भुवन भास्कर
भुवन भास्कर
उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी ने इतिहास रच दिया है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में पार्टी ने इस जीत के साथ कई रिकॉर्ड बनाए, जिनकी चर्चा चारों ओर हुई है। लेकिन अब यह चुनाव खत्म हो चुका है और जीत के जश्न के आगे इस चुनाव के संदेश का विश्लेषण समय की मांग है। उत्तर प्रदेश के चुनाव को सेमीफाइनल बताया जा रहा था, तो जाहिर है कि इस सेमीफाइनल में बीजेपी की जीत ने फाइनल के लिए यानी 2024 के लिए मंच तैयार कर दिया है।
उत्तर प्रदेश के चुनाव में कुल मिलाकर बीजेपी के मुद्दे क्या थे? निश्चित रूप से विकास और कानून-व्यवस्था इस सूची में सबसे ऊपर थे। लेकिन योगी आदित्यनाथ का पूरा परिचय और व्यक्तित्व अपने आप में हिंदू राष्ट्रवाद का प्रतीक था। इसके साथ ही राम मंदिर निर्माण, काशी विश्वनाथ कॉरिडोर, विजयदशमी के मौके पर अयोध्या में लाखों दीयों का प्रज्वलन, प्रयाग के कुंभ और हरिद्वार की कांवड़ यात्रा के प्रति सरकार और प्रशासन का रवैया और मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि को ‘मुक्त’ कराने की खुलेआम बातें - सब मिलाकर यह कहा जा सकता है कि उत्तर प्रदेश ने बीजेपी के लिए एक राजनीतिक प्रयोगशाला का काम किया है। बीजेपी के लिए ‘हिंदुत्व की प्रयोगशाला’ के रूप में पहले गुजरात का जिक्र किया जाता था। लेकिन अब गुजरात से ज्यादा यह उत्तर प्रदेश के लिए कहा जा सकता है।
कहा जाए तो उत्तर प्रदेश हिंदुत्व प्रभाव वाली नई राजनीति की प्रयोगशाला के रूप में गुजरात से ज्यादा योग्य है। इसलिए कि बीजेपी की हिंदू राष्ट्रवाद की राजनीति के सामने जो सबसे बड़ी दो चुनौतियां हैं, वे दोनों उत्तर प्रदेश में अपने सबसे प्रभावी स्वरूप में यहां मौजूद हैं। इसमें पहली चुनौती है – जातिवाद और दूसरी है, समाज का आर्थिक पिछड़ापन। हिंदू राष्ट्रवाद को राजनीति की मुख्यधारा बनने के लिए इन दोनों चुनौतियों से निपटना होगा और उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में मिली शानदार जीत ने इन दोनों ही चुनौतियों पर बीजेपी की जीत को स्थापित किया है।
इन दो बातों को समझना बहुत जरूरी है क्योंकि इन्हीं में से 2024 के लिए बीजेपी के चुनाव की रणनीति तैयार होगी। उत्तर प्रदेश में 2017 के चुनावों में 39.67% वोट के साथ 312 सीटें मिली थीं। साल 2022 में मिली बीजेपी की जीत की विशालता को इस बात से समझा जा सकता है कि सीटें चाहे 60 कम हो गई हों, लेकिन मत प्रतिशत करीब 2% बढ़कर 44.34% पर पहुंच गया है। यह कोई सामान्य उपलब्धि नहीं है। पांच वर्षों तक सरकार चलाने के बाद किसी पार्टी के लिए 2% वोट प्रतिशत बढ़ा लेना एक असाधारण घटना है।
बीजेपी के लिए तो यह और भी कठिन चुनौती थी, क्योंकि उत्तर प्रदेश में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या लगभग 20% है। विधानसभा की 57 सीटें ऐसी हैं जहां किसी भी मतदाता का जीतना या हारना मुस्लिम मतदाताओं के रुख पर निर्भर करता है। और इस बार के चुनाव में मुस्लिम मतदाताओं ने असाधारण ध्रुवीकरण का प्रदर्शन किया। इस स्तर तक कि हैदराबाद की कट्टर मुस्लिम पार्टी AIMIM को पूरे उत्तर प्रदेश में किसी भी सीट पर 5000 से ज्यादा वोट नहीं मिले। सभी 403 सीटों पर कुल मिलाकर असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी को 0.47% वोट प्राप्त हुए।
