Mizoram Election 2023: मिजोरम कभी असम का जिला था जो पहले केंद्र शासित प्रदेश बना और फिर पूर्ण राज्य बन गया। यह भारत सरकार और मिजो नेशनल फ्रंट के बीच शांति समझौते के तहत 1987 में पूर्ण राज्य बना था। अब की बात करें तो यहां चुनावी माहौल एकदम गर्म है और कल यानी 7 नवंबर को यहां मतदान होना है। इस बार भी अहम लड़ाई सत्तारूढ़ पार्टी मिजोरम नेशनल फ्रंट (MNF), कांग्रेस और जेडपीएम के बीच है। हालांकि लड़ाई इस बार इसलिए भी दिलचस्प हो गई है क्योंकि कांग्रेस स्थानीय निकाय के चुनावों में बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाई और जेडपीएम को बढ़त मिली।
ZPM आगे बढ़ रही है, बीजेपी भी यहां फोकस किए हुए और आम आदमी पार्टी ने भी अपने प्रत्याशी उतारे हैं। मिजोरम में राहुल गांधी दौरा कर चुके हैं और कई केंद्रीय मंत्रियों ने यहां चुनाव प्रचार किया। ऐसे में सवाल ये उठ रहा है कि क्या इस बार मिजोरम में कांग्रेस और एमएनएफ का तिलिस्म टूट पाएगा?
क्या है Congress और MNF का तिलिस्म?
मिजोरम पहले असम का मिजो जिला था जो 1972 में केंद्र शासित प्रदेश बन गया। इसके बाद 1986 में यह पूर्ण राज्य बन गया। यहां पर सबसे अधिक बार कांग्रेस की सरकार बनी है और कांग्रेस से ही मुख्यमंत्री लाल थनहावाला ने सबसे लंबे समय तक यहां शासन किया है। उन्होंने पांच बार में 21 साल तक राज्य की बागडोर संभाली। इस राज्य में इन्हीं दोनों पार्टी की सरकार बनती आई है। इस समय एमएनएफ के जोरमथंगा यहां के मुख्यमंत्री हैं जो देश के सबसे उम्रदराज सीएम भी हैं।
Mizoram Election 2023: इस बार क्या है चुनावी माहौल
दस साल से सत्ता में रही कांग्रेस को 2018 में MNF ने बुरी तरह से हराया था। 40 विधानसभा सीटों पर हुए चुनाव में कांग्रेस सिर्फ 5 ही जीत पाई थी। लाल थनहावाला करीब चार दशकों से कांग्रेस के चेहरा थे, उन्होंने 2021 में ही कांग्रेस स्टेट प्रेसिडेंट पद छोड़ दिया जिस पर वह 1973 से ही थे। वह इस बार मैदान में भी नहीं है। उनकी जगह लालसवता कांग्रेस स्टेट प्रेसिडेंट हैं लेकिन उनकी अगुवाई पर सवाल उठाते हुए पार्टी के खजांची जोडिंटलुआंगा रायटे ने इस्तीफा दे दिया।
लालसवता के अगुवाई में कांग्रेस ने स्थानीय निकाय के चुनावों में भी बेहतर प्रदर्शन नहीं किया। वहीं ZPM की बात करें तो यह नई पार्टी है और तेजी से लोकप्रिय हो रही है लेकिन गांवों में MNF का वर्चस्व है।