नॉन-बैकिंग फाइनेंस कंपनियां (NBFC) अब म्यूचुअल फंडों (mutual funds) की पसंद बन गई हैं। जून में म्यूचुअल फंडों ने नॉन-बैंकिंग फाइनेंस कंपनियों में जमकर निवेश किया, जबकि प्राइवेट बैंकिंग स्टॉक्स में मुनाफावसूली की। मार्केट के मौजूद माहौल से मिले संकेतों की मानें तो एक्सपर्ट्स को लग रहा है कि ब्याज दर साइकल का पीक अब अपने आखिरी पड़ाव पर है।
विकसित देशों के केंद्रीय बैंकों द्वारा ब्याज दर में कमी की शुरुआत होने पर भारत भी यह सिलसिला शुरू कर सकता है। ऐसे में NBFC के लिए लाइबिलिटी कॉस्ट कम होगी और उनका प्रॉफिट मार्जिन बढ़ेगा। म्यूचुअल फंडों ने जून में अलग-अलग NBFC सेगमेंट में अपनी होल्डिंग बढ़ाई, चाहे वह हाउसिंग फाइनेंस हो, कंज्यूमर फाइनेंस या माइक्रोफाइनेंस। व्हीकल एसएमई/कंज्यूमर सेगमेंट और गोल्ड फाइनेंस जैसी प्रॉडक्ट कैटेगरी में लोन की मांग मजबूत है।
निप्पॉन इंडिया म्यूचुअल फंड (Nippon India Mutual Fund) में इक्विटी इनवेस्टमेंट्स के फंड मैनेजर विनय शर्मा ने बताया, 'क्रेडिट ग्रोथ अब मजबूत हो चुकी है और यह ग्रोथ मीडियम टर्म में जारी रह सकती है। क्रेडिट साइकल बेहतर जान पड़ता है। अगली कुछ तिमाहियों में किसी भी बड़े नॉन-परफॉर्मिंग लोन की आशंका नहीं के बराबर है।' जून में एसेट मैनेजमेंट कंपनियों ने एचडीएफसी, श्रीराम फाइनेंस, महिंद्रा एंड महिंद्रा फाइनेंशियल सर्विसेज आदि में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाई।
नॉन-बैंकिंग फाइनेंस कंपनियां बैंक से लोन लेती हैं या नॉन-कन्वर्टिबल डिबेंचर से पैसे जुटाती हैं। दोनों मामलों में वे ऊंची ब्याज दरों पर कर्ज लेती हैं और जाहिर तौर पर ऊंची ब्याज दरों पर ही कर्ज देती हैं। फाइनेंशियल सर्विसेज कंपनी फिस्डम (Fisdom) के नीरव कारकेरा कहते हैं, 'मिसाल के तौर पर कुछ नॉन-बैंकिंग फाइनेंस कंपनियां फंड जुटा रही हैं और 10 पर्सेंट सालाना यील्ड ऑफर कर रही हैं। हालांकि, लेंडिंग रेट 14 पर्सेंट से ज्यादा है। ऐसी नॉन-बैंकिंग फाइनेंस कंपनियों का ग्रॉस मार्जिन कई कंपनियों से बेहतर नजर आता है, जो 7.5 पर्सेंट पर डिपॉजिट लेते हैं और लगभग 9 पर्सेंट की दर से लोन देते हैं।'
फंड कॉस्ट बढ़ने से कुछ नॉन-बैंकिंग फाइनेंस कंपनियों के नेट इंटरेस्ट मार्जिन में 0.5 से 0.15 पर्सेंट की गिरावट हो सकती है। हालांकि, सिस्टमैटिक्स इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज के एनालिस्ट्स का मानना है कि बाकी नॉन-बैंकिंग फाइनेंस कंपनियों के मार्जिन में मामूली बढ़ोतरी हो सकती है। इन कंपनियों के पोर्टफोलियो में बदलाव और लेंडिंग रेट में बढ़ोतरी के कारण ऐसा होगा। महिंद्रा मनुलाइफ म्यूचुअल फंड (Mahindra Manulife Mutual Fund) के CIO (इक्विटी) कृष्ण सांघनी के मुताबिक, मार्जिन से जुड़े दबाव पर फोकस हटने से नॉन-बैंकिंग फाइनेंस कंपनियों की रेटिंग में बदलाव हो सकता है।
बार्गेनिंग के आधार पर खरीदारी
इन वजहों के अलावा, म्यूचुअल फंडों ने बार्गेनिंग के लिहाज से भी नॉन-बैंकिंग फाइनेंस कंपनियों के स्टॉक्स में खरीदारी की है। उदाहरण के लिए, क्रेडिट ऐक्सेस ग्रामीण और श्रीराम फाइनेंस को जून में थोड़े से डिस्काउंट पर बड़ी ब्लॉक डील नजर आई। केनरा रोबेका, एक्सिस म्यूचुअल फंड और HDFC एएमसी ने क्रेडिट ऐक्सेस ग्रामीण में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाई, जबकि आदित्य बिड़ला सन लाइफ एएमसी और कोटक महिंद्रा एएमसी आदि ने श्रीराम फाइनेंस में खरीदारी की।
बहरहाल, जियो फाइनेंशियल सर्विसेट (Jio Financial Services) की एंट्री के साथ ही इस सेगमेंट में और उथल-पुथल मचने वाली है। माना जा रहा है कि जियो फाइनेंशियल सर्विसेज (JFS ) इस सेक्टर में उथल-पुथल मचा सकती है और कॉम्पिटिशन को बढ़ावा दे सकती है। हालांकि, फंड मैनेजर हड़बड़ी में किसी तरह का फैसला नहीं करना चाहते।
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