भारत की गरीबी दर 2022-23 में घटकर 4.5-5% रही, बीते एक दशक का सबसे निचला स्तर: SBI

SBI के मुख्य आर्थिक सलाहकार, सौम्य कांति घोष ने सर्वे के आंकड़ों का इस्तेमाल करते हुए 2022-23 में ग्रामीण भारत के लिए 1,622 रुपये और शहरी क्षेत्रों के लिए 1,929 रुपये की नई गरीबी रेखा का अनुमान लगाया, यह 2011-12 से क्रमश: 816 रुपये और 1,000 रुपये से अधिक है

अपडेटेड Feb 27, 2024 पर 3:02 PM
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प्रत्येक व्यक्ति का औसत मासिक खर्च 2011-12 के मुकाबले 40% बढ़कर 2008 रुपये हो गया है

वित्त वर्ष 2023 के दौरान देश में गरीबी का स्तर तेजी से घटा है। शहरी इलाकों में अब गरीबी 4.6 प्रतिशत और ग्रामीण इलाकों में 7.2 प्रतिशत है। SBI के मुख्य आर्थिक सलाहकार, सौम्य कांति घोष ने मंगलवार 27 फरवरी को ये बातें कही। उन्होंने कहा कि हालिया कंज्यूमर एक्सपेंडिटर रिपोर्ट से पता चलता है कि गरीबी का ये स्तर करीब एक दशक पहले 2011-12 शहरों इलाकों में रहे 13.7 प्रतिशत और गांवों के लिए 25.7 प्रतिशत से काफी कम है। घोष ने कहा, "यह संभव है कि 2021 की जनगणना पूरी होने और नई ग्रामीण-शहरी आबादी का हिस्सा जारी होने के बाद इन आंकड़ों में मामूली बदलाव हो सकता है। हमारा मानना है कि शहरी गरीबी और भी कम हो सकती है। कुल मिलाकर, हमारा मानना है कि भारत में गरीबी दर अब यह 4.5-5 प्रतिशत के दायरे में रह गई है।''

उन्होंने कहा, "अहम बात यह है कि जिन राज्यों को कभी पिछड़ा माना जाता था, वे ग्रामीण और शहरी अंतर को पाटने में अधिकतम सुधार दिखा रहे हैं। बिहार, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों ने उन फैक्टर्स पर जोर दिया है, जो ग्रामीण इकोसिस्टम के लिए काफी अहम है।"

बता दें कि भारत सरकार के स्टैटिस्टिक्स मिनिस्ट्री ने बीते 24 फरवरी को अपना कंज्यूमर एक्सपेंडिचर सर्वे 2022-23 (अगस्त-जुलाई) जारी किया था। इसमें कहा गया था कि प्रत्येक व्यक्ति का औसत मासिक खर्च साल 2011-12 के मुकाबले 40 फीसदी बढ़कर 2008 रुपये हो गया है, वहीं शहरी इलाकों में यह मंहगाई दर के एडजस्टमेंट के बाद 33 प्रतिशत बढ़कर 3,510 रुपये रहा है।


घोष के मुताबिक, ग्रामीण गरीबी में तेजी से गिरावट इस बार का "संकेत है कि समाज के निचले पायदान पर खड़े लोगों के लिए सरकार की ओर से चलाई जा रही विभिन्न योजनाएं, ग्रामीण आबादी की आजीविका पर अहम लाभकारी छोड़ रही हैं"।

सर्वे के आंकड़ों का इस्तेमाल करते हुए, घोष ने 2022-23 में ग्रामीण भारत के लिए 1,622 रुपये और शहरी क्षेत्रों के लिए 1,929 रुपये की नई गरीबी रेखा का अनुमान लगाया, यह 2011-12 से क्रमश: 816 रुपये और 1,000 रुपये से अधिक है।

घोष ने यह भी पाया कि ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों के खपत असमानता में गिरावट आई है। साथ ही ग्रामीण इलाकों में खपत, शहरी खपत के मुकाबले तेजी से बढ़ रहा है। हालिया सर्वे से यह भी पता चला है कि ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में खाने-पीने की वस्तुओं पर खर्च करने में कमी आई है, इसकी जगह विभिन्न तरह की सेवाओं और सुविधाओं पर अब पहले से अधिक खर्च कर रहे हैं।

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First Published: Feb 27, 2024 3:02 PM

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