Rajasthan Elections 2023: राजस्थान की सियासी जंग के वे 9 धुरंधर, जो रखते हैं पासा पलटने का माद्दा

Rajasthan Assembly Elections 2023: राज्य की 200 में से 199 विधानसभा सीटों के लिए वोट डाले जा रहे हैं। कांग्रेस उम्मीदवार गुरमीत सिंह कूनर की मृत्यु के बाद करणपुर निर्वाचन क्षेत्र में चुनाव स्थगित कर दिया गया है। राजस्थान का चुनावी परिदृश्य, मूलतः कांग्रेस के कल्याणवाद और भाजपा के पहचान की राजनीति के दांव के बीच की लड़ाई है। सत्तारूढ़ कांग्रेस और प्रमुख विपक्षी पार्टी बीजेपी (Bhartiya Janta Party), दोनों को ही अपनी जीत की पूरी उम्मीद है

अपडेटेड Nov 25, 2023 पर 4:47 PM
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राजस्थान की सियासत का ऊंट किस करवट बैठेगा, यह तो 3 दिसंबर को वोटों की गिनती के साथ ही सामने आएगा।

Rajasthan Polls 2023: राजस्थान के विधानसभा चुनावों के लिए 25 नवंबर को सुबह 7 बजे से वोटिंग जारी है। राज्य की 200 में से 199 विधानसभा सीटों के लिए वोट डाले जा रहे हैं। कांग्रेस उम्मीदवार गुरमीत सिंह कूनर की मृत्यु के बाद करणपुर निर्वाचन क्षेत्र में चुनाव स्थगित कर दिया गया है। भारत निर्वाचन आयोग के अनुसार, दोपहर 3 बजे तक राजस्थान में 55.63% मतदान दर्ज किया गया। सत्तारूढ़ कांग्रेस और प्रमुख विपक्षी पार्टी बीजेपी (Bhartiya Janta Party), दोनों को ही अपनी जीत की पूरी उम्मीद है। राजस्थान की सत्ता का ऊंट किस करवट बैठेगा, यह तो 3 दिसंबर को वोटों की गिनती के साथ ही सामने आएगा। लेकिन राज्य का चुनावी परिदृश्य, मूलतः कांग्रेस के कल्याणवाद और भाजपा के पहचान की राजनीति के दांव के बीच की लड़ाई है।

सीनियर जर्नलिस्ट और जयपुर में यूनिवर्सिटी ऑफ राजस्थान में जर्नलिज्म के प्रोफेसर रह चुके राजन महान का मानना है कि राजनीतिक पार्टियों के बीच टकराव में राजस्थान की सियासत के कुछ शीर्ष नेता, करीब 5.3 करोड़ मतदाताओं को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। इनमें से 9 नेताओं पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए...

अशोक गहलोत: दशकों से अशोक गहलोत को राजस्थान की राजनीति का जादूगर कहा जाता है। वह वर्तमान चुनाव का केंद्र रहे हैं। अपनी कल्याणकारी योजनाओं की बदौलत गहलोत कांग्रेस के स्टार बन गए हैं, जिसे सत्ताधारी पार्टी अपने जीत के मंत्र के रूप में देखती है। लेकिन सचिन पायलट के साथ उनकी अनबन एक बड़ी बाधा साबित हो सकती है, खासकर पूर्वी राजस्थान में। हालांकि जोधपुर की सरदारपुरा सीट पर गहलोत की जीत पक्की है लेकिन उनका असली काम अपनी सरकार बचाना और चौथी बार राजस्थान का मुख्यमंत्री बनना है। अपनी विरासत और भविष्य को दांव पर लगाते हुए गहलोत, राजस्थान में हर 5 साल पर सत्तारूढ़ पार्टी के बदल जाने के 25 वर्षों के ट्रेंड को खत्म करने के लिए हर दांव पेंच आजमा रहे हैं।


