Rajasthan Election 2023: 'ये मैडम का राज है' अपने गढ़ में वुसंधरा राजे का कायम है दबदबा, लोग पूछ रहे हैं- वे नहीं तो कौन?
Rajasthan Election 2023: इस चुनाव में भी, बीजेपी को इस क्षेत्र में बढ़त मिलती दिख रही है, जिसमें कोटा, बूंदी, बारां और झालावाड़ जैसे जिलों में फैली 17 विधानसभा सीटें हैं। हालांकि, इस बार यहां उत्साह कम है और राज्य के दूसरे इलाकों की तरह कोई सीधी लहर नहीं है। इसके दो कारण हैं। एक तो वर्तमान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खिलाफ जमीन पर गुस्से नहीं है। उनकी सरकार की योजनाओं और सामाजिक न्याय पहलों की सराहना की जा रही है
अपने गढ़ में वुसंधरा राजे का कायम है दबदबा, लोग पूछ रहे हैं- वे नहीं तो कौन?
Rajasthan Election 2023: हाड़ौती रीजन, जहां अभी भी बूंदी साम्राज्य के अवशेष हैं, राजस्थान में हमेशा से बीजेपी का गढ़ रहा है। इसके दोनों दिग्गज राज्य के पहले गैर-कांग्रेसी मुख्यमंत्री भैरों सिंह शेखावत (Bhairon Singh Shekhawat) और वसुंधरा राजे (Vasundhara Raje) इसी क्षेत्र से जीते थे। शेखावत ने पहली बार 1977 में छबड़ा सीट जीती थी और राजे 20 साल से झालरापाटन का प्रतिनिधित्व कर रही हैं। इस चुनाव में भी, बीजेपी को इस क्षेत्र में बढ़त मिलती दिख रही है, जिसमें कोटा, बूंदी, बारां और झालावाड़ जैसे जिलों में फैली 17 विधानसभा सीटें हैं। हालांकि, इस बार यहां उत्साह कम है और राज्य के दूसरे इलाकों की तरह कोई सीधी लहर नहीं है।
India Express के मुताबिक, इसके दो कारण हैं। एक तो वर्तमान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खिलाफ जमीन पर गुस्से नहीं है। उनकी सरकार की योजनाओं और सामाजिक न्याय पहलों की सराहना की जा रही है, लेकिन कांग्रेस समेत मौजूदा विधायकों के प्रति नाराजगी भी है। दूसरा कारण राज्य बीजेपी में राजे की जगह को लेकर अनिश्चितता है।
दारा स्टेशन के एक छोटे व्यवसायी राकेश मीणा कहते हैं, “वो हमारे लिए सब कुछ है। राजे बीजेपी में अकेली नेता हैं, जो अब तक सीएम पद के लिए दावा कर सकती हैं।"
एक हाउस वाइफ सोनिया सैनी कहती हैं, “मेरे गांव में हर कोई उनके बारे में बात करता है। उनकी तरफ से किए गए विकास के कामों के कारण हमारा शहर ऐसा दिखता है। हम महिलाओं के लिए भी वह अच्छी रहेंगी।”
अपने इलाके में किया विकास
झालरापाटन में सद्गुरु कबीर आश्रम के पुजारी रामबाबू रेलवे लाइन, मेडिकल कॉलेज, क्रिकेट स्टेडियम, बस डिपो जैसी सभी स्थानीय विकास परियोजनाओं का श्रेय भी राजे को देते हैं। वह कहते हैं, "उनकी वजह से ही झालरापाटन राज्य के हर कस्बे से आगे है।"
राजे साफतौर से इस इलाके में सबसे बड़ी बीजेपी नेता बनी हुई हैं। उनकी "निर्णय लेने की क्षमता" और "मजबूत नेतृत्व" के लिए उनकी सराहना की जाती है। साथ ही उनकी शाही वंशावली एक और प्लस प्वाइंट है।
राज्य बीजेपी नेतृत्व में उनको धीरे-धीरे साइड लाइन करना लोगों से छिपा नहीं। पार्टी कार्यक्रमों से उनकी गैर-मौजूदगी ही नहीं बल्कि उसके समर्थकों को टिकट देने में भी देरी की गई।
संयोग से, राजे के समर्थन से बीजेपी को हाड़ौती क्षेत्र में अपना प्रभाव बनाए रखने में मदद मिली, तब भी जब राज्य के दूसरे हिस्सों ने कांग्रेस को वोट दिया। 2013 में, बीजेपी ने इलाके की 17 में से 16 सीटें जीतीं, 2018 में जब कांग्रेस सत्ता में आई, तो उसने यहां से 7 सीटें जीतीं, लेकिन बीजेपी को फिर भी 10 सीटें मिलीं।
कोटा में गहलोत सरकार की 1,200 करोड़ रुपए का हेरिटेज चंबल रिवर फ्रंट प्रोजेक्ट एक तरह से कांग्रेस इस क्षेत्र में अपनी पैठ बनाने की कोशिश कर रही है।
राकेश मीणा जैसे कुछ राजे समर्थक अपनी उंगलियां दबाए हुए हैं और कहते हैं कि सब कुछ चुनाव के नतीजों पर निर्भर करता है। वे कहते हैं, "हम जानते हैं कि वह बीजेपी नेतृत्व की पसंदीदा नहीं हैं, लेकिन चुनाव के बाद वह खेल बदल देंगी।"
ट्रक ड्राइवर और झालरापाटन के निवासी जहांगीर पाटन कहते हैं, “यह मैडम का राज है। भले ही वे उन्हें सीएम न बनाएं, लेकिन उनका राज बना रहेगा।"
साथ ही, ऐसे दूसरे बीजेपी समर्थक भी हैं, जो इस संभावना से सहमत हैं कि अगर पार्टी 25 नवंबर का चुनाव जीतती है, तो राजे बीजेपी सरकार का नेतृत्व नहीं कर सकेंगी।
दूसरे नामों पर क्या कहते हैं लोग?
