Gujarat Elections 2022: गुजरात में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने 20 साल में पहली बार किसी ईसाई उम्मीदवार (Christian candidate) को चुनावी मौदान में उतारा है। बीजेपी ने गुजरात के व्यारा (Guajart Vyara) में आगामी विधानसभा चुनाव के लिए एक अकेला ईसाई उम्मीदवार मोहन कोंकणी (Mohan Konkani) को खड़ा किया है। भगवा पार्टी के मोहन कोंकणी का मुकाबला व्यारा से चार बार के विधायक कांग्रेस के पुनाजी गामित (Punaji Gamit) से होगा।
48 वर्षीय कोंकणी, तापी जिले (Tapi district) के व्यारा विधानसभा क्षेत्र से बीजेपी के उम्मीदवार हैं, जो ईसाई और आदिवासी बहुल क्षेत्र है। वह डोलवन तालुका के हरिपुरा गांव के रहने वाले हैं। व्यारा विधानसभा क्षेत्र कांग्रेस का पक्का गढ़ माना जाता रहा है। व्यारा विधानसभा क्षेत्र के 2.23 लाख मतदाताओं में से लगभग 45 फीसदी मतदाता ईसाई हैं।
व्यारा पर कांग्रेस का है कब्जा
64 वर्षीय कांग्रेस नेता गामित 2007 से व्यारा विधानसभा सीट से कांग्रेस का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। वहीं, कोंकणी एक सामाजिक कार्यकर्ता और किसान हैं। हालांकि वे 1995 से बीजेपी के एक सक्रिय सदस्य हैं। 2015 में उन्होंने तापी जिला पंचायत चुनाव में कांग्रेस के सहकारी नेता मावजी चौधरी को हराया और वर्तमान में तापी जिला पंचायत के अध्यक्ष हैं।
मोहन कोंकणी ने बीजेपी नेतृत्व के प्रति आभार व्यक्त करते हुए हिंदुस्तान टाइम्स से कहा, “मुझ पर विश्वास और भरोसे के लिए मैं पार्टी आलाकमान और बीजेपी का ऋणी हूं। 1 दिसंबर (मतदान की तारीख) को मैं व्यारा में इतिहास रचूंगा और मुझे इस बात का पूरा भरोसा है। व्यारा में राजनीतिक माहौल में सुधार हुआ है और मैं निर्वाचन क्षेत्र के 72,000 ईसाई मतदाताओं के समर्थन पर भरोसा कर सकता हूं।"
जब व्यारा में बीजेपी के अल्पसंख्यक समर्थक रुख के बारे में पूछा गया, तो वरिष्ठ बीजेपी नेता ने कहा, 'मैं बीजेपी शासन में किसी भी सरकारी अधिकारी से बात कर सकता हूं और अपनी चिंताओं का समाधान करवा सकता हूं। हिंदुत्व युग समाप्त हो गया है, और अब यह "सब का साथ, सब का विकास" का युग है। 182 सदस्यीय गुजारत विधानसभा में 27 आदिवासी सीटों में से कम से कम आठ सीटें मुख्य रूप से ईसाई बहुल हैं।
2007 के चुनावों के बाद से ईसाई आदिवासियों की बीजेपी के प्रति दुश्मनी काफी कम हो गई है। सहकारिता और डेयरी योजनाएं, राज्य सरकार की दोनों परियोजनाओं को आदिवासियों के लिए आकर्षक माना जाता है, क्योंकि वे जनजातियों के सदस्यों को सीधे आर्थिक लाभ पहुंचाते हैं। नाम न छापने की शर्त पर एक राजनीतिक विश्लेषक ने HT को बताया, "यह BJP के लिए एक जीत है, जो पहले से ही दक्षिण गुजरात के आदिवासी बेल्ट में कांग्रेस की जगह प्रमुख ताकत के रूप में उभरी है।"