Rajasthan assembly elections results : अब तक आए चुनावी नतीजों से राजस्थान में कांग्रेस पिछड़ती दिख रही है। इसका मतलब है कि राजस्थान में पिछले तीन दशक की परंपरा टूटने नहीं जा रही है। हालांकि, इस बार परंपरा टूटने की उम्मीद की जा रही थी। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने एक के बाद एक इतनी स्कीमों का ऐलान किया था, जिससे उन्हें उम्मीद थी की राज्य की जनता उन्हें दोबारा सत्ता में लाएगी। लेकिन, गहलोत की रणनीति फेल करती दिख रही है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि अशोक गहलोत के सामने इस बार बड़ी चुनौतियां थीं। एक तरह से कांग्रेस के चुनाव प्रचार का दारोमदार उनके कंधे पर था। उन्होंने पूरी कोशिश भी की। लेकिन, बेरोजगारी, गरीबी और युवाओं का आक्रोश जीत की उनकी उम्मीदों पर भारी पड़ा। आइए जानते हैं आखिर गहलोत क्यों जनता का भरोसा नहीं हासिल कर सके:
राज्य की जीडीपी की ग्रोथ FY22 में अच्छी रही थी। लेकिन FY23 में इसमें गिरावट देखने को मिली। राजस्थान का राजकोषीय घाटा पिछले कुछ सालों में 4 फीसदी से ज्यादा रहा है। राज्य के FRBM एक्ट के मुताबिक, इसका 3 फीसदी तक रहना जरूरी है। गहलोत का एक के बाद एक स्कीमों के ऐलान करने के पीछे का मकसद लोग संभवत: समझ रहे थे। उन्हें लग रहा था कि गहलोत के लिए इन योजनाओं के लिए पैसे का इंतजाम करना मुमकिन नहीं होगा। ऐसे में इन योजनाओं को लोगों ने गंभीरता से नहीं लिया।
राज्य में बेरोजगारी दर FY23 में 4.4 फीसदी रही। यह पूरे देश की औसत 3.2 फीसदी बेरोजगारी दर से ज्यादा है। पिछले कुछ सालों में रोजगार चुनावों में बड़े मसले के रूप में उभर कर सामने आया है। रोजगार नहीं मिलने से राजस्थान में युवाओं के बीच सरकार के खिलाफ आक्रोश था। बार-बार प्रतियोगी परीक्षाओं के पेपर लीक के मामलों से भी युवाओं के बीच सरकार की छवि खराब हुई। गहलोत सरकार युवाओं का भरोसा हासिल करने में नाकाम रहे। उधर, गहलोत और सचिन पायलट के बीच लगातार जारी लड़ाई का असर भी युवाओं पर पड़ा। युवाओं के बीच गहलोत के अलावा पायलट की ज्यादा पैठ है।
अब भी राष्ट्रीय औसत से ज्यादा गरीबी
राजस्थान गरीबी के मामले में अब भी देश के कई राज्यों से आगे है। हालांकि, पिछले कुछ सालों में इसमें कमी आई है। लेकिन, राज्य में अब भी आबादी का 15.31 फीसदी हिस्सा गरीब है। पूरे देश में यह औसत 14.96 फीसदी है। राज्य में प्रति व्यक्ति 81,231 रुपये है, जो देश के 91,481 रुपये के औसत से काफी कम है। अब लोग समझने लगे हैं कि सिर्फ स्कीम की बदौलत गरीबी को दूर नहीं किया जा सकता। इसके लिए उद्योग और कारोबार का विकास जरूरी है। इस मोर्चे पर गहलोत पिछड़ते दिखे। राज्य में निवेश आकर्षित करने के उनके प्रयास नाकाफी दिखे।
कांग्रेस पर उसका अंदरूनी कलह भारी पड़ा। 2018 में गहलोत के मुख्यमंत्री बनने के बाद से पायलट के साथ लगातार उनकी लड़ाई जारी रही। इस लड़ाई बंद कराने के लिए कई बार कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को हस्तक्षेप करना पड़ा। इससे राज्य की जनता में बहुत खराब संदेश गया। खासकर युवाओं को यह लगा कि इस सरकार का ज्यादा समय राज्य की जनता के लिए काम करने की जगह आपसी झगड़े निपटाने में खर्च होता है।