MP Election results 2023: मध्य प्रदेश में शुरुआती रुझान भारतीय जनता पार्टी (BJP) के पक्ष में जाते दिख रहे हैं। इससे पता चलता है कि भगवा पार्टी को अपने सांसदों और केंद्रीय मंत्रियों को चुनावी मैदान में उतारने से माहौल अपने पक्ष में करने में मदद मिली है। बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने यह प्रयोग राज्य में अपने संगठनात्मक ताकत को मजबूत करने, राज्य के नेताओं प्रोत्साहित करने और सत्ता विरोधी लहर का मुकाबला करने के इरादे से किया था। बीजेपी ने यह फैसला कनार्टक में मिली करारी हार के बाद लिया था, जहां पीएम मोदी, तमाम केंद्रिय मंत्रियों और विभिन्न राज्यों के बीजेपी मुख्यमंत्रियों की बड़े स्तर पर सभाएं और प्रचार पार्टी को हार का सामना करना पड़ा था।
BJP ने अपने जिन 4 बड़े केंद्रीय नेताओं को वापस मध्य प्रदेश की राजनीति में उतारा था, आइए उन सभी पर एक नजर डालते हैं-
तोमर ने अपनी राजनीतिक यात्रा एक छात्र नेता के रूप में शुरू की थी। उन्हें 1979-80 में मुरार गवर्नमेंट कॉलेज का छात्र संघ अध्यक्ष चुना गया था। उन्होंने 1983 से 1987 तक ग्वालियर नगर निगम में पार्षद के तौर पर भी कार्य किया है। साल 1998 से 2008 तक वह मध्य प्रदेश विधानसभा में विधायक रहे और 2003 से 2007 के दौरान उन्होंने कैबिनेट मंत्री का पद संभाला।
यह मध्य प्रदेश के प्रमुख ओबीसी चेहरों में गिने जाते हैं। मोदी सरकार में ये केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण राज्य मंत्री हैं। पार्टी ने इन्हें नरसिंहपुर विधानसभा सीट से उनके भाई जालम सिंह पटेल की जगह मैदान में उतारा। जालम सिंह पटेल पिछले 2 बार से इस सीट से विधायक थे।
5 बार सांसद रहे प्रह्लाद सिंह पटेल को अपनी पड़ोस की बाकी विधानसभा सीटों पर भी मतदाताओं को प्रभावित करने के इरादे से राज्य में भेजा गया था। खासतौर से यह देखते हुए कि पार्टी 2018 में नरसिंहपुर जिले की चार में से तीन सीटें हार गई थी। पटेल फिलहाल दमोह लोकसभा से सांसद हैं। वह पहली बार1989 में 9वीं लोकसभा के लिए चुने गए, फिर 1996 में 11वीं लोकसभा, 1999 में 13वीं लोकसभा और 2014 में 16वीं लोकसभा के लिए फिर से चुने गए।
केंद्रीय ग्रामीण विकास राज्य मंत्री को एमपी की निवास विधानसभा सीट से मैदान में उतारा गया है। फिलहाल वह मंडला लोकसभा सीट से सांसद है। कुलस्ते 1996 से 2019 तक लगातार छह बार सांसद पर रहे हैं। मंडला लोकसभा में आने वाली निवास विधानसभा सीट पर करीब 2.5 लाख मतदाता हैं। साल 2018 के पिछवे चुनाव में कांग्रेस के डॉ अशोक मसकोले यहां से 91,007 वोट हासिल कर विजयी हुए थे। कुलस्ते ने अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में संसदीय मामलों और आदिवासी मामलों के केंद्रीय राज्य मंत्री (1999 से 2004) के रूप में भी काम किया है। वह सबसे पहले 1990 में निवास विधानसभा से ही विधायक बने थे।
कैलाश विजयवर्गीय को मध्य प्रदेश के सबसे मजबूत उम्मीदवारों में से एक माना जाता है। वे इंदौर के पूर्व मेयर रहे हैं और पार्टी ने उसी इसी शहर इंदौर-1 विधानसभा सीट से मैदान में उतारा है। छह बार विधायक रहे विजयवर्गीय अपने निर्वाचन क्षेत्र से कभी विधानसभा चुनाव नहीं हारे। पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व में जगह बनाने से पहले वह करीब 12 सालों तक राज्य मंत्रिमंडल के सदस्य थे। उनका मुकाबला कांग्रेस नेता संजय शुक्ला से है, जिन्होंने 2018 में चुनाव जीता था। राष्ट्रीय महासचिव के रूप में, विजयवर्गीय पश्चिम बंगाल में बीजेपी के प्रभारी भी थे।