कोटा के एक रिटायर सरकारी कर्मचारी जीएल गौड़ कहते हैं, “बीजेपी में बहुत सारे नेता हैं, केंद्रीय नेतृत्व शायद उन्हें सीएम नहीं बनाएगा। लेकिन ये भी एक सच्चाई है कि लोग अब मोदीजी के कारण बीजेपी को वोट देते हैं।" उन्होंने कहा कि वह 1970 के दशक में जनसंघ के दिनों से ही BJP के समर्थक रहे हैं।
एक और उत्साही बीजेपी समर्थक, पवन कुमार, जो दारा में सड़क के किनारे कचौड़ी बेचते हैं, वे कहते हैं कि भले ही राजे "स्वाभाविक पसंद" हैं, और "जनता केवल उन्हें ही जानती है", लेकिन "ये पार्टी का निर्णय है।" हम इसके बारे में क्या कर सकते हैं? देखते हैं वो किसे चुनते हैं।
कई नाम चर्चा में हैं, जिन्हें अलग-अलग बीजेपी खेमों ने आगे बढ़ाया है, क्योंकि सर्वे में पार्टी को जीतने की अच्छी संभावना बताई गई है।
बूंदी शहर में मुकेश चावड़ा कहते हैं, “हमने बाबा बालकनाथ और केंद्रीय मंत्री गजेंद्र शेखावत के बारे में सुना। लेकिन बालकनाथ को अपनी सीट (तिजारा) जीतनी होगी। वह कठिन समय से गुजर रहे हैं और दूसरे विधानसभा क्षेत्रों में प्रचार भी नहीं कर सकते। शेखावत भी नहीं लड़ रहे हैं।"
रिटायर सरकारी कर्मचारी और हवेली कटकौन के निवासी रवि दत्त शर्मा और रघुनंदन सिंह, राजे के अलावा किसी भी दूसरे नाम को खारिज करते हैं।
सिंह ने कहा, "हम कहते थे, 'जिंदगी झालावाड़ हो गई' कहना का मतलब कि जिंदगी गटर में है। लेकिन राजे ने झालावाड़ का उत्थान किया।"
बाकी दो दावेदारों के बारे में वे कहते हैं, "गजेंद्र सिंह को राज्य के इस हिस्से में कोई नहीं जानता... हमने बालकनाथ को नहीं देखा है। सिर्फ नाम से कोई योगी नहीं बनता। दाढ़ी बनाने से कोई मोदी नहीं बनता है।"
बालकनाथ, योगी आदित्यनाथ की तरह नाथ धार्मिक संप्रदाय से हैं। वह खुद को योगी नंबर-2 की तरह पेश कर रहे हैं। दोनों की छवि धार्मिक नेता होने के साथ-साथ कानून और व्यवस्था पर सख्त होने के लिए यूपी के सीएम की प्रतिष्ठा को भी दर्शाती है।
इस पर जोर देते हुए कि राजे को दरकिनार करने से बीजेपी के प्रदर्शन पर असर पड़ सकता है, राजस्थान केंद्रीय विश्वविद्यालय में सार्वजनिक नीति के प्रोफेसर एस नागेंद्र अंबेडकर ने कहा, "ये सब उस संदेश पर निर्भर करता है, जो वह हाड़ौती क्षेत्र और उसके आसपास के मतदाताओं को देती हैं। अगर यह नेगेटिव मैसेज है, तो बीजेपी को इसके असर का सामना करना पड़ेगा। लेकिन अगर वह उनकी उम्मीदें बरकरार रखती हैं, तो पार्टी पर इसका इतना बुरा असर नहीं पड़ेगा।"
राजे इस मामले में बहुत सतर्क हैं और उन्होंने सार्वजनिक रूप से सीएम पद या पार्टी के फैसलों के बारे में कोई टिप्पणी नहीं की है।
राज्य पार्टी के कामकाज से जुड़े एक बीजेपी नेता कहते हैं, “वह बहुत सावधानी बरत रही है। वह पार्टी नेतृत्व के लिए भी विकल्प खुला रख रही हैं।"
वास्तव में, दो-कार्यकाल के सीएम राज्य के एकमात्र BJP नेता हैं, जो पूरे राज्य में रैलियों को संबोधित कर रहे हैं और रोड शो कर रहे हैं। चुनाव की घोषणा के बाद से राजे कम से कम 28 विधानसभा क्षेत्रों का दौरा कर चुकी हैं।
उनके समर्थकों का कहना है कि हाल के पार्टी कार्यक्रमों से उनकी अनुपस्थिति केवल इसलिए थी, क्योंकि उन्हें इसमें आमंत्रित नहीं किया गया था।
फिर कुछ और लोग भी हैं, जो महसूस करते हैं कि राजे को बाहर निकलने के लिए उनका संकेत लेना चाहिए, जो आमतौर पर राजनेताओं के लिए आसान नहीं होता है। कट्टर बीजेपी समर्थक और बूंदी किले के पास व्यवसायी अरविंद कुमार कहते हैं, "राजे का समय बीत चुका है। उसे अब अपने जूते लटका देना चाहिए। युवाओं को कार्यभार संभालने दीजिए।”