सुप्रीम कोर्ट ने योग गुरु रामदेव की कंपनी पतंजलि आयुर्वेद (Patanjali Ayurved) और उसके मैनेजिंग डायरेक्टर बालकृष्ण को कारण बताओ नोटिस जारी किया है। उन्हें यह नोटिस कंपनी की भ्रामक विज्ञापन से जुड़ी सुनवाई के दौरान जारी किया गया। अदालत ने कंपनी को ऐसे किसी भी विज्ञापन देने पर रोक लगा दी है, जिसमें ब्लड प्रेशर, शुगर, बुखार, मिर्गी आदि उन बामारियों के इलाज का दावा किया जाता हो, जो औषधि और जुगाई उपचार अधिनियम (आपत्तिजनक विज्ञापन) के दायरे में आती हैं। इस कानून के दायरे में 54 बीमारियां शामिल हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'पूरे देश को बेवकूफ बनाया जा रहा है और सरकार अपनी आखें बंद कर बैठी है।' अदालत ने इस मामले में सुस्त रवैया अपनाने को लेकर सरकार की भी आलोचना की। साथ ही, सरकार से हलफनामा दायर कर यह बताने को कहा गया है कि कंपनियां द्वारा गलत तरीके से दवाओं के प्रचार-प्रसार को रोकने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं।
मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस अहसानुद्दीन ने कहा, 'हमारे आदेश के बाद भी आपने यह विज्ञापन लाने की हिम्मत की है। मैं प्रिंटआउट और अन्य चीजें लेकर आया हूं। हम आज बहुत सख्त आदेश पारित करने जा रहे हैं। इस विज्ञापन को देखिए। आप कैसे कह सकते हैं कि आप सब ठीक कर देंगे। हमारी चेतावनी के बावजूद आप विज्ञापन जारी कर रहे हैं और कह रहे हैं कि हमारी चीजें रसायन आधारित दवाओं से बेहतर हैं।'
पतंजलि आयुर्वेद के भ्रामक विज्ञापनों के खिलाफ इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) ने याचिका दायर की थी। याचिका में ठोस प्रमाणों पर आधारित दवाओं को बदनाम करने के लिए रामदेव और पतंजिल आयुर्वेद के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की गई है। अदालत ने पिछली सुनवाई में पतंजलि को ऐसे विज्ञापन प्रकाशित नहीं करने का आदेश दिया था।
बाबा रामदेव की कंपनी पतंजलि आयुर्वेद पर आधुनिक चिकित्सा प्रणाली के खिलाफभ्रामक विज्ञापन छापने का आरोप है। आरोप के मुताबिक, इन विज्ञापनों में पतंजलि की दवाओं से मरीजों को ठीक करने का दावा भी किया जाता है। अदालत इस मामले में पहले भी पतंजिल को फटकार लगा चुकी है।