मुसलमानों के अलावा यादवों का वोट समाजवादी पार्टी के लिए लगभग एकमुश्त रहा। समाजवादी पार्टी के प्रति वोटों के ध्रुवीकरण का एक अंदाजा इस बात से लग सकता है कि उसका वोट प्रतिशत पिछले 5 वर्षों में 10% बढ़ा है। इसीलिए यह समझा जा सकता है कि क्यों बीजेपी का वोट प्रतिशत 2% बढ़ने के बावजूद उसकी सीटें करीब 60 कम हो गईं, जबकि समाजवादी पार्टी का वोट प्रतिशत 10% बढ़ने से उसकी सीटों में लगभग 75 सीटों की बढ़ोतरी हो गई। लेकिन महत्वपूर्ण बात यह नहीं है। महत्वपूर्ण यह है कि बीजेपी को मिलने वाले वोट में यादवों के अलावा हर पिछड़ी जाति का पूरा योगदान रहा। दलितों में सिर्फ जाटव वोट बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) के साथ जुड़ा रहा, जबकि तमाम दूसरी दलित जातियां बीजेपी के साथ गईं। यानी बीजेपी की हिंदुत्ववादी राजनीति ने जातियों का घेरा तोड़ कर ब्राह्णण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र – सभी वर्णों का वोट पाने में सफलता हासिल की। यह उत्तर प्रदेश को ‘हिंदू राष्ट्रवादी राजनीति की प्रयोगशाला’ बनाने में बीजेपी की पहली सफलता है।
दूसरी सफलता, जो बीजेपी ने हासिल की है, निश्चित तौर पर वह केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के कामों के बदौलत आई है। मोदी सरकार ने मई 2014 में सत्ता में आने के बाद से ही समाज के उस वर्ग को लक्ष्य कर दर्जनों ऐसी विकास योजनाएं शुरू कीं, जिन्हें समाज की अंतिम पंक्ति का व्यक्ति कहा जाता है। रसोई गैस का सिलेंडर पहुंचाने से लेकर, घरों में बिजली, नल का पानी और राशन पहुंचाने तक जो भी योजनाएं केंद्र ने शुरू कीं, उत्तर प्रदेश सरकार ने उन्हें पूरी क्षमता के साथ जमीन पर लागू करवाया। उत्तर प्रदेश के चुनावों में ऐसे दर्जनों वीडियो सामने आए, जिनमें झुग्गियों, गांवों या दूसरे दूर-दराज के क्षेत्रों में रहने वाले गरीबों ने केंद्र की योजनाओं का पूरा लाभ मिलने की बात कहते हुए मोदी-योगी को समर्थन देने की बात कही।
राज्य की योगी सरकार ने चार-चार नए एक्सप्रेसवे बनाने की घोषणा की और उन पर बिजली की गति से काम होते हुए लोगों ने देखा। पिछली सरकारों के दशकों से अधूरी पड़ी विकास योजनाओं को योगी सरकार ने अपने कार्यकाल में पूरा किया और जनता को समर्पित किया। इन सब बातों ने मिल कर मीडिया के एक प्रभावी वर्ग द्वारा फैलाए गये इस प्रोपगैंडा को मजबूती से नकारा कि हिंदुत्व वादी सरकारें विकास का काम नहीं कर सकतीं।
हालांकि गुजरात में मोदी ने पहले ही कई मामलों में विकास की अनेकों पटकथाएं लिखी थीं, लेकिन यह ध्यान रखने की बात है कि मोदी से पहले भी गुजरात एक विकसित राज्य ही था। यानी मोदी ने एक हाई बेस से शुरुआत की थी। वहीं उत्तर प्रदेश कुख्यात बीमारू राज्य का हिस्सा हुआ करता था, जहां एक तरफ मुलायम यादव की परिवारवादी राजनीति और भ्रष्टाचार के सैकड़ों आरोपों का बोलबाला था, तो दूसरी ओर मायावती की चकमक राजनीति थी, जहां पार्टी टिकट पाने के लिए भी करोड़ों रुपये का चंदा खुलेआम लिया जाता था।
योगी सरकार ने विकासोन्मुखी राजनीति के साथ तमाम माफियाओं पर लगाम कस कर हिंदुत्ववादी राजनीति का एक ऐसा विश्वसनीय चेहरा लोगों के सामने रखा, जिसका नतीजा 2022 के विधानसभा चुनावों के परिणामों पर साफ दिख रहा है। यही उत्तर प्रदेश की प्रयोगशाला का राष्ट्रीय संदेश है। देश की राजनीति में आने वाला समय हिंदू राजनीति का और मुखर चेहरा देखेगा, लेकिन उस चेहरे की सजावट विकास की कूची से की जाएगी। और इस विकास को सिर्फ हवाईअड्डों, चमचमाती सड़कों और दमकते मॉलों के पैमाने से नहीं नापा जाएगा, बल्कि इसकी कसौटी समाज के आखिरी लाइन में खड़े सबसे कमजोर और वंचित लोगों के चेहरे की चमक होगी।
कुल मिलाकर यह कहा जाए कि उत्तर प्रदेश के चुनाव परिणाम देश की राजनीति में एक नया मोड़ लाएंगे, जिसके दूसरी ओर भव्य और समृद्ध भारत खड़ा है, तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।
(लेखक आर्थिक और राजनीतिक मामलों के जानकार हैं)
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