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Sovereign Gold Bonds इनवेस्टर्स और सरकार दोनों के लिए फायदेमंद, यहां समझिए पूरा गणित

सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड में निवेशकों की दिलचस्पी बढ़ रही है। इसकी वजह यह है कि 2015 में एसजीबी की शुरुआत के बाद से गोल्ड की कीमतों में अच्छी तेजी दिखी है। इससे एसजीबी के निवेशकों को बहुत अच्छा रिटर्न मिला है। साथ ही यह सरकार के लिए भी फायदेमंद है। इससे सरकार पर सोने के इंपोर्ट का दबाव घटता है

MoneyControl Newsअपडेटेड Feb 29, 2024 पर 1:05 PM
Sovereign Gold Bonds इनवेस्टर्स और सरकार दोनों के लिए फायदेमंद, यहां समझिए पूरा गणित
RBI ने नवंबर 2015 से दिसंबर 2023 के बीच एसजीबी की 66 किस्त पेश की है। एसजीबी का पहला इश्यू नवंबर 2015 में आया था।

सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड (SGB) में निवेशकों की दिलचस्पी बढ़ रही है। RBI सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड जारी करता है। आरबीआई गवर्नमेंट बॉन्ड्स भी जारी करता है। वह स्मॉल-सेविंग्स स्कीम का भी प्रबंधन करता है। इन इंस्ट्रूमेंट्स से जुटाए गए पैसे का इस्तेमाल सरकार के बजट घाटे को पूरा करने के लिए किया जाता है। RBI सरकार की तरफ से निवेशकों को एसजीबी इश्यू करता है। एसजीबी का मैच्योरिटी पीरियड 8 साल है। लेकिन, पांच साल बाद इसमें से पैसे निकाले जा सकते हैं। इनवेस्टर को 8 साल में गोल्ड की कीमतों में हुए इजाफे का फायदा मिलता है। साथ ही सालाना 2.5 फीसदी का इंटरेस्ट भी मिलता है।

मैच्योरिटी पीरियड 8 साल

एसजीबी सरकार की तरफ से जारी किए जाते हैं, जिससे निवेशक का पैसा डूबने का डर नहीं होता है। मैच्योरिटी पर मिला पैसा कैपिटल गेंस टैक्स के दायरे में नहीं आता है। इसमें लिक्विडिटी एक प्रॉब्लम है, क्योंकि निवेश 8 साल तक बनाए रखना होता है। अब कुछ ऐसी बातों को जान लेना जरूरी है, जो इस प्रोडक्ट को दूसरे प्रोडक्ट्स से अलग करती है। जब कोई इश्यूअर डेरिवेटिव इंस्ट्रूमेंट इश्यू करता है तो कीमतों में उतार-चढ़ाव के असर से बचने के लिए अंडरलाइंड एसेट में निवेश किया जाता है। लेकिन, सरकार जारी किए गए एसजीबी की वैल्यू के बराबर फिजिकल गोल्ड में निवेश नहीं करती है।

इनवेस्टर और सरकार के बीच एग्रीमेंट

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