इंडियन गवर्नमेंट बॉन्ड्स (IGBs) वैश्विक इंडेक्स पर क्यों नहीं, इसका खुलासा एसएंडपी ग्लोबल (S&P Global) ने अपनी एक रिपोर्ट में किया है। अनलॉकिंग इंडियाज कैपिटल मार्केट पोटेंशियल के नाम की इस रिपोर्ट में एसएंडपी ग्लोबल ने कहा कि यहां कैपिटल गेन्स टैक्स सिस्टम सबसे बड़ी बाधा है। 3 अगस्त को जारी इस रिपोर्ट में कहा गया है कि इस समय वैश्विक स्तर पर बिक्री के समय पेमेंट पर विदहोल्डिंग टैक्स माफ किया जा रहा है। वहीं भारत में ऐसी व्यवस्था है कि सरकारी बॉन्ड्स से जो मुनाफा हुआ है, उस पर कैपिटल गेन्स टैक्स लगता है। एसएंडपी ग्लोबल के मुताबिक इसी वजह से आईजीबी ग्लोबल बॉन्ड इंडेक्स में शामिल नहीं है।
सरकार क्यों नहीं कर रही है ऐसा
विदेशी निवेशकों को सरकार कैपिटल गेन्स पर टैक्स माफ करने के मूड में नहीं है क्योंकि उसका मानना है कि इससे घरेलू निवेशकों को नुकसान हो सकता है। यही वजह से टैक्स माफी का प्रस्ताव आगे नहीं बढ़ पाया। हालांकि पिछले महीने जुलाई में केंद्रीय बैंक रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि सरकारी बॉन्ड्स को ग्लोबल इंडेक्स से जोड़ने पर फायदा अधिक है। हालांकि सरकार टैक्स माफी को लेकर अपने रुख पर कायम है।
आरबीआई के कार्यकारी निदेशक राधा श्याम राठो की अध्यक्षता में रुपये के अंतरराष्ट्रीयकरण पर केंद्रीय बैंक के अंतरविभागीय समूह ने 5 जुलाई को एक रिपोर्ट जारी की थी। इस रिपोर्ट में सिफारिश की गई थी कि आरबीआई आईजीबी को ग्लोबल बॉन्ड इंडेक्स में शामिल करने के इंडेक्स प्रोवाइडर्स के साथ मिलने के लिए रास्ते खोज सकता है। डेटा, रिसर्च और एनालिटिक्स फर्म की इस रिपोर्ट के मुकाबिक प्रमुख ग्लोबल बॉन्ड इंडेक्स रेटिंग्स के आधार पर स्थानीय मुद्रा में निवेश करने वाले विदेशी फंड को भारत सरकार के डेट में निवेश करने के लिए प्रोत्साहन नहीं मिल पा रहा है।
इंडेक्स में शामिल होने पर कितना होगा फायदा
बाजार के अनुमानों का हवाला देते हुए एसएंडपी ग्लोबल की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि प्रमुख बॉन्ड इंडेक्स में इंडियन गवर्नमेंट सिक्योरिटीज को शामिल करने से 2000-4000 करोड़ डॉलर का शुरुआती निवेश आ सकता है। यह अगले दशक में बढ़कर 18000 करोड़ डॉलर पर पहुंच सकता है। इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल फाइनेंस के आंकड़ों का हवाला देते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि इससे यहां के गवर्नमेंट बॉन्ड मार्केट में विदेशी भागीदारी मौजूदा 0.9% से बढ़कर 10% हो सकती है।
एसएंडपी ग्लोबल के एनालिस्ट्स का मानना है कि अगर गवर्नमेंट बॉन्ड्स में विदेशी हिस्सेदारी इस स्तर तक बढ़ती है तो कॉरपोरेट्स के लिए उपलब्ध फंड लगभग तीन गुना हो जाएगा। रिपोर्ट के मुताबिक घरेलू गवर्नमेंट डेट मार्केट में अधिक विदेशी भागीदारी से न केवल मांग बढ़ेगी और इसके बाद नए सरकारी कर्ज जारी करने की लागत कम होगी, बल्कि निजी क्षेत्र के लिए रिसोर्सेज भी फ्री होंगे।
JPMorgan ने भी पिछले साल नहीं किया था भारत को शामिल
इससे पहले 2022 में ग्लोबल गवर्नमेंट बॉन्ड्स के लिए रिफरेंस इंडेक्स में भी जेपीमॉर्गन ने इसी कारण भारत को नहीं शामिल किया था। जेपीमॉर्गन ने घरेलू स्तर पर बॉन्ड सेटलमेंट सिस्टम्स, फंड रीपैट्रिएशन (विदेशी करेंसी को स्थानीय करेंसी में बदलना) और इंटरनेशनल स्टैंडर्ड्स के मुताबिक कैपिटल गेन्स टैक्स रिजीम नहीं होने के चलते ऐसा किया था।