Budget 2024 : वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण बजट 2024 में MGNREGA के लिए बढ़ा सकती हैं आवंटन

Budget 2024 : यूनियन बजट 2023 में वित्तमंत्री ने इस स्कीम के लिए 60,000 करोड़ रुपये का आवंटन किया था। लेकिन, इस वित्त वर्ष (2023-24) में इस स्कीम पर सरकार का कुल खर्च बजट आवंटन से ज्यादा रहेगा। इस स्कीम का पूरा नाम महात्मा गांधी नेशनल रूरल एंप्लॉयमेंट गारंटी एक्ट है। यह एक सामाजिक सुरक्षा स्कीम है

अपडेटेड Dec 27, 2023 पर 12:20 PM
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Interim Budget : मनरेगा एक डिमांड आधारित रोजगार योजना है। इसका मकसद ग्रामीण इलाकों में ऐसे वक्त रोजगार उपलब्ध कराना है, जब कृषि से जुड़ी गतिविधियां कम होती हैं। इससे लोगों के हाथ में अपनी बुनियादी जरूरतें पूरा करने के लिए पैसा आता है। इससे उन्हें आर्थिक तंगी का सामना नहीं करना पड़ता है।

Budget 2024 : फाइनेंस मिनिस्टर निर्मला सीतारमण यूनियन बजट 2024  में मनरेगा (MGNREGA) के लिए आवंटन बढ़ा सकती हैं। सीतारमण 1 फरवरी, 2024 को यूनियन बजट (Union Budget 2024) पेश करेंगी। यूनियन बजट 2023 में वित्तमंत्री ने इस स्कीम के लिए 60,000 करोड़ रुपये का आवंटन किया था। लेकिन, इस वित्त वर्ष (2023-24) में इस स्कीम पर सरकार का कुल खर्च बजट आवंटन से ज्यादा रहेगा। इस स्कीम का पूरा नाम महात्मा गांधी नेशनल रूरल एंप्लॉयमेंट गारंटी एक्ट है। यह एक सामाजिक सुरक्षा स्कीम है।

यह स्कीम 2008 में देशभर में लागू हुई थी

सरकार ने इस एक्ट को अगस्त 2005 में संसद में पारित कराया था। फरवरी 2006 में इसे देश के ज्यादा गरीब जिलों में लागू किया गया। 2008 में यह स्कीम देशभर में लागू कर दी गई। यह स्कीम ग्रामीण इलाकों के लिए है। इसके तहत ग्रामीण इलाकों में हर परिवार के एक सदस्य को एक वित्त वर्ष में 100 दिन के रोजगार की गांरटी दी जाती है। कोरोना की महामारी के दौरान यह स्कीम बहुत फायदेमंद साबित हुई थी।


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यह योजना इसलिए शुरू की गई थी

मनरेगा एक डिमांड आधारित रोजगार योजना है। इसका मकसद ग्रामीण इलाकों में ऐसे वक्त रोजगार उपलब्ध कराना है, जब कृषि से जुड़ी गतिविधियां कम होती हैं। इससे लोगों के हाथ में अपनी बुनियादी जरूरतें पूरा करने के लिए पैसा आता है। इससे उन्हें आर्थिक तंगी का सामना नहीं करना पड़ता है। वित्त वर्ष 2014-15 में मनरेगा के लिए सरकार ने बजट में 34,000 करोड़ रुपये का आवंटन किया था। 2015-16 में यह आवंटन बढ़कर 34,699 करोड़ रुपये हो गया। 2016-17 में यह 38,500 करोड़ रुपये हो गया। 2017-18 में यह बढ़कर 48,000 करोड़ रुपये पहुंच गया। 2018-19 में यह 55,000 करोड़ रुपये था। 2019-20 में यह 60,000 करोड़ रुपये हो गया।

पिछले कुछ सालों में सरकार ने घटाया है आवंटन

सरकार ने वित्त वर्ष 2020-21 में मनरेगा के लिए आवंटन 13 फीसदी घटाकर 61,500 करोड़ रुपये कर दिया। दरअसल, 2019-20 में इस स्कीम पर वास्तविक खर्च बढ़कर 71,002 करोड़ रुपये हो गया था। कोरोना की महामारी के दौरान इस स्कीम की मांग काफी ज्यादा बढ़ गई। इस स्कीम को संकट के वक्त लोगों के हाथ में पैसे पहुंचाने का बड़ा जरिया माना गया। तब आत्मनिर्भर भारत के पैकेज के तहत इस स्कीम के लिए आवंटन बढ़ाकर 1.11 लाख करोड़ रुपये कर दिया गया था। वित्त वर्ष 2023-24 में सरकार ने इस स्कीम के लिए आवंटन 33 फीसदी घटाकर 60,000 करोड़ रुपये कर दिया। 33 फीसदी की यह कमी वित्त वर्ष 2022-23 में इस स्कीम के लिए 89,400 करोड़ रुपये के संशोधित बजट अनुमान के मुकाबले की गई।

इस वित्त वर्ष में वास्तविक खर्च बजट में आवंटित रकम से ज्यादा

इस वित्त वर्ष (2023-24) में मनरेगा पर सरकार 19 दिसंबर तक 79,770 करोड़ रुपये खर्च कर चुकी है। यह बजट 2023 में इस प्रोग्राम के लिए 60,000 करोड़ रुपये के प्रावधान से काफी ज्यादा है। फर्स्ट सप्लमेंटरी डिमांड के ग्रांट के तहत अतिरिक्त 14,520 करोड़ रुपये आवंटित किए जा चुके हैं। ऐसे में 31 मार्च तक इस वित्त वर्ष के खत्म होने पर मनरेगा पर सरकार का वास्तविक खर्च काफी ज्यादा रह सकता है। सरकार के डेटा के मुताबिक, इस वित्त वर्ष में मनरेगा की मांग बढ़ने की वजह मानसून को लेकर अनिश्चितता रही है।

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First Published: Dec 27, 2023 12:16 PM

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