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Train Blasts Case: 1993 ट्रेन बम विस्फोट मामले के आरोपी अब्दुल करीम टुंडा सबूतों के अभाव में बरी

1993 Train Blasts Case: अजमेर की एक अदालत ने लगभग 3 दशक पहले देश भर में 5 ट्रेन में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों के मामले में मुख्य आरोपी अब्दुल करीम टुंडा को गुरुवार को बरी कर दिया। टाडा अदालत ने दो अन्य आरोपियों इरफान और हमीदुद्दीन को इस मामले में उम्रकैद की सजा सुनाई है। लेकिन मुख्य आरोपी अब्दुल करीम को अजमेर टाडा कोर्ट ने सबूतों के अभाव में बरी कर दिया है

अपडेटेड Feb 29, 2024 पर 2:36 PM
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1993 Train Bomb Blasts Case: राजस्थान की एक स्पेशल टाडा कोर्ट ने गुरुवार (29 फरवरी) को 1993 बम विस्फोट मामले में लश्कर-ए-तैयबा के आतंकी अब्दुल करीम टुंडा (Abdul Karim Tunda) को बरी कर दिया। मुख्य आरोपी अब्दुल करीम को अजमेर टाडा कोर्ट ने सबूतों के अभाव में बरी कर दिया है। 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस की पहली बरसी पर कई ट्रेनों में हुए विस्फोटों में दो लोगों की मौत हो गई थी और कई अन्य घायल हो गए। टुंडा के अलावा दो आतंकवादी इरफान और हमीदुद्दीन को इसी कोर्ट ने उम्र कैद की सजा सुनाई है। अदालत ने दोनों आरोपियों हमीनुद्दीन और इरफान को दोषी ठहराया और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई।

टुंडा के वकील शफीकतुल्ला सुल्तानी ने कहा, "माननीय अदालत ने अब्दुल करीम टुंडा को सभी आरोपों से बरी कर दिया है। सीबीआई अब्दुल करीम टुंडा के खिलाफ कोई मजबूत सबूत पेश करने में विफल रही।'' 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस की पहली बरसी पर चार ट्रेनों में धमाके हुए थे।

ट्रेनों में सिलसिलेवार हुए थे धमाके


नई दिल्ली और हावड़ा जाने वाली तीन राजधानी एक्सप्रेस ट्रेनों, सूरत-बड़ौदा फ्लाइंग क्वीन एक्सप्रेस और हैदराबाद-नई दिल्ली एपी एक्सप्रेस में हुए विस्फोटों में दो लोगों की मौत हो गई और कम से कम 22 घायल हो गए। टुंडा अब 80 वर्ष का हो चुका है। 1996 के बम विस्फोट मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद वह वर्तमान में आजीवन कारावास की सजा काट रहा है। वह कई अन्य बम विस्फोट मामलों में आरोपी है। आतंकवादी दाऊद इब्राहिम के करीबी माने जाने वाले टुंडा बम बनाने में एक्सपर्ट था, इसलिए उसे "डॉ. बम" कहा जाता था।

सुप्रीम कोर्ट जा सकती है CBI

ये धमाके कोटा, कानपुर, सिकंदराबाद और सूरत से गुजरने वाली ट्रेनों में हुए थे। मुंबई बम धमाकों के कुछ ही महीनों बाद ट्रेन बम धमाकों ने देश को झकझोर कर रख दिया था। इस मामले की जांच की कमान केंद्रीय एजेंसी CBI के हाथ में थी। टुंडा को बरी करने के फैसले को चुनौती देने के लिए सीबीआई सुप्रीम कोर्ट जा सकती है।

कौन है अब्दुल करीम?

ऐसा पता चला है कि टुंडा ने 40 साल की उम्र में आतंकवाद की ओर मुड़ने से पहले बढ़ई के रूप में करियर शुरुआत की थी। 1993 में मुंबई में हुए धमाकों के बाद वह पहली बार जांच एजेंसियों के घेरे में आया। बम बनाते समय हुए विस्फोट में उसने अपना बायां हाथ खो दिया।

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उसने लश्कर-ए-तैयबा, इंडियन मुजाहिदीन, जैश-ए-मोहम्मद और बब्बर खालसा सहित कई आतंकवादी संगठनों के साथ काम किया है। 2013 में उसे भारत-नेपाल सीमा के करीब स्थित उत्तराखंड के बनबसा में गिरफ्तार किया गया था। चार साल बाद हरियाणा की एक अदालत ने उसे 1996 विस्फोट मामले में आजीवन कारावास की सजा सुनाई।

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