RBI Bulletin:भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के मार्च के मासिक बुलेटिन में कहा गया है कि भारत महामारी के वर्षों से उम्मीद से ज्यादा मजबूती के साथ उबरा है। चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही से देश की इकोनॉमी मजबूती के साथ गति पकड़ती दिख रही है। बुलेटिन में आगे कहा गया है, "इससे भी अहम बात यह है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था के विपरीत, भारत की ग्रोथ आगे धीमी नहीं होगी। हमारी अर्थव्यवस्था 2022-23 की तेजी को आगे भी बनाए रखेगी। हम तमाम चुनौतियों के बावजूद भारत को लेकर आशावादी बने हुए हैं।"
हर महीने होता है आरबीआई बुलेटिन का प्रकाशन
बता दें कि आरबीआई बुलेटिन का प्रकाशन हर महीने होता है। इसमें घरेलू और ग्लोबल इकोनॉमी के रुझानों का विश्लेषण किया जाता है। इस बुलेटिन में आगे कहा गया है कि फरवरी के अंत में आए NSO के आंकड़ों से पता चलता है कि भारतीय इकोनॉमी दुनिया की दूसरी इकोनॉमीज की तुलना में ज्यादा बेहतर स्थिति में है। आगे आने वाले साल की चुनौतियों से निपटने के लिए भारत की इकोनॉमी में अतंर्निहित शक्ति दुनिया के दूसरे देशों की तुलना में कहीं ज्यादा है।
बुलेटिन में बताया गया है 2022-23 की तीसरी तिमाही के दौरान जहां भारतीयों द्वारा अपने निजी उपभोग (अर्थात् निजी अंतिम उपभोग व्यय या PFCE) के लिये खर्च किये गये पैसे में गिरावट आई है। वहीं, ग्रॉस फिक्स्ड कैपिटल फॉर्मेशन' (GFCF) में 8.3 फीसदी की ग्रोथ देखने को मिली है। सरकार द्वारा इंफ्रास्ट्रक्चर पर फोकस बढ़ाने से इसको मजबूती मिली है।
जानिए क्या है ग्रॉस फिक्स्ड कैपिटल फॉर्मेशन
बताते चलें कि ग्रॉस फिक्स्ड कैपिटल फॉर्मेशन' (GFCF) या हिंदी में कहें तो 'सकल स्थायी पूंजी निर्माण' सरकारी और निजी सेक्टर के फिक्स्ड असेट पर किए जाने वाले शुद्ध खर्च का आकलन है। फिक्स्ड असेट्स से आशय ऐसे एसेट से है जिसे एक साल से ज्यादा समय तक लगातार या कभी-कभार इस्तेमाल के लिए बनाया गया है। इसमें किसी कंपनी, सरकार या स्थानीय निकाय की तरफ से एक साल या तिमाही में मशीनरी, वाहन, सॉफ्टवेयर, नई रिहायशी इमारतों और दूसरी बिल्डिंगों और सड़कों के निर्माण पर किया गया खर्च शामिल होता। इस तरह जीएफसीएफ से यह पता चलता है कि अर्थव्यवस्था में फिजीकल असेट जैसे मशीनरी या बिल्डिंग जैसी स्थाई पूंजी के निर्माण पर हो रहे खर्च में कितना उतार-चढ़ाव आ रहा है।
वास्तव में किसी भी देश को समय के साथ-साथ वस्तुओं के उत्पादन या सेवा प्रदान करने के लिए इस्तेमाल की जा रही मशीनरी या दूसरे तरह के कैपिटल गुड्स को बदलने की जरूरत होती है। अगर कोई देश समय बीतने के साथ पुरानी मशीनरी की जगह नई मशीनरी नहीं खरीदेगा या उसमें सुधार नहीं करेगा तो उत्पादन का स्तर गिर जाएगा जिससे उस देश के विकास की रफ्तार थम जाएगी। इसीलिए यह माना जाता है कि अगर किसी देश में 'ग्रॉस फिक्स्ड कैपिटल फॉर्मेशन' तीव्र गति से हो रहा है तो उस देश के विकास की रफ्तार भी अधिक होगी। वास्तव में यह अर्थव्यवस्था में निवेश के स्तर का सूचक है।
फरवरी में मौद्रिक नीति की घोषणा करते हुए आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा था कि केंद्रीय बैंक को उम्मीद है कि वित्त वर्ष 2024 में देश की जीडीपी ग्रोथ 6.4 फीसदी रहेगी। उन्होंने आगे कहा था कि अप्रैल-जून 2023 की अवधि में जीडीपी 7.8 फीसदी रह सकती है। पहले इसके 7.1 फीसदी पर रहने को अनुमान किया गया था। वहीं, जुलाई-सितंबर 2023 की जीडीपी ग्रोथ रेट 6.2 फीसदी रह सकती जिसके पहले 5.9 फीसदी पर रहने का अनुमान किया गया था। इसी तरह अक्टूबर-दिसंबर 2023 में जीडीपी ग्रोथ रेट 6 फीसदी रह सकती है। वहीं, जनवरी -मार्च 2024 में जीडीपी ग्रोथ रेट 5.8 फीसदी रह सकती है।