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Budget 2024 : यूनियन बजट 2024 में PSU बैंकों के प्राइवेटाइजेशन का ब्लूप्रिंट हो सकता है

Budget 2024 : 2024 में सरकार का फोकस सरकारी बैंकों के प्राइवेटाइजेशन पर हो सकता है। कम से कम सरकारी हलकों में इसकी चर्चा सुनने को मिल रही है। लेकिन, इसके लिए हमें यूनियन बजट 2024 का इंतजार करना होगा। वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण 1 फरवरी को पेश करेंगी। बजट भाषण में इस बारे में सरकार ब्लूप्रिंट पेश कर सकती है

MoneyControl Newsअपडेटेड Jan 01, 2024 पर 4:42 PM
Budget 2024 : यूनियन बजट 2024 में PSU बैंकों के प्राइवेटाइजेशन का ब्लूप्रिंट हो सकता है
Budget 2024 : हाल में राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा का पलड़ा भारी रहा है। अगर इस साल लोकसभा चुनावों में एनडीए की जीत के बाद केंद्र में फिर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार बनती है तो सरकार को बैंकों के निजीकरण की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में दिक्कत नहीं आएगी।

Budget 2024 : सरकारी बैंकों का निजीकरण करना सरकार के लिए मुश्किल काम रहा है। एनडीए और यूपीए दोनों ने ही सरकारों ने इसे अपने टॉप रिफॉर्म प्लान का हिस्सा बनाया था। दोनों ने बड़े वादे भी किए थे। लेकिन, ये वादे कागजों पर सिमट कर रह गए। इसमें सबसे बड़ी कमी राजनीतिक इच्छाशक्ति की रही। सरकार ने 2019-20 में 10 सरकारी बैंकों का विलय चार बैंकों में किया था। उसके बाद सरकार ने LIC को IDBI में बड़ी हिस्सेदारी खरीदने को कहा। 2024 में सरकार का फोकस सरकारी बैंकों के प्राइवेटाइजेशन पर हो सकता है। कम से कम सरकारी हलकों में इसकी चर्चा सुनने को मिल रही है। लेकिन, इसके लिए हमें यूनियन बजट 2024 (Union Budget 2004) का इंतजार करना होगा। वित्तमंत्री Nirmala Sitharaman 1 फरवरी को पेश करेंगी। बजट भाषण में इस बारे में सरकार ब्लूप्रिंट पेश कर सकती है।

निजीकरण के रास्ते मे कई मुश्किल

सवाल है कि क्या वास्तव में निजीकरण होगा? दरअसल सरकारी बैंकों के सामने कई तरह की चुनौतियां हैं। अब भी इन बैंकों में एंप्लॉयीज ट्रेड यूनियंस का बड़ा असर है। दूसरा बड़ा मसला यह है कि अब भी इन बैंकों के कामकाज का तरीका सरकारी है। इसका मतलब है कि इन बैंकों में कामकाज का माहौल प्राइवेट और न्यू एज बैंकों से काफी अलग है। ऐसे में इन्हें खरीदने वाले बैंक या वित्तीय संस्थाओं को सबसे पहले इनमें बदलाव की कोशिश करनी होगी। प्राइवेटाइजेशन का मसला राजीनितिक रूप से भी काफी संवेदनशील है। पहले सरकार बैंकों के निजीकरण के फैसले का राजनीतिक विरोध हुआ है। हालांकि, इस साल रिफॉर्म्स के लिहाज से राजनीतिक तस्वीर बेहतर होती दिख रही है।

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