लालदुहोमा (Lalduhoma) को दल-बदल विरोधी कानून के तहत अयोग्य ठहराए जाने वाले देश के पहले सांसद के रूप में जाना जाता है, लेकिन आज उनका नाम मिजोरम (Mizoram) के होने वाले नए मुख्यमंत्री के तौर पर भी लिया जा रहा है। भले ही 74 साल के 1977 बैच के पूर्व IPS अधिकारी को राज्य के बाहर कम ही लोग जानते हों, लेकिन प्रदेश के भीतर उनका बड़ा नाम है। मिजोरम में एक नई राजनीतिक पार्टी ज़ोरम पीपुल्स मूवमेंट (ZPM) का उदय हुआ है। 40 सीटों वाली विधानसभा में इस पार्टी बहुमत के आंकड़े से भी ज्यादा सीटें मिली हैं। इसी ZPM का नेतृत्व लालदुहोमा कर रहे हैं।
म्यांमार की सीमा से लगे चंफाई जिले के तुआलपुई गांव में जन्मे लालदुहोमा की शिक्षा ही गरीबी से मुक्ति थी। उन्होंने एकेडमिक्स में शानदार प्रदर्शन किया, जिससे तत्कालीन केंद्र शासित प्रदेश के पहले सीएम सी चुंगा का ध्यान उनकी ओर आकर्षित हुआ, जिन्होंने उन्हें 1972 में अपने कार्यालय में प्रधान सहायक के रूप में नौकरी दी।
लालदुहोमा ने नौकरी के साथ-साथ गौहाटी यूनिवर्सिटी में एक इवनिंग कोर्स के लिए दाखिला लिया। डिस्टिंक्शन के साथ ग्रेजुएशन की और पांच साल बाद सिविल सेवा परीक्षा भी पास कर ली।
इंदिरा गांधी की नजरों में आए
गोवा में तैनात एक IPS अधिकारी के रूप में, उन्होंने ड्रग माफिया के खिलाफ सख्त रुख अपनाया। उन्होंने इतनी मजबूत प्रतिष्ठा बनाई कि तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी तक को प्रभावित कर दिया। गांधी ने 1982 में उनका ट्रांसफर दिल्ली कर दिया और बाद में उन्हें अपनी सुरक्षा टीम का हिस्सा बना लिया।
इंदिरा के कहने पर, लालदुहोमा ने विद्रोही नेता लालडेंगा के मिज़ो नेशनल फ्रंट (MNF) को बातचीत की मेज पर लाने में मदद की। कथित तौर पर इंदिरा गांधी की तरफ से उन्हें मिज़ो उग्रवादी नेता लालडेंगा के साथ बातचीत करने और उन्हें शांति वार्ता के लिए मनाने के लिए लंदन भेजा गया था।
लालडेंगा ने आखिरकार 1987 में तत्कालीन प्रधान मंत्री राजीव गांधी के साथ एक शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए। इसलिए लालदुहोमा को मिजोरम राज्य के जन्म में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का श्रेय दिया जा सकता है।
हालांकि, इससे पहले ही 1984 में लालदुहोमा अपनी नौकरी छोड़ चुके थे और राजनीति में कदम रख दिया था। वह कांग्रेस में शामिल हो गए और मिजोरम से सांसद चुने गए।
लालदुहोमा ने 1984 में मिजोरम से कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा सीट जीती थी। लेकिन बाद में उनका राज्य कांग्रेस नेताओं से मतभेद हो गया और पार्टी व्हिप का उल्लंघन करने के कारण उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया गया। वे 1988 में दल-बदल विरोधी कानून के तहत अयोग्य घोषित होने वाले देश के पहले लोकसभा सांसद बने।
2018 में, लालदुहोमा ने एक निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में दो सीटों, आइजोल पश्चिम- I और सेरछिप से चुनाव जीता। बाद में, उन्होंने सेरछिप को बरकरार रखने के लिए आइजोल पश्चिम-I सीट खाली कर दी, जहां उन्होंने कांग्रेस के दिग्गज नेता और मौजूदा मुख्यमंत्री थान्हावला को हराया। इन चुनावों में लालदुहोमा ने सेरछिप से भी चुनाव लड़ा था।
जब लालदुहोमा ने 2018 का चुनाव लड़ा, तो वह ZPM के प्रमुख थे। हालांकि, पार्टी आधिकारिक तौर पर रजिस्टर्ड नहीं थी। उन्होंने और पार्टी के दूसरे उम्मीदवारों ने निर्दलीय चुनाव लड़ा था। 2020 में, ZPM में दलबदल करने के कारण, लालदुहोमा को तकनीकी आधार पर विधायक के रूप में अयोग्य घोषित कर दिया गया था।
लालदुहोमा ने राज्य की राजनीति में MNF-कांग्रेस के प्रभुत्व से मुक्ति और साफ छवि वाली सरकार के वादों पर लोकप्रिय समर्थन की लहर चलाई। 74 साल की उम्र में, वह अपेक्षाकृत युवा हैं और उनकी पार्टी के ज्यादातर उम्मीदवार 50 साल से कम उम्र के हैं।