फार्मास्युटिकल सेक्टर के लिए सरकार एक नई प्रोडक्शन-लिंक्ड इनसेंटिव (PLI) स्कीम शुरू करने पर विचार कर रही है। इसका उद्देश्य एक्टिव फार्मास्युटिकल इंग्रीडेंट्स (API) के निर्माण से जुड़े अहम केमिकल्स के देश में उत्पादन को बढ़ावा देना है। सूत्रों ने मनीकंट्रोल को बताया कि API के मामले में भारतीय कंपनियों की चीन पर निर्भरता को कम करना उद्देश्य से इस स्कीम पर विचार हो रहा है। मामले से वाकिफ एक व्यक्ति ने मनीकंट्रोल को बताया, “मौजूदा PLI स्कीम में फार्मा सेक्टर की पूरी वैल्यू चेन शामिल नहीं, है जिसके कारण दवाओं को बनाने में इस्तेमाल होने वाले ये केमिकल्स अभी भी चीन से थोक में आयात किए जाते हैं।”
उन्होंने कहा, ''नई पीएलआई स्कीम नई सरकार के गठन के बाद ही आ सकती है और अगले केंद्रीय बजट का हिस्सा हो सकती है।''
रेटिंग एजेंसी केयरएज की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत के कुल फार्मा आयात में चीन का हिस्सा करीब 55-66 प्रतिशत है और आने वाले सालों में भी इसके ऊंचे स्तर पर बने रहने की उम्मीद है।
केयर रेटिंग्स की रिपोर्ट के अनुसार, चीन से थोक दवाओं के आयात की राशि और मात्रा दोनों के मामले में बढ़ोतरी हो रही है। वित्त वर्ष 2014 में यह क्रमश: 64 और 62 प्रतिशत था, जो वित्त वर्ष 2033 में बढ़कर क्रमश: 71 और 75 प्रतिशत हो गया।
सूत्र ने बताया, “इन केमिकल्स को बनाने की चीन की यूनिट लागत बहुत कम है, जिसके कारण भारतीय कंपनियां API को बनाने के लिए उसे आयात करती है। साथ ही, ये केमिकल अत्यधिक प्रदूषणकारी होते हैं। सरकार इन रसायनों को इसके दायरे में शामिल करने के लिए फार्मा सेक्टर में मौजूदा PLI स्कीम को संशोधित करने पर भी विचार कर सकती है।”
एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने इससे पहले मनीकंट्रोल को बताया था कि फार्मा सेक्टर की मौजूदा PLI स्कीम पूरी सप्लाई को कवर नहीं करता है, जिससे सवाल खड़े हो गए हैं।
मौजूदा फार्मा PLI स्कीम के तहत, देश में प्रमुख शुरुआती सामग्री, ड्रग इंटरमिडियरीज और एपीआई के उत्पादन के लिए इंडस्ट्री को बढ़ावा दिया जाता है। उन्होंने कहा, “लेकिन चीन ने उन केमिकल्स की कीमतें कम कर दी हैं, जिनका इस्तेमाल एपीआई बनाने में कच्चे माल के तौर पर होता है। ऐसे में वे कंपनियों जो PLI योजना का हिस्सा नहीं हैं, वे भी चीन से सस्ते भाव में केमिकल्स खरीदने के चलते एपीआई लागत की बराबरी करने में सक्षम हैं।"
जरूरी फार्मा उत्पादों के लिए एक ही देश पर बहुत अधिक निर्भर रहना भारत के फार्मा सेक्टर के लिए जोखिम पैदा करता है, क्योंकि सप्लाई चेन में व्यवधान से कमी और उत्पादन में देरी हो सकती है।