राम मंदिर का मुद्दा ही BJP को फिर दिलाएगा जीत? मोदी-शाह की नई गुगली से दुविधा में कांग्रेस
Assembly Elections 2023: केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कमलनाथ के छिंदवाड़ा में राम मंदिर उद्घाटन का मुद्दा उठाकर अपनी मंशा का ऐलान कर दिया है। अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम के लिए बीजेपी हर गांवों से 25 लोगों का जत्था भेजने की तैयारी है। यह संकेत है कि राम मंदिर का मुद्दा एक बार फिर से आम चुनाव के दौरान केंद्र में रहेगा
Assembly Elections 2023: बीजेपी 2024 के चुनावों से पहले राम मंदिर के मुद्दे को केंद्र में लाने की तैयारी में है
Assembly Elections 2023: केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) को क्रिकेट का खेल काफी पंसद है। राजनीति की पिच पर भी उन्हें ऐसी कई खतरनाक गेंदें फेंकने के लिए जाना जाता है, जिसपर विपक्ष यह सोचने के लिए मजबूर हो जाता है कि इस गेंद को छोड़ना है या खेलना है। इस बार भी उन्होंने मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में चुनाव प्रचार के दौरान राम मंदिर के मुद्दे को प्रमुखता से उठाकर विपक्ष के सामने ऐसी ही गुगली फेंकी है। इस बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 22 जनवरी को राम मंदिर में मूर्ति की 'प्राण प्रतिष्ठा' में भाग लेने का ऐलान कर इस मुद्दे को नए तरीके से चुनावी राजनीति में ला दिया है।
बीजेपी चुनावी राज्यों में लोगों को याद दिला रही है कि कांग्रेस कभी 'राम मंदिर वहीं बनाएंगे, पर तारीख नहीं बताएंगे' के नारे के साथ उनका मजाक उड़ा रही थी। इसी को ध्यान में रखते हुए अब बीजेपी अयोध्या में मंदिर के उद्घाटन की तारीख का जोर-शोर से ऐलान कर रही है।
अमित शाह ने कमलनाथ के गढ़ में उठाया मुद्दा
अमित शाह ने पिछले हफ्ते में मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में एक बड़ी रैली की। छिंदवाड़ा को कमलनाथ का गढ़ माना जाता है, जो कांग्रेस की ओर से मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री पद के दावेदार है। पिछले कुछ समय में छिंदवाड़ा में काफी धार्मिक कथा-कार्यक्रम हुए हैं, जिसका श्रेय कमलनाथ को जाता है। कमलनाथ ने चुनाव की तारीखों के ऐलान से ठीक पहले बाबा बागेश्वर की मेजबानी करते हुए छिंदवाड़ा में "हनुमान कथा" कराई थी। कमलनाथ खुद को 'हनुमान भक्त' भी बताते रहे हैं।
हालांकि मौजूदा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी कमलनाथ की चाल पर तुरंत ध्यान दिया और उन्होंने भी बाबा बागेश्वर को भगवान राम के इर्द-गिर्द इसी तर्ज पर बड़े पैमाने पर आध्यात्मिक सभाएं आयोजित करने को कहा।
इस बीच शाह ने छिंदवाड़ा में राम मंदिर का मुद्दा उठाकर कांग्रेस पर सीधा हमला बोला। शाह ने मतदाताओं को याद दिलाया कि कांग्रेस हमेशा से राम मंदिर के निर्माण को अटकाने, लटकाने, भटकाने में लगी रही है। शाह की रणनीति का एक अहम हिस्सा कांग्रेस के नेताओं को उकसाना भी रहा है, जिससे वे जल्दबाजी में बिना सोचे-समझे बयान और प्रतिक्रियाएं दें, जिसे जनता के बीच ले जाकर भुनाया जा सके।
राम मंदिर का मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ पर प्रभाव
1990 के दशक में बीजेपी की जबरदस्त सफलता का श्रेय राम मंदिर के मुद्दे को दिया जाता है। बीजेपी अच्छी तरह जानती है कि पार्टी ने 1990 में मध्य प्रदेश में केवल राम मंदिर के मुद्दे पर सत्ता हासिल की थी। यही बात राजस्थान पर भी लागू होती है जहां पार्टी 1990 में सत्ता में आई थी। छत्तीसगढ़ 1990 में मध्य प्रदेश का हिस्सा था और वहां भी यही स्थिति थी। इस तरह तीनों चुनावी राज्यों का राम मंदिर के मुद्दे से पुराना संबंध है।
1990 में बीजेपी ने मध्य प्रदेश में 46.5 प्रतिशत वोट हासिल कर कुल 269 विधानसभा सीटों में से 220 सीटों पर भारी जीत हासिल की थी। तब सुंदरलाल पटवा की अगुआई में पार्टी की सरकार बनी थी। वहीं कांग्रेस को उस चुनाव में 33 प्रतिशत वोटों के साथ सिर्फ 56 सीटों पर जीत मिली थीं।
