देश में अब बस करीब 5 प्रतिशत आबादी ही गरीब है। नीति आयोग (NITI Aayog) के सीईओ बीवीआर सुब्रमण्यम ने कंज्म्पशन एंड एक्सपेंडिचर सर्वे रिपोर्ट जारी करते हुए यह जानकारी दी। सर्वे के मुताबिक, देश के सबसे गरीब 5 प्रतिशत लोगों को मासिक प्रति व्यक्ति उपभोक्ता खर्च ग्रामीण इलाकों में 1,441 रुपये और शहरी इलाकों में 2,087 रुपये है। सुब्रमण्यम ने हमारे सहयोगी News18 को बताया, "देखिए, तेंदुलकर समिति की एक पुरानी रिपोर्ट थी कि कौन गरीब होने के योग्य हो सकता है। अगर हम इसे इस सर्वे के आंकड़ों के साथ जोड़ते हैं, तो यह पता चलता है कि भारत में अब 5% से भी कम गरीब बचे हैं।”
तेंदुलकर समिति का गठन दिसंबर 2005 में योजना आयोग ने किया गया था, जिसे अब नीति आयोग के नाम से जाना है। तेंदुलकर समिति ने दिसंबर 2009 में अपनी रिपोर्ट दी थी, इसमें ग्रामीण इलाकों की गरीब रेखा को उन्हीं कंज्म्पशन (खपत) के आधार पर नए सिरे से तय करने की सिफारिश की गई है, जो मौजूदा शहरी गरीबी रेखा से जुड़ी है। इस तरह 2004-05 में देश की कुल गरीब आबादी 37.2 फीसदी निकाला गया था। जिसमें ग्रामीण इलाकों में गरीबों का अनुपात 41.8 प्रतिशत और शहरी इलाकों में यह 25.7 प्रतिशत था। इन अनुमानों को योजना आयोग ने स्वीकार कर लिया था।
हालांकि, नीति आयोग के हालिया सर्वे से पता चलता है कि भारत के निचले 5 प्रतिशत लोगों का मासिक खर्च - जिसे मासिक प्रति व्यक्ति कंज्यूमर एक्सपेंडिचर भी कहा जाता है - ग्रामीण क्षेत्रों में 1,441 रुपये और शहरी क्षेत्रों में 2,087 रुपये है। नीति आयोग के सीईओ ने कहा, ''यह डेटा मुझे इस बारे में निश्चित बनाता है।''
हालांकि, उन्होंने कहा कि इसका मतलब यह नहीं है कि भारत में लोग अब खुशहाल हैं। उन्होंने कहा, "इसका मतलब है कि अति गरीबी में रहने वाले लोग अब 5% से भी कम हैं।"
यह सर्वे रिपोर्ट अप्रैल-मई में होने वाले लोकसभा चुनाव से ठीक पहले है। इससे करीब एक महीने पहले नीति आयोग ने एक और रिपोर्ट जारी की थी, जिसमें कहा गया था कि पिछले 9 सालों में देश में 24.82 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी से बाहर आए हैं। रिपोर्ट में कहा गया था कि पोषण अभियान और 'एनीमिया मुक्त भारत' जैसी पहलों से स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंच बढ़ी है, जिससे अभाव में कमी आई है।
रिपोर्ट की एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि शहरी इलाकों की तुलना में ग्रामीण भारत अधिक तेजी से आगे बढ़ रहा है। जहां शहरी आय 2.5 गुना बढ़ी है, वहीं ग्रामीण आय 2.6 गुना बढ़ी है। शहरी उपभोग की तुलना में ग्रामीण खपत भी तेजी से बढ़ी है, जिससे दोनों के बीच का अंतर कम हुआ है। 2011-12 में यह अंतर 84 फीसदी था, जो घटकर 71 फीसदी रह गया है। सरकारी सूत्रों ने कहा कि यह नरेंद्र मोदी की अगुआई वाली केंद्र सरकार के 'सबका साथ, सबका विकास' के आदर्श वाक्य को दिखाता है।