Economic Survey 2022: आर्थिक सर्वे ने पेश की अर्थव्यस्था की सुनहरी तस्वीर, बजट में ग्रोथ को तेज करने पर होगा जोर

विदेशी मुद्रा भंडार की स्थिति में देश में काफी बेहतर है। पिछले साल 31 दिसंबर तक भारत का फॉरेक्स रिजर्व 634 अरब डॉलर था, जिसके पीछे मुख्य कारण पिछले दोनों वित्त वर्षों के दौरान विश्व व्यापार में भारत का भुगतान संतुलन पॉजिटिव रहना है। यह रिजर्व 13.2 महीनों के मर्चेंडाइज आयात के लिए पर्याप्त है

अपडेटेड Jan 31, 2022 पर 10:05 PM
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आर्थिक सर्वे को देखकर यह उम्मीद है कि बजट में इस साल ग्रोथ पर फोकस होगा

भुवन भास्कर

आम बजट 2022-23 से एक दिन पहले पेश आर्थिक सर्वेक्षण 2021-22 ने देश की अर्थव्यवस्था की जो तस्वीर सामने रखी है, उसने बजट से उम्मीदों को और बढ़ा दिया है। सर्वे का लब्बोलुआब यह है कि कोरोना और उसकी मुश्किलें अतीत की बात हो चुकी हैं और अब देश पीछे मुड़कर देखने को तैयार नहीं है। सरकार ने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के हवाले से कहा है कि अगले दो वर्षों में भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बनकर उभरने वाला है। चालू साल में 9.2% की वृद्धि दर हासिल करने की उम्मीद के बाद अब अगले साल यानी 2022-23 में अर्थव्यवस्था के 8-8.5% की रफ्तार से बढ़ने की संभावना जताई गई है।

इस साल कृषि क्षेत्र की ग्रोथ रेट 3.9% रहने की उम्मीद है, जो कि पिछले साल 3.2% रही थी। सेक्टर आधारित यह ग्रोथ व्यापक है और लगभग हर सेक्टर 2021-22 के दौरान जबर्दस्त वृद्धि दर्ज करने की राह पर है। औद्योगिक क्षेत्र में चालू वर्ष के दौरान 11.8% की वृद्धि रहने का अनुमान है, जबकि पिछले वर्ष इसमें 7% की कमी दर्ज की गई थी। सेवा क्षेत्र में भी इस वर्ष 8.4% की वृद्धि रहने की उम्मीद है, जबकि 2020-21 के दौरान यह 8.2% संकुचित हुई थी। इतना ही नहीं, अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों में भी 2021-22 के संकेत काफी उत्साहजनक रहे हैं।


देश का कुल निर्यात रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचा है। जहां 2020-21 के दौरान निर्यात में 4.7% की कमी आई थी, वहीं चालू वर्ष में इसके 16.5% बढ़ने की उम्मीद है। हालांकि निर्यात से ज्यादा तेजी आयात में दर्ज की गई है, जो कि पिछले साल 13.6% घटा था, जबकि इस साल इसमें 29.4% वृद्धि की संभावना है। आयात में इतनी जबर्दस्त वृद्धि का कारण खपत में हुई बढ़ोतरी में देखा जा सकता है।

कुल मिलाकर चालू साल में खपत लगभग 7% बढ़ने की संभावना है। इसमें खास बात यह है कि खपत बढ़ाने में सरकार और निजी क्षेत्र की लगभग बराबर भागीदारी है। सरकारी खपत पिछले साल के 2.9% से बढ़कर इस साल 7.6% रहने की संभावना है, जबकि निजी क्षेत्र जिसने पिछले साल खपत में 9% से ज्यादा की कमी की थी, इस साल 6.9% ज्यादा खपत कर रहा है। यह कोविड से पूर्व निजी क्षेत्र की खपत का लगभग 97% है।

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खपत के अलावा निवेश में भी स्थितियां काफी सुधरी हैं। निवेश, जिसकी गणना ग्रॉस फिक्स्ड कैपिटल फॉर्मेशन (GFCF) के रूप में की जाती है और जो भविष्य में आमदनी पैदा करने के लिहाज से एक महत्वपूर्ण कारक है, में 15% की वृद्धि का अनुमान है, जो कि पिछले साल लगभग 11% घटा था। इतना ही नहीं, सरकार ने पूंजीगत व्यय और इंफ्रास्ट्रक्चर पर जो खर्च किए हैं, उसके कारण 2021-22 में निवेश और GDP का अनुपात बढ़कर 29.6% तक पहुंच गया है, जो कि पिछले 7 वर्षों का उच्चतम स्तर है।