वसुंधरा राजे: वसुंधरा जब से राजस्थान की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं, तब से वह राजस्थान की राजनीति का एक चमकता सितारा रही हैं। 2003 और 2013 के चुनावों में भाजपा को भारी जीत दिलाने के बावजूद, भगवा ब्रिगेड के 2018 का चुनाव हारने के बाद से राजे को पार्टी की टॉप लीडरशिप द्वारा हाशिए पर धकेलने की मांग की गई है। वर्तमान चुनावों में शुरू में उन्हें टिकट डिस्ट्रीब्यूशन में दरकिनार कर दिया गया था, लेकिन जब इसका कड़ा विरोध हुआ तो राजे को जल्द ही उनके अधिकांश समर्थकों समेत टिकट मिल गई। झालावाड़ में उनका झालरापाटन सीट जीतना महज एक औपचारिकता है लेकिन यह सेंटरस्टेज में वापसी है, जो राजे की ड्राइविंग फोर्स है।

सचिन पायलट: शायद अपने जीवन के सबसे उतार-चढ़ाव वाले पांच वर्षों के बाद, सचिन पायलट अभी भी राजस्थान की सियासत में एक प्रमुख चेहरा बने हुए हैं। 2020 में गहलोत की लीडरशिप के खिलाफ बगावत के बाद से, पायलट न तो राजस्थान के डिप्टी सीएम हैं और न ही राज्य कांग्रेस के प्रमुख। लेकिन उनकी युवा प्रतिभा, उन्हें राज्य के सभी पॉपुलैरिटी पोल्स में सबसे आगे रखती है। 2018 के चुनाव में वह सबसे ज्यादा अंतर से जीते थे। इस बार के चुनावों में टोंक सीट जीतना, पायलट के लिए कोई मुश्किल काम नहीं है। युवा मतदाताओं से उनकी अपील के अलावा, कांग्रेस को उम्मीद है कि वह गुर्जर वोटों को भी अपने पक्ष में कर लेंगे, जो पिछले चुनावों में कांग्रेस की जीत के लिए महत्वपूर्ण थे।

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राजेंद्र राठौड़: राजेंद्र राठौड़ 7 बार विधायक रह चुके हैं और 1990 के बाद से कोई विधानसभा चुनाव नहीं हारे हैं। वह भाजपा के सबसे मजबूत राजपूत नेताओं में से एक हैं। राठौड़ इस बार के विधानसभा चुनाव में चूरू से तारानगर सीट पर चले गए हैं, जहां उन्हें कांग्रेस के दिग्गज जाट नेता और चूरू से पूर्व लोकसभा सांसद नरेंद्र बुडानिया से कड़ी टक्कर मिल रही है। राठौड़ को अतीत की वसुंधरा राजे सरकारों में दूसरे नंबर का नेता माना जाता था। लेकिन हाल के वर्षों में दोनों के बीच मतभेद हो गए हैं और राठौड़ को अब भाजपा के जीतने पर मुख्यमंत्री पद के दावेदार के रूप में देखा जा रहा है।

सीपी जोशी: अनुभवी कांग्रेस नेता और निवर्तमान विधानसभा स्पीकर सीपी जोशी को अक्सर राजस्थान का सबसे बदकिस्मत नेता माना जाता है। इसका मुख्य कारण यह है कि 2008 के विधानसभा चुनावों में वह नाथद्वारा सीट एक वोट से हार गए थे, हालांकि कांग्रेस की जीत की स्थिति में उनके मुख्यमंत्री बनने की व्यापक संभावना थी। बाद में जोशी ने 2009 में लोकसभा चुनाव लड़ा और कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार में केंद्रीय मंत्री बने। वह सबसे वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं में से एक हैं और राजस्थान में पार्टी के लिए संकटमोचक हैं। उन्होंने नाथद्वारा सीट 5 बार जीती है, लेकिन इस बार जोशी को मेवाड़ के पूर्व शाही परिवार से ताल्लुक रखने वाले भाजपा के विश्वराज सिंह से कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।

