BJP को तीन और Congress को 1 राज्य में मिली जीत ने अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों के लिए मैदान तय कर दिया है। हालांकि, राज्य विधानसभा और लोकसभा चुनावों में बड़ा अंतर है, लेकिन मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना के चुनावी नतीजों से अगले साल के चुनावों को लेकर कई बड़े संकेत मिल रहे हैं। ये नतीजे कांग्रेस और विपक्षी इंडिया अलायंस के लिए भी काफी मायने रखते हैं। इन चुनावी नतीजों से निम्नलिखित संकेत निकल रहे हैं:
1. ब्रांड मोदी को हराना अब भी नामुमकिन
सबसे पहला संकेत इन चुनीवी नतीजों ने यह दिया है कि ब्रांड मोदी की अपील अब भी बनी हुई है। लोकल चुनावों में इसके असर से इनकार नहीं किया जा सकता। यह ध्यान देने वाली बात है कि छत्तीसगढ़ में भाजपा के पास राज्य में कोई बड़ा चेहरा नहीं था। मध्य प्रदेश और राजस्थान में पार्टी ने वसुंधरा राजे और शिवराज सिंह जैसे पुराने क्षत्रपों की मौजूदगी के बावजूद मुख्यमंत्री का उम्मीदवार घोषित नहीं किया। पार्टी का चुनावी स्लोगर था-प्रधानमंत्री या 'मोदी की गारंटी'। पार्टी ने तीनों राज्यों में इसका इस्तेमाल किया। अगर राज्यों के चुनावों में मोदी का इतना असर है तो इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि 2024 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस के सिए लड़ाई कितनी मुश्किल होगी।
मध्य प्रदेश में करीब दो दशक तक सत्ता में रहने की वजह से एक्सपर्ट्स को तीन महीने पहले तक फिर से भाजपा के सत्ता में आने की उम्मीद नहीं थी। उधर, छत्तीसगढ़ में एग्जिट पोल ने कांग्रेस को मजबूत दिखाया गया था। इसके बावजूद हमें मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा की लहर देखने को मिली। इन नतीजों से भाजपा के कैडर की मजबूती का पता चलता है। यह पता चलता है कि वे हर मतदाता तक पहुंच बनाने में कितना ज्यादा सक्षम हैं।
3. मतदाताओं ने मंडल 2.0 और कास्ट सर्वे के मसले को खारिज किया
राज्य विधानसभा चुनावों से पहले कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और सीनियर नेता राहुल गांधी ने जातिगत सर्वे को बड़ा चुनावी मसला बनाने की पूरी कोशिश की थी। विपक्ष को यह लगता था कि भाजपा के हिंदुत्व के नारे से मुकाबले करने में जातिगत सर्वे का मसला उनकी मदद कर सकता है। उन्हें लगता था कि उन्हें अन्य पिछड़े वर्गों का वोट हासिल करना आसान हो जाएगा। लेकिन, जातिगत सर्वे को चुनावी मसला बनाने की कोशिश का कोई फायदा कांग्रेस को नहीं मिला।
4. आदिवासी मतदाताओं के बीच पैठ
अगर 4 राज्यों के चुनावों में कोई एक चीज कॉमन दिखी तो वह थी आदिवासी मतदाताओं के बीच भाजपा की अपील। छत्तीसगढ़ में भाजपा आदिवासियों के लिए रिजर्व 29 में से 18 सीटों पर आगे दिखी। मध्य प्रदेश में 47 सीटों में से 27 पर आगे दिखी, बकि राजस्थान में 25 में से 11 सीटों पर आगे दिखी। इन तीनों राज्यों में आदिवासियों के इस समर्थन को बदलते ट्रेंड के रूप में देखा जा सकता है। पिछले बार के चुनावों में आदिवासियों मतदाताओं ने कांग्रेस का साथ दिया था।
5. कांग्रेस के पक्ष में मुस्लिम वोटर्स की एकजुटता
तेलंगाना के चुनावी नतीजों से कांग्रेस के पक्ष में मुस्लिम वोटर्स की एकजुटता का संकेत मिलता है। मुस्लिम वोटरों का बीआरएस की जगह कांग्रेस का समर्थन करना हमें कर्नाटक पैटर्न की याद दिलाता है। वहां बड़ी संख्या में मुस्लिम मतदाताओं ने जेडीएस का दामन थोड़ा कांग्रेस का साथ दिया था। मुस्लिम बहुल 39 सीटों में से सिर्फ 18 सीटों में बीआरएस जीत हासिल कर सकी है। असदुद्दीन ओवैसी की एएमआईएएम जैसी पार्टी भी अपनी 7 सीटों में से सिर्फ 3 बचा पाई है।
6. तेलंगाना में कांग्रेस की जीत राजनीति में उत्तर-दक्षिण विभाजन जारी रहने का संकेत
तेलंगाना में कांग्रेस की जीत उस पार्टी को फिर से समर्थन का प्रतीक है, जो 2014 में तेलंगाना के गठन के बाद से कमजोर पड़ गई थी। इस साल की शुरुआत में कांग्रेस ने कर्नाटक में जीत हासिल की थी। अब तेलंगाना में मिली जीत से दक्षिण का दूसरा राज्य भी कांग्रेस की झोली में आ गया है। अब यह जाहिर हो गया है कि राजनीति के मामले में भाजपा जहां उत्तर में नंबर वन है वही कांग्रेस दक्षिणी राज्यों में मजबूत होती दिख रही है।
7. महिला मतदाताओं ने बदला खेल
इन विधानसभा चुनावों को महिला मतदाताओं की सक्रियता के लिए याद रखा जाएगा। उदाहरण के लिए मध्य प्रदेश में इस बार 2 फीसदी ज्यादा महिला वोटर्स ने मतदान किया। लाडली बहना योजना महिलाओं का दिल जीतने में सफल रही। इस स्कीम में पैसा सीधे महिलाओं के बैंक अकाउंट में जाता है। 2014 के बाद से ही भाजपा की जीत में महिला मतदाताओं की खास भूमिका रही है।
यह साफ है कि 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले भाजपा ने चुनावी मैदान के लिहाज से अपनी स्थिति मजबूत कर ली है। सेमी-फाइनल माने जाने वाले चुनावों में अपने दमदार प्रदर्शन से कई सवालों के जवाब दे दिए है। इसी तरह इंडिया अलायंस से जुड़े कई सवालों के जवाब भी ये चुनावी नतीजे देते हैं।