विदेशी मुद्रा भंडार की स्थिति में देश में काफी बेहतर है। पिछले साल 31 दिसंबर तक भारत का फॉरेक्स रिजर्व 634 अरब डॉलर था, जिसके पीछे मुख्य कारण पिछले दोनों वित्त वर्षों के दौरान विश्व व्यापार में भारत का भुगतान संतुलन पॉजिटिव रहना है। यह रिजर्व 13.2 महीनों के मर्चेंडाइज आयात के लिए पर्याप्त है।

सर्वे से यह भी संकेत मिल रहा है कि वित्तीय घाटे के मोर्चे पर स्थितियां पूरी तरह नियंत्रण में हैं। सर्वे कहता है कि लगातार बेहतर राजस्व आने से अप्रैल-नवंबर 2021 के दौरान वित्तीय घाटा पूरे साल के बजटीय अनुमान का सिर्फ 46.2% पहुंचा है, जबकि अप्रैल-नवंबर 2020 के दौरान यह 135% से अधिक और अप्रैल-नवंबर 2019 के दौरान यह 114% से ज्यादा हो चुका था।

लेकिन इन तमाम सकारात्मक संकेतों के बीच सर्वे ने 2022-23 की चुनौतियों की भी झलक कहीं-कहीं दी है। सर्वे में राजस्व वसूली में हुई जबर्दस्त बढ़त के आंकड़ों का यह कहकर स्वागत किया गया है कि यदि सरकार को अर्थव्यवस्था के लिए और मदद देने की जरूरत पड़ी, तो इस लिहाज से सरकार के पास पर्याप्त फंड हैं। अप्रैल-नवंबर 2021 के दौरान सालाना आधार पर राजस्व वसूली में 67% की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। इसके साथ ही विदेश मुद्रा भंडार के स्थिति का जिक्र करते हुए सर्वे में कहा गया है कि 2022-23 के दौरान वैश्विक वित्त बाजारों से लिक्विडिटी खत्म होने की स्थिति में भारत अपनी स्थिति मैनेज करने में पूरी तरह सक्षम होगा।

सर्वे में ग्रोथ के जिन लक्ष्यों की घोषणा की गई है, उनके लिए कुछ मूलभूत शर्तें भी गिनाई गई हैं। इनमें महामारी से और आर्थिक अवरोध उत्पन्न न होने, मॉनसून के सामान्य रहने, दुनिया भर के बैंकों द्वारा लिक्विडिटी कम करने की योजना के योजनापूर्वक क्रियान्वित होने और कच्चे तेल के 70-75 डॉलर प्रति बैरल के दायरे में बने रहने की उम्मीद शामिल हैं। जाहिर है मानसून और महामारी को छोड़ दें, तो लिक्विडिटी और कच्चा तेल (जो कि पहले ही 90 डॉलर का स्तर पार कर चुक है) वित्त मंत्री के गणित को बड़ी चुनौती दे सकते हैं।

नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने शाम को एक निजी चैनल से बातचीत में कहा कि उन्हें उम्मीद है कि 2022-23 के दौरान निजी क्षेत्र की ओर से निवेश में तेजी आएगी और इससे रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे। एयर इंडिया के विनिवेश से सरकार बेहद उत्साहित नजर आ रही है और इसलिए सर्वे में 2024-25 तक विनिवेश से रकम जुटाने की एक पाइपलाइन भी पेश की गई है, जिसे नेशनल मॉनेटाइजेशन पाइपलाइन कहा गया है। इसमें अगले 4 वर्षों में सरकारी परिसंपत्तियों की बिक्री से 6 लाख करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य है। इसके तहत जो 5 शीर्ष सेक्टर गिनाए गए हैं, वे हैं सड़क, रेल, बिजली, तेल एवं गैस पाइपलाइन और टेलीकॉम, जिनकी हिस्सेदारी कुल लक्षित फंड में 83% होगी।

रोजगार सृजन का जिक्र करते हुए सर्वे में मनरेगा का विशेष उल्लेख किया गया है और कहा गया है कि 2020-21 में योजना के तहत 1,11,171 करोड़ रुपये जारी किए गये, जबकि 2021-22 में इस योजना से 68,233 करोड़ रुपये की मजदूरी का भुगतान हुआ।

(लेखक कृषि और आर्थिक मामलों के जानकार हैं)

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First Published: Jan 31, 2022 9:58 PM

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