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दीया कुमारी: जयपुर के पूर्व शाही परिवार से ताल्लुक रखने वाली दीया कुमारी मौजूदा चुनाव में अचानक सुर्खियों में आ गई हैं। राजसमंद से लोकसभा सांसद दीया को नरपत सिंह राजवी की जगह जयपुर की प्रतिष्ठित विद्याधर नगर सीट से भाजपा का उम्मीदवार बनाया गया था। 5 बार के विधायक राजवी, दिवंगत भैरों सिंह शेखावत के दामाद हैं। उनकी जगह दीया को विद्याधर नगर सीट पर टिकट देने के कदम ने एक राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया है, लेकिन यह बता रहा है कि अपने सीमित राजनीतिक अनुभव के बावजूद दीया ने भाजपा के शीर्ष नेतृत्व का विश्वास जीत लिया है। भाजपा के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि दीया को वसुंधरा राजे के संभावित रिप्लेसमेंट के रूप में देखा जा रहा है।

गोविंद सिंह डोटासरा: राज्य कांग्रेस प्रमुख गोविंद सिंह डोटासरा, पार्टी के सबसे बड़े जाट नेताओं में से एक हैं। वह शेखावाटी क्षेत्र में भारी खींचतान में फंसे हुए हैं। सीकर की लक्ष्मणगढ़ सीट पर उनका मुकाबला बीजेपी के पूर्व केंद्रीय मंत्री सुभाष महरिया से है। दोनों एक दशक के बाद आमने-सामने हैं। डोटासरा ने 2013 के चुनावों में महरिया को हराया था। डोटासरा को अशोक गहलोत का वफादार माना जाता है। 2020 में सचिन पायलट की बगावत के बाद उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था। हालांकि वह काफी हद तक लो-प्रोफाइल रहते हैं, लेकिन पिछले महीने उनके परिसरों पर ईडी की छापेमारी ने डोटासरा को सुर्खियों में ला दिया और चुनावी परिदृश्य में मसाला डाल दिया।

बाबा बालकनाथ: बाबा बालकनाथ को 'राजस्थान का योगी' भी कहा जाता है। वह भाजपा की ओर से मैदान में उतारे गए सबसे चर्चित हिंदुत्व कट्टरपंथी हैं। अलवर से मौजूदा सांसद बाबा बालकनाथ इस बार, गो हत्या के लिए कुख्यात मेवात क्षेत्र के मध्य में स्थित तिजारा सीट से विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं। उन्होंने बुलडोजर पर अपना नामांकन दाखिल किया था और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ उनकी कैंपेनिंग को आगे बढ़ाने के लिए तिजारा आए थे। कांग्रेस ने उनके खिलाफ एक मुस्लिम उम्मीदवार खड़ा किया है। इसे लेकर बाबा बालकनाथ ने सीएम अशोक गहलोत पर "फतवा शासन" बनाने का आरोप लगाया, साथ ही अपने चुनाव की तुलना 'भारत-पाकिस्तान मैच' से की। उनकी ध्रुवीकरण संबंधी बयानबाजी इस सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र में भाजपा की मंशा को दर्शाती है।

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हनुमान बेनीवाल: राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के संयोजक हनुमान बेनीवाल एक तेजी से उभरती ताकत हैं, खासकर राज्य की जाट बेल्ट में। उन्होंने 2019 में भाजपा के साथ गठबंधन में नागौर लोकसभा सीट जीती, लेकिन कृषि कानूनों पर साझेदारी तोड़ दी। जाट युवाओं के पसंदीदा बेनीवाल ने इस बार आजाद समाज पार्टी के प्रमुख चंद्र शेखर आजाद के साथ गठबंधन किया है और दावा किया है कि उनका गठबंधन राजस्थान को 'भाजपा और कांग्रेस से मुक्त' बना देगा। राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी ने 2018 के चुनावों में 3 सीटें जीती थीं, लेकिन अब लगभग सौ सीटों पर चुनाव लड़ रही है।

सीनियर जर्नलिस्ट राजन महान ने राजस्थान में एनडीटीवी और स्टार न्यूज को हेड किया है। वह जयपुर में यूनिवर्सिटी ऑफ राजस्थान में जर्नलिज्म के प्रोफेसर रह चुके हैं। ये उनके विचार व्यक्तिगत हैं, और मनीकंट्रोल के रुख या विचारों का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं।

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