढ़े हुए टैक्स को फाइनेंस डिपार्टमें जनवरी से मार्च के दौरान तीन किस्तों में सैलरी से काट लेता है।
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