Zee Ent News: सोनी के साथ विलय रद्द होने के एक महीने के भीतर ही Zee को एक और करारा झटका लगा है। बाजार नियामक सेबी (SEBI) ने जी एंटरटेनमेंट एंटरप्राइजेज लिमिटेड के बही-खाते में 24.1 करोड़ डॉलर की हेरीफेरी पकड़ी है। जी फाउंडर्स की जांच में सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (SEBI) ने पाया कि कंपनी के खातों से 24.1 करोड़ डॉलर (2 हजार करोड़ रुपये) की हेराफेरी हुई है। यह आंकड़ा सेबी की जांच करने वालों के शुरुआती अनुमान से करीब दस गुना अधिक है। न्यूज एजेंसी ब्लूमबर्ग को यह जानकारी सूत्रों के हवाले से मिली है।
इस खबर का असर आज Zee के शेयरों पर साफ नजर आया। Zee के शेयर आज 12.72 फीसदी गिरकर 168.15 रुपए पर बंद हुए हैं। दिन भर के कारोबार के दौरान एक समय Zee के शेयर 163.175 रुपए के निचले लेवल पर आ गए थे।
हेरीफेरी के आंकड़े में हो सकता है बदलाव
सेबी ने जी एंटरटेनमेंट के खाते से करीब 2 हजार करोड़ रुपये की हेराफेरी को पकड़ा है। हालांकि कंपनी एग्जेक्यूटिव्स से मिली प्रतिक्रिया का जब सेबी रिव्यू करेगी तो हेराफेरी के इस आंकड़े में बदलाव हो सकता है। सेबी ने इस मामले को लेकर जी के फाउंडर्स सुभाष चंद्रा, उनके बेटे पुनीत गोएनता और बोर्ड के कुछ सदस्यों कों को बुलाया है। सेबी की तरफ से जब इसे लेकर सवाल पूछे गए तो कोई जवाब नहीं आया। वहीं दूसरी तरफ जी के प्रवक्ता ने फंड डायवर्जन यानी पैसों की हेराफेरी पर कुछ कहने से मना कर दिया लेकिन इतना जरूर कहा है कि सेबी ने जो भी जानकारियां मांगी हैं, उसे देने की तैयारी चल रही है।
Zee के पुनीत गोएनका की बढ़ी मुश्किलें
इस मामले ने जी के सीईओ पुनीत गोएनका की दिक्कतें बढ़ा दी हैं क्योंकि सोनी के साथ 1 हजार करोड़ डॉलर के विलय का प्रस्ताव खारिज होने के बाद वह निवेशकों को आश्वस्त कर रहे हैं कि इस पर फिर काम किया जा रहा है। एक मीडिया रिपोर्ट में ऐसा दावा किया है कि जी और सोनी के बीच इसे लेकर फिर बातचीत हो सकती है। पिछले महीने सोनी ने इस सौदे को रद्द कर दिया था। जी और सोनी के बीच सबसे बड़ा मुद्दा विलय के बाद बनने वाली एंटिटी को लीड करने को लेकर है कि इसे कौन लीड करेगा। सेबी की जांच के चलते सोनी गोएनका को यह जिम्मेदारी देने के लिए तैयार नहीं थी और दूसरी तरफ गोएनका सीईओ पद छोड़ने को तैयार नहीं थे। इसी कारण विलय सौदे से सोनी पीछे हटी थी। सेबी ने पिछले साल अगस्त में जी के फाउंडर्स सुभाष चंद्रा और पुनीत गोएनका को किसी भी लिस्टेड कंपनी में एग्जेक्यूटिव या डायरेक्टर पोजिशन लेने पर रोक लगा दिया था।