छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh Assembly Elections) में पहले चरण का मतदान 7 नवंबर को हो रहा है। कांग्रेस दोबारा राज्य में सरकार बनाने की हर मुमकिन कोशिश कर रही है। उधर, BJP की कोशिश कांग्रेस को सत्ता से उखाड़ फेंकने की है। दोनों दलों के बीच कांटे की टक्कर दिख रही है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की सरकार ने चुनावों से पहले ऐसे कई ऐलान किए हैं, जिनका असर राज्य की वित्तीय स्थिति पर पड़ेगा। इनमें ओल्ड पेंशन स्कीम दोबारा लागू करने के साथ ही समाज के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए कई स्कीमे शामिल हैं।
छत्तीसगढ़ी की वित्तीय स्थिति दूसरे राज्यों से बेहतर
मनीकंट्रोल ने उप-मुख्यमंत्री टीएस सिंह देव से यह जानने की कोशिश की कि अगर कांग्रेस दोबारा सत्ता में आती है तो उसके लिए अपने वादों को लागू करना कितना आसान होगा। हमने सिंह से यह भी पूछा कि अगर कांग्रेस सत्ता में लौटती है तो राज्य में इनवेस्टमेंट बढ़ाने के लिए वह क्या करेगी। यह ध्यान देने वाली बात है कि छत्तीसगढ़ की वित्तीय स्थिति दूसरे राज्यों के मुकाबले बेहतर है। 2022-23 में राज्य की आर्थक वृद्धि दर 8 फीसदी रहने का अनुमान है। इसके अलावा फिस्कल डेफिसिट भी 2.99 फीसदी है, जो बहुत ज्यादा नहीं है।
आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों पर फोकस
सिंह ने कहा कि कांग्रेस की सरकार ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों की स्थिति में सुधार लाने के लिए बड़ा निवेश किया है। इससे करीब 40 फीसदी लोगों को गरीबी से बाहर निकालने में मदद मिली है। हर विधानसभा चुनावों से पहले सरकार को बताना पड़ता है कि वह अगले पांच साल में लोगों के लिए क्या करेगी। इसके लिए हम वेल्फेयर स्कीमों का ऐलान करते हैं। कुछ लोगों की नजरों में यह रेवड़िया बांटना हो सकता है, लेकिन हमारा मानना है कि इसका मकसद लोगों को सक्षम बनाना है। हम उन लोगों की मदद करना चाहते हैं, जिन्हें इसकी बहुत जरूरत है। अगर आप सब्सिडी वाला रसोई गैस सिलेंडर देते हैं तो इसका फायदा मध्यम वर्ग की महिलाओं को भी मिलता है। अगर आप एजुकेशन खासकर टेक्निकल एजुकेशन देने पर खर्च करते हैं तो इससे लोगों की स्थिति बेहतर होती है। इससे उन्हें अपने बच्चों को शिक्षित करने के लिए अपनी जेब से पैसे खर्च नहीं करने पड़ते हैं।
लोकल लोगों को भरोसा में लेने के बाद ही कंपनियों को आमंत्रित करेंगे
राज्य में इनवेस्टमेंट बढ़ाने के सरकार के प्लान के बारे में पूछने पर उप-मुख्यमंत्री ने कहा कि हम बड़ी कंपनियों को लेकर सावधानी बरत रहे हैं। खासकर माइनिंग और रॉ मैटेरियल के मामले में यह हमारा एप्रोच है। इसकी वजह यह है कि छत्तीसगढ़ ऐसा राज्य है, जहां कुल क्षेत्रफल के 41-42 फीसदी हिस्से में जंगल है। ऐसे में लोकल लोगों के साथ ही सरकार की कोशिश वन इलाके को कम से कम नुकसान पहुंचाने की रहती है। हम माइनिंग रिसोर्सेज का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल नहीं करना चाहते। हमने देखा है कि कंपनियां सस्ता जमीन चाहती हैं। सस्ता जमीन उन्हें सरकार से मिलता है। आम तौर पर यह जगंल की जमीन होती है।
कंपनियां लोकल लोगों के हितों के बारे में नहीं सोचतीं
उन्होंने कहा कि कोयला, लोहा या बॉक्साइट की माइनिंग की जब बात आती है तो इसका ज्यादातर हिस्सा जंगलों में है। इसलिए ग्रामीण कंपनियों का विरोध करते हैं। बड़ी कंपनियां लोकल लोगों के हितों का ध्यान नहीं रखती हैं। उनकी प्राथमिकता दूसरी होती है। ऐसे में हम अपनी पूरी जमीन कंपनियों को देने के लिए तैयार नहीं हैं। हमें बहुत सेलेक्टिव होना है। पहले हमें लोगों का भरोसा हासिल करना होगा। जब लोग इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट से जुड़ी गितिविधियों में हिस्सा लेने के लिए तैयार हो जाएंगे तब छत्तीसगढ़ इस दिशा में बढ़ने की कोशिश करेगा।