राजस्थान (Rajasthan) में बीजेपी (BJP) जहां जीत का जश्न मना रही है, वहीं कांग्रेस हार के कारणों की तलाश में जुटी है। पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राधे और बीजेपी आलाकमान के बीच मतभेद के बावजूद पार्टी ने राज्य में शानदार वापसी की है। अशोक गहलोत की कल्याणकारी योजनओं के बावजूद बीजेपी के सत्ता में आने की कुछ खास वजहें हैं। हम आपको ऐसे ही 5 वजहों के बारे में बता रहे हैं।
1] गहलोत की कल्याणकारी योजनाओं पर भारी पड़ा मोदी का जलवा
राजस्थान चुनाव सीधे तौर पर पीएम-सीएम का मुकाबला था, जहां अहम सवाल यह था कि क्या मोदी का जादू, 'जादूगर' गहलोत की कल्याणकारी योजनाओं के आगे टिक पाएगा। प्रधानमंत्री मोदी ने चुनाव को दो दिग्गजों के बीच मुकाबले में तब्दील कर दिया और ऐसा लगता है कि उनकी अपील और उनका चुनाव प्रचार बीजेपी की सत्ता में वापसी कराने में सफल रहा। चुनावी साल में मोदी ने राजस्थान का ताबड़तोड़ दौरा कर राज्य के हर हिस्से में रैलियों को संबोधित किया। कैंपेन के आखिरी चरण में उनका शानदार रोड शो देखने को मिला और इस तरह से उनकी मेहनत रंग लाई।
2] राजे की चुनौती से निपटने में पार्टी ने दिखाई समझदारी
बीजेपी ने टिकटों के बंटवारे में काफी नरमी बरती और इसका फायदा उसे मिला। उम्मीदवारों की पहली लिस्ट जारी होने के बाद पार्टी में काफी बगावत देखने को मिली थी, क्योंकि इसमें वसुंधरा राजे समर्थक नेताओं की अनदेखी की गई थी। हालांकि, बाद की सूचियों में पार्टी ने वसुंधरा समर्थकों के लिए काफी हद तक गुंजाइश बनाई। साथ ही, सामूहिक नेतृत्व के नारे से पार्टी को आंतरिक कलह की चुनौती से भी निपटने में मदद मिली। सात सांसदों को चुनाव लड़ाकर बीजेपी ने यह संदेश दिया कि वह राजस्थान में चुनाव जीतने को लेकर कितनी गंभीर है।
3] पेपर लीक को लेकर युवाओं के गुस्से का मिला फायदा
इस बार राज्य में 22 लाख नए वोटर जुड़े थे, लिहाजा यहां युवाओं का वोट काफी अहम था। बीजेपी ने पेपर लीक मसले को काफी बेहतर तरीके से भुनाया। हाल के वर्षों में राज्य में भर्ती से जुड़ी कई परीक्षाओं के पर्चे लीक हुए थे, जिसका असर राज्य के लाखों बेरोजगार युवाओं पर पड़ा था। राजस्थान कांग्रेस के अध्यक्ष और शिक्षा मंत्री रहे गोविंद सिंह दोतसारा की भी इसमें भूमिका माना जा रही थी और इससे कांग्रेस की छवि को नुकसान पहुंचा। बहरहाल, कांग्रेस ने यह बताने का प्रयास किया कि पेपर लीक की समस्या तकरीबन सभी बड़े राज्यों में रही है, लेकिन यह मुद्दा काफी तेजी से उछल गया।
4] हिंदुत्व एजेंडा और ध्रुवीकरण का मुद्दा
बेशक यह एक राज्य का चुनाव था जहां स्थानीय मुद्दे हावी थे, लेकिन बीजेपी नेतृत्व ने इस चुनाव में हिंदुत्व से जुड़े मुद्दों का भी जमकर इस्तेमाल किया। प्रधानमंत्री मोदी ने खुद उदयपुर में दो मुसलमानों द्वारा कन्हैया लाल की हत्या किए जाने का मुद्दा उठाया और सभी बीजेपी नेताओं ने लगातार 'तुष्टीकरण की राजनीति' को लेकर हमला बोला। साथ ही, सनातन धर्म को 'कांग्रेस और उसके नेताओं' के हमले से बचाने की जरूरत भी बताई। बाबा बालकनाथ जैसे हिंदू कट्टरपंथी को टिकट देकर और अयोध्या में भव्य राम मंदिर के निर्माण के प्रचार-प्रसार के जरिये बीजेपी ने वोटरों को लुभाने की कोशिश की।
5] मौजूदा विधायकों के खिलाफ नाराजगी और गहलोत-पायलट विवाद का असर
मुख्यमंत्री गहलोत की कल्याणकारी योजनाओं की वजह से उनकी सरकार के खिलाफ गुस्सा थोड़ा कम हुआ, लेकिन कांग्रेस के मौजूदा विधायकों के खिलाफ नाराजगी कायम थी। इनमें से कई विधायकों को भ्रष्ट और बुरे बर्ताव वाला माना जाता था। विधायकों की खराब छवि के बावजूद कांग्रेस ने उनका टिकट नहीं काटा और कई सीटों पर इसका खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ा।
बीजेपी ने अपने चुनाव प्रचार में गहलोत-पायलट के झगड़े को भी जमकर उछाला। उसका कहना था कि इस विवाद की वजह से राज्य के विकास को धक्का पहुंचा। आखिरी चरण के चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी ने स्वर्गीय राजेश पायलट को भी इस मामले में घसीट लिया और कहा कि सचिन पायलट को उनके पिताजी द्वारा गांधी परिवार की अवहेलना करने की सजा मिल रही है। बहरहाल, गहलोत-पायलट के बीच विवाद की यादें लोगों के जेहन में मौजूद थीं।