मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जीत का श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दिया है। लेकिन, चुनावी नतीजे इस बात के सबूत हैं कि 18 साल तक शासन के बावजूद मध्य प्रदेश के मतदाताओं खासकर महिला वोटर्स के बीच सिंह की लोकप्रियता कम नहीं हुई है। इस जीत ने चुनावों से पहले चल रही उन चर्चाओं को झूठा साबित कर दिया है कि राज्य के मतदाता एक ही मुख्यमंत्री को देख-देख कर थक चुके हैं। उनकी जीत ने भाजपा के लिए एक चुनौती खड़ी कर दी है। क्या भाजपा का शीर्ष नेतृत्व उन्हें रिकॉर्ड पांचवीं बार मुख्यमंत्री बनने का मौका देगा या नहीं।
भाजपा को शिवराज को लेकर बदलना पड़ा रुख
यह सवाल इसलिए पैदा होता है क्योंकि चुनावी अभियान के दौरान भाजपा ने शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री उम्मीदवार को रूप में पेश नहीं किया था। पार्टी को शुरू में लगा कि शिवराज को मुख्यमंत्री चेहरे के रूप में पेश करने से भाजपा को सत्ता विरोधी लहर की वजह से नुकसान हो सकता है। लेकिन, जिस तरह से मुख्यमंत्री ने पूरे चुनाव प्रचार का नेतृत्व किया, उससे भाजपा अपना रुख बदलने को मजबूर हो गई।
कांग्रेस जमीनी स्तर पर भाजपा का मुकाबल नहीं कर सकी
कांग्रेस को भाजपा को सत्ता से बेदखल करने में नाकाम रही। भाजपा के पक्ष में शीर्ष नेतृत्व ने जमकर प्रचार किया। स्टार प्रचारकों ने राज्य में कई रैलियां की। इससे पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल मजबूत बना रहा। उधर, कांग्रेस को यह लगा कि हवा भाजपा के खिलाफ बह रही है। वह इस मुगालते में चुनावी नतीजों के आने से पहले ही अपनी पीठ थपथपाती रही। एक के बाद कई स्कीमों की घोषणा की। हिंदुत्व को लेकर भाजपा के एप्रोच में सेंध लगाने की भी कोशिश की। छिंदवाड़ा में कमलनाथ को खुद को सबसे बड़ा हनुमान भक्त बताना इसका उदाहरण है।
मतदाताओं ने 77 साल के कमलनाथ और 76 साल के दिग्विजय पर नहीं किया भरोसा
लेकिन, कांग्रेस भाजपा की संगठानत्मक क्षमता का मुकाबला नहीं कर सकी। उसके पास भाजपा की तरह संसाधन भी नहीं थे। मोदी मैजिक और मामा के लोगों से सहज जुड़ाव की कला भी उसके पास नहीं थी। नतीजा यह हुआ कि मध्य प्रदेश के लोगों ने 77 साल के कमलनाथ और 76 साल के दिग्जविजय सिंह के हाथ में सत्ता की चाबी नहीं सौंपने का फैसला किया। दोनों नेता सिर्फ इतना कर सके कि उन्होंने मतदाताओं को यह भरोसा दिया कि उनके बीच में किसी तरह का टकराव नहीं है। दोनों ने यह दिखाने की कोशिश की कि वे मिलकर मध्य प्रदेश के हित में काम करने के लिए तैयार हैं।
शिवराज ने खड़ा किया मजबूत तंत्र
करीब 20 साल तक मध्य प्रदेश में सत्ता में रहने के नाते भाजपा ने अपनी जड़े इतनी मजबूत कर ली हैं कि भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और दलित-आदिवासी के खिलाफ अत्याचार जैसे आरोपों से उस पर किसी तरह क असर नहीं पड़ता। लोग भाजपा के बारे में अपनी धारणा बदलने को तैयार नहीं हैं। भाजपा की सोच ने करीब हर संस्थान में अपनी जगह बनाई है। इसमें संस्कृति, शिक्षा, अफसरशाही और ट्रेडिंग समुदाय शामिल हैं। चुनाव नजदीक आते ही भाजपा कार्यकर्ताओं का पूरा तंत्र सक्रिय हो जाता है। इससे निकलने वाली ताकत किसी मुख्यमंत्री को चुनाव जीतने में बड़ी मददगार साबित हो सकती है।
महिला मतदाताओं ने शिवराज के पक्ष में किया मतदान
शिवराज सिंह जब से मुख्यमंत्री हैं तब उसे उन्होंने राज्य में कार्यकर्ताओं का मजबूत तंत्र विकसित किया है। यह तंत्र भाजपा से ज्यादा उनसे जुड़ाव महसूस करता है। ओबीसी के सबसे बड़े नेता के रूप में शिवराज सिंह की यह पहचान है जिसने राज्य में जातिगत सर्वे के कांग्रेस के कार्ड का असर नहीं पड़ने दिया। राज्य में मामा की छवि ऐसी है कि 17 नवंबर को महिलाओं ने जमकर वोट डाले। माना जा रहा है कि महिलाओं ने भाजपा के पक्ष में जमकर मतदान किया। बीजेपी उम्मीदवारों के बीच शिवराज सिंह चौहान की मांग प्रधानमंत्री से भी ज्यादा थी।
230 में से 130 चुनाव क्षेत्रों का किया दौरा
चौहान ने राज्य के 230 निर्वाचन क्षेत्रों में से 130 का दौरा किया। यह तब था जब मुख्यमंत्री उम्मीदवार को लेकर उनके नाम पर संदेह के बादल मंडरा रहे थे। मतदाताओं के बीच उनका ऐसा असर दिखा की चुनाव लड़ने वाले तीन केंद्रीय मंत्री भी उनके जादू के कायल हो गए।