Budget 2024-25 : यूनियन बजट 2024 (Union Budget 2024) पेश होने से पहले फिस्कल डेफिसिट की काफी चर्चा हो रही है। वित्तमंत्री Nirmala Sitharaman 1 फरवरी, 2024 को वित्त वर्ष 2024 में फिस्कल डेफिसिट के टारगेट का ऐलान करेंगी। यूनियन बजट 2023 में उन्होंने वित्त वर्ष 2023-24 के लिए फिस्कल डेफिसिट का 5.9 फीसदी का टारगेट तय किया था। एक्सपर्ट्स का कहना है कि फिस्कल डेफिसिट इस टारगेट के अंदर रहने की उम्मीद है। ऐसे में वित्तमंत्री अगले वित्त वर्ष के लिए फिस्कल डेफिसिट का कम टारगेट तय कर सकती हैं। मनीकंट्रोल ने यह जानने की कोशिश की है कि दूसरे देशों का फिस्कल डेफिसिट कितना है। हम यह भी जानने की कोशिश करेंग कि क्या इंडिया का फिस्कल डेफिसिट खतरनाक लेवल पर पहुंच गया है।
इंडोनेशिया का फिस्कल डेफिसिट सबसे कम
इस वित्त वर्ष में केंद्र और राज्यों को मिलाकर फिस्कल डेफिसिट 8 फीसदी से ज्यादा रहने का अनुमान है। एशियाई देश इंडोनेशिया का फिस्कल डेफिसिट 2 फीसदी से थोड़ा ज्यादा रहने की उम्मीद है। थाइलेंड का फिस्कल डेफिसिट करीब 3 फीसदी रहने का अनुमान है। फिलिपींस का फिस्कल डेफिसिट इस वित्त वर्ष में 4 फीसदी को पार कर सकता है। ब्राजील का फिस्कल डेफिसिट 6 फीसदी रह सकता है। दक्षिण अफ्रीका का फिस्कल डेफिसिट 6 फीसदी से ज्यादा रहने की उम्मीद है। उधर, चीन का फिस्कल डेफिसिट 7 फीसदी के करीब रहने का अनुमान है।
फिस्कल डेफिसिट घटाने पर बढ़ सकता है फोकस
इंडिया का फिस्कल डेफिसिट 2018 के मुकाबले काफी कम है। दूसरे देशों के मामले में भी ऐसी ही स्थिति है। फिर, कोरोना की महामारी शुरू होने के बाद दुनियाभर में फिस्कल डेफिसिट में वृद्धि देखने को मिली। अब इंडिया फिर से तेज इकोनॉमिक ग्रोथ के रास्ते पर लौट आया है। ऐसे में सरकार का फोकस फिस्कल डेफिसिट में कमी करने पर हो सकता है। 15वें वित्त आयोग ने वित्त वर्ष 2025-26 तक फिस्कल डेफिसिट को कम कर 4.5 फीसदी पर लाने का लक्ष्य तय किया है। इसलिए एक्सपर्ट्स का कहना है कि सरकार 1 फरवरी को पेश होने वाले यूनियन बजट में फिस्कल डेफिसिट का टारगेट कम रख सकती है।
फिस्कल डेफिसिट का मतलब क्या है
फिस्कल डेफिसिट सरकार की फिस्कल पॉलिसी का अहम हिस्सा है। यह सरकार की इनकम और खर्च के बीच का अंतर है। फिस्कल डेफिसिट से यह पता चलता है कि सरकार को अपने खर्च को पूरा करने के लिए कितना पैसा उधार लेना पड़ेगा। इनकम और खर्च के बीच अंतर जितना ज्यादा होता है, सरकार को उतना ज्यादा पैसे मार्केट से उधार लेने पड़ते हैं। आम तौर पर सरकार टैक्स और दूसरे स्रोतों से हासिल पैसे से अपनी जरूरतें पूरी करती है। दुनिया में शायद ही कोई बड़ा देश होगा, जिसके पास वित्त वर्ष के अंत में सरप्लस पैसा होता है।