राजस्थान में 1990 के विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस और जनता दल के साथ त्रिकोणीय मुकाबले में बीजेपी ने पहली बार सत्ता हासिल की थी, जिसके बाद भैरों सिंह शेखावत मुख्यमंत्री बने थे। भाजपा तब 85 विधानसभा सीटें जीतकर सत्ता में आई थी। इस तरह तीन चुनावी राज्य बीजेपी की राजनीतिक प्रयोगशालाएं रहे हैं, जिसमें राम मंदिर का मुद्दा लोगों के साथ इसके जुड़ाव के मूल में है।
बीजेपी साफ तौर पर 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले राम मंदिर के मुद्दे को केंद्र में लाने की तैयारी में दिख रही है। विधानसभा चुनावों का इस्तेमाल इसी मुद्दे को जमीन तक पहुंचाने में इस्तेमाल किया जा सकता है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) और विश्व हिंदू परिषद (विहिप) जैसे उसके सहयोगी संगठनों ने जमीन तैयार करना शुरू भी कर दिया है। भगवा संगठनों ने हाल ही में देश भर में उन लोगों को सम्मानित किया, जिन्होंने राम जन्मभूमि आंदोलन में भाग लिया था। दुर्गा पूजा समारोह में कई जगहों पर राम मंदिर की थीम जोर-शोर से बज रही थी।
22 जनवरी को होने वाले अभिषेक से पहले देश भर के सभी गांवों से लोगों को अयोध्या ले जाने के लिए जुटाया है। पार्टी की प्रत्येक गांव से 25 लोगों का जत्था भेजने की तैयारी है।
RSS सरसंघचालक मोहन भागवत ने विजयादशमी के अपने भाषण में कहा है कि चूंकि 22 जनवरी को हर कोई अयोध्या में नहीं हो सकता है, इसलिए पूरे देश में कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। उनकी योजना सभी शहरों, ब्लॉक और गांवों में मौजूदा मंदिरों में उस दिन भव्य कार्यक्रम कराना है।
हिंदुत्व के ध्वजवाहक के रूप में मोदी
बीजेपी मतदाताओं को साफ संदेश दे रही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी न केवल आधारशिला रख रहे हैं, बल्कि उन्होंने इस उद्घटान के साथ मंदिर के निर्माण का सपना देख रहे करोड़ों लोगों की अकाक्षाएं पूरी करने में भी अहम भूमिका निभाई है। बीजेपी कुछ समय से बहुत चालाकी से मोदी को मंदिरों के पुनर्विकास और कायाकल्प और उन्हें भव्य बनाने के साधन के रूप में पेश कर रही है।
इसी तरह वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर, उज्जैन में महाकाल मंदिर, उत्तराखंड में केदारनाथ मंदिर और गुजरात के सोमनाथ मंदिर में सुविधाओं के विस्तार के पुनर्विकास का श्रेय भी मोदी को दिया जा रहा है।
ब्रांड मोदी और मंदिर की राजनीति के साथ, बीजेपी को उम्मीद है कि इससे हिंदू वोटों का एकीकरण होगा, जो जाति जनगणना की मांग और जातिगत पहचान-आधारित राजनीति को फिर से जीवित करने की विपक्षी नेताओं के प्रयासों को मंद कर सकता है।
दुविधा में कांग्रेस
कांग्रेस पार्टी ने चुनावी राज्यों में राम मंदिर के बड़े-बड़े होर्डिंग लगाने के लिए बीजेपी के खिलाफ चुनाव आयोग का रुख किया है। इन होर्डिंग्स में मोदी की तस्वीर प्रमुखता से प्रदर्शित की गई है। बीजेपी का मानना है कि कांग्रेस ने यह कदम उठाकर अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार ली है।
बीजेपी इस राम मंदिर मुद्दे को बढ़ाकर उन पार्टी कार्यकर्ताओं के मनोबल को बढ़ाने में जुटी है, जो टिकट वितरण के बाद पार्टी में हुई सार्वजनिक गुटबाजी के कारण थोड़ा गिर गया था। कांग्रेस निश्चित रूप से हर गांव से 25 लोगों को अयोध्या ले जाने जैसी बीजेपी की जमीनी रणनीति का मुकाबला करने की स्थिति में नहीं होगी। तीर्थयात्रियों के जाने और वापस आने से उनके गांवों में बीजेपी की माउथ-पब्लिसिटी होगी।
मनीकंट्रोल के लिए यह लेख मनीष आनंद ने लिखा है। वे दिल्ली स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं, और इस प्रकाशन के रुख का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं।