मतदान के आंकड़ों से चुनाव में वोटरों की भागीदारी के बारे में पता चलता है। हालांकि, यह संभावित नतीजों के बारे में कुछ नहीं बताता है। हाल में खत्म हुए विधानसभा चुनावों में चार राज्यों में मतदान का प्रतिशत काफी बेहतर रहा है। इससे साफ है कि वोटरों ने इन चुनावों में काफी दिलचस्पी दिखाई है। तेलंगाना में मतदान प्रतिशत 2018 के मुकाबले कम रहा। हालांकि, हमारी राय में इससे चुनावी नतीजों के बारे में कोई संकेत नहीं मिलता है।
पारंपरिक तौर पर माना जाता है कि मतदान प्रतिशत ज्यादा रहने पर सत्ता में बदलाव की संभावना होती है, जबकि अगर वोटिंग कम होती है, तो इससे यह संकेत मिलते हैं कि मौजूदा सत्ताधारी पार्टी ही अगली बार सत्ता में आएगी। हालांकि, प्रमाण न तो लोकसभा चुनाव और न ही विधानसभा चुनावों में इस बात की तस्दीक करते हैं।
मतदान प्रतिशत और सत्ता-विरोधी माहौल
अब तक हुए कुल 17 लोकसभा चुनावों में से 7 चुनाव में मतदान प्रतिशत में बढ़ोतरी हुई है। इनमें से तीन बार केंद्र सरकार फिर से चुनी गई, जबकि चार बार मौजूदा सरकार सत्ता से बाहर हो गई। सात लोकसभा चुनावों में मतदान प्रतिशत में गिरावट रही और इनमें से 4 बार सरकार को हार का सामना करना पड़ा, जबकि तीन बार केंद्र सरकार फिर से सत्ता में आई। इन आंकड़ों से साफ है कि मतदान प्रतिशत का चुनाव नतीजों से सीधे तौर पर कोई संबंध नहीं है।
छत्तीसगढ़ में इस बार 76.3 प्रतिशत मतदान हुआ, जबकि 2018 के विधानसभा चुनावों में मतदान प्रतिशत 76.4 पर्सेंट रहा था। 2008 के विधानसभा चुनाव में मतदान प्रतिशत में पिछली बार के मुकाबले 0.8 पर्सेंट की बढ़ोतरी हुई थी, लेकिन बीजेपी फिर से सत्ता हासिल करने में सफल रही थी। वहीं, 2018 में मतदान प्रतिशत अपेक्षाकृत कम रहने के बावजूद बीजेपी चुनाव हार गई थी।
मध्य प्रदेश में 10 विधानसभा चुनावों के दौरान मतदान प्रतिशत में बढ़ोतरी रही है। इन 10 चुनावों में से 6 बार मौजूदा सरकार फिर से सत्ता में लौटी, जबकि 4 बार सत्ताधारी पार्टी चुनाव हार गई। मौजूदा विधानसभा चुनाव में वोटिंग 77.6 प्रतिशत रही है, जो 2018 के मुकाबले तकरीबन 2 प्रतिशत ज्यादा है। राजस्थान में इस बार 74.6 प्रतिशत मतदान हुआ है, जबकि 2018 के विधानसभा चुनाव में 74.7 प्रतिशत वोटिंग हुई थी। हालांकि, राजस्थान में लंबे समय से सत्ता परिवर्तन का ट्रेंड बना हुआ है।
तेलंगाना में इस बार 70 प्रतिशत वोटिंग हुई, जबकि 2018 के विधानसभा चुनाव के दौरान मतदान 73.4 प्रतिशत रहा था। हालांकि, राज्य में सिर्फ दो बार ही विधानसभा चुनाव हुए हैं, लिहाजा हम इसका विश्लेषण छोड़ सकते हैं। हालांकि, ऊपर दिए गए बाकी आंकड़ों से क्या यह कहा जा सकता है कि ज्यादा मतदान प्रतिशत वोटरों के मौजूदा सत्ता विरोधी रवैये की तरफ इशारा करता है और कम वोटिंग प्रतिशत मौजूदा सरकार के समर्थन का संकेत है? निश्चित तौर पर ऐसा नहीं है।
मुस्लिम, आदिवासी और दलितों की ज्यादा आबादी वाली सीटों के मतदान प्रतिशत को लेकर भी काफी चर्चा रही है। जब इन सीटों में मतदान प्रतिशत ज्यादा रहता है, तो इसे धार्मिक जातीय आधार गोलबंदी के संकेत के तौर पर देखा जाता है। हालांकि, सीटों के आधार पर विश्लेषण में पता चला है कि गोलबंदी को लेकर यह बात सच नहीं है। राजस्थान की 50 विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जहां मुसलमान मतदाता 10 पर्सेंट से ज्यादा हैं। इस बार ऐसी 18 विधानसभा सीटों के मतदान प्रतिशत में बढ़ोतरी हुई, जबकि बाकी 32 सीटों पर मतदान प्रतिशत कम हुआ।