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सर्किल रेट और मार्केट रेट? प्रॉपर्टी खरीदने और बेचने वाले को पता होना चाहिए दोनों का फर्क

भारत में रियल एस्टेट बाजार तेजी से विकास कर रहा है। प्रॉपर्टी का ट्रांजेक्शन करने वाले लगभग सभी लोगों को अक्सर रियल एस्टेट में 'सर्कल रेट' शब्द का सामना करना पड़ता है। सर्कल रेट और मार्केट वैल्यू के बीच अंतर को समझना जरूरी है

MoneyControl Newsअपडेटेड Feb 19, 2024 पर 4:56 PM
सर्किल रेट और मार्केट रेट? प्रॉपर्टी खरीदने और बेचने वाले को पता होना चाहिए दोनों का फर्क
Real Estate इंडस्ट्री सरकार से इस सेक्टर को रफ्तार देने वाले ट्रांसफॉर्मेटिव उपायों की गुजारिश कर रही है.

भारत में रियल एस्टेट बाजार तेजी से विकास कर रहा है। प्रॉपर्टी का ट्रांजेक्शन करने वाले लगभग सभी लोगों को अक्सर रियल एस्टेट में 'सर्कल रेट' शब्द का सामना करना पड़ता है। सर्कल रेट और मार्केट वैल्यू के बीच अंतर को समझना जरूरी है। प्रॉपर्टी खरीदने वालों को अक्सर इस शब्द के बारे में सुनना पड़ता है।

सर्किल रेट

सर्किल रेट अक्सर स्थानीय अधिकारियों के द्वारा निर्धारित किया जाता है। यह वह न्यूनतम कीमत होत है जिसी पर एक प्रॉपर्टी, चाहे वह कमर्शियल, रेजिडेंशियल या लैंड भूमि हो सेल के लिए रजिस्टर की जाती है। यह प्रॉपर्टी की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए एक नियामक के तौर पर काम करता है। जिला प्रशासन को राज्यों और शहरों में प्रॉपर्टीयों के लिए मानक दरें स्थापित करने का काम सौंपा गया है। ये सर्कल रेट एरिया के हिसाब से अलग-अलग होता है। सर्कल रेट से नीचे के ट्रांजेक्शन आमतौर पर रजिस्टर नहीं होते हैं। हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में सर्कल रेट को कलेक्टर दरों या जिला कलेक्टर दरों (District Collector Rate) के रूप में भी जाना जा सकता है।

इसके अलावा सर्कल रेट प्रॉपर्टी के मालिकाना हक के ट्रांसफर को प्रभावित करता है। यह राज्य और शहर में प्रॉपर्टी की लोकेशन को तय करता है। ये उस एरिया के लैंडस्केप और डेवलपमेंट को भी दिखाता है।

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