Assembly Polls 2023: एग्जिट पोल पर क्यों उठ रहे हैं सवाल? जानें वह 7 कारण जिनकी वजह से लोग बता रहे कॉमेडी

Assembly Polls 2023: राजस्थान में 10 में से 7 सर्वे एजेंसियां बीजेपी की जीत की भविष्यवाणी कर रही हैं। जबकि मध्य प्रदेश में 10 एजेंसियों में से पांच का फैसला बंटा हुआ है, जिनमें से प्रत्येक में बीजेपी और कांग्रेस को जीत या बढ़त मिल रही है। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की जीत को लेकर 9 एजेंसियों के बीच आम सहमति दिख रही है। तेलंगाना में 7 एजेंसियों ने दावा किया है कि BRS को हराकर कांग्रेस बड़ा उलटफेर करेगी

अपडेटेड Dec 01, 2023 पर 2:31 PM
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Assembly Polls 2023: पांच राज्यों में चुनाव 7 नवंबर से 30 नवंबर के बीच हुए थे। मतगणना 3 दिसंबर को होगी

Assembly Elections 2023: देश के पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के लिए मतदान के बाद आए ज्यादातर एग्जिट पोल (Exit Polls) यानी चुनाव बाद सर्वेक्षण में मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (BJP) को आगे बताया गया है। जबकि राजस्थान में कांटे का मुकाबला देखने को मिल सकता है। वहीं, तेलंगाना और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को बढ़त मिलने का अनुमान जताया गया है। मध्य प्रदेश (230 सीटें) में BJP सत्ता में है, जबकि कांग्रेस राजस्थान (200) और छत्तीसगढ़ (90) में सत्ता में है। वहीं, तेलंगाना में के. चंद्रशेखर राव (KCR) के नेतृत्व वाली भारत राष्ट्र समिति (BRS) 10 साल से सत्ता में है और मिजोरम में MNF सरकार में है। पांच राज्यों में चुनाव 7 नवंबर से 30 नवंबर के बीच हुए थे। मतगणना 3 दिसंबर को होगी।

विरोधाभासी आंकड़ों से उठ रहे सवाल

तमाम सर्वे एजेंसियों ने विरोधाभासी आंकड़े दिए हैं। एक्सिस माई इंडिया और सीवोटर ने मध्य प्रदेश, राजस्थान और मिजोरम में बिल्कुल विपरीत भविष्यवाणी की है। इंडिया टुडे-एक्सिस माई इंडिया, टुडेज चाणक्य और इंडिया टीवी-सीएनएक्स ने मध्य प्रदेश में बीजेपी की बड़ी जीत की भविष्यवाणी की है। जबकि ज्यादातर एग्जिट पोल में राजस्थान में कांटे की टक्कर के साथ बीजेपी को बढ़त मिलने का अनुमान जताया गया है।


वही, तीन एग्जिट पोल ने अपनी ऊपरी सीमा में इस रेगिस्तानी राज्य में कांग्रेस की जीत का अनुमान लगाया गया है। एग्जिट पोल से यह भी संकेत मिल रहा है कि मिजोरम में त्रिशंकु विधानसभा हो क्योंकि जोरम पीपुल्स मूवमेंट (ZPM) और सत्तारूढ़ मिजो नेशनल फ्रंट (MNF) के बीच कांटे की टक्कर हुई है। पूर्वोत्तर के इस राज्य में कांग्रेस और बीजेपी को पीछे दिखाया गया।

एजेंसियों के अलग-अलग दावें

राजस्थान में 10 में से 7 सर्वे एजेंसियां बीजेपी की जीत की भविष्यवाणी कर रही हैं। जबकि मध्य प्रदेश में 10 एजेंसियों में से पांच का फैसला बंटा हुआ है, जिनमें से प्रत्येक में बीजेपी और कांग्रेस को जीत या बढ़त मिल रही है। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की जीत को लेकर 9 एजेंसियों के बीच आम सहमति दिख रही है। तेलंगाना में 7 एजेंसियों ने दावा किया है कि BRS को हराकर कांग्रेस बड़ा उलटफेर करेगी।

मिजोरम में फैसला खंडित है। दो एजेंसियां त्रिशंकु सदन की भविष्यवाणी कर रही हैं। जबकि दो-दो एजेंसियां एमएनएफ और जेडपीएम की जीत की भविष्यवाणी कर रही हैं। इसके अलावा कई एजेंसियां राजस्थान में बीजेपी के लिए एक्सिस माई इंडिया 80-100, मध्य प्रदेश में कांग्रेस के लिए सी-वोटर 113-137 जैसी बड़ी रेंज देती हैं।

एग्जिट पोल क्यों गलत साबित हो सकते हैं?

1. लोगों की राय पर सवाल

एग्जिट पोल के आंकड़ें मतदाताओं के व्यक्तिगत इंटरव्यू पर आधारित होते हैं। एजेंसियों के मुताबिक, वोटिंग के बाद जब मतदान पोलिंग बूथ से बाहर निकलते हैं तो उनसे राय ली जाती है। लेकिन एजेंसियों के इस फॉर्मूले पर सवाल उठ रहे हैं, क्योंकि कई लोग जानबूझकर झूठ बोल सकते हैं। इसके अलावा गरीब, अल्पसंख्यक और हाशिए पर रहने वाले लोग सच बोलने से डरते हैं। चूंकि एग्जिट पोल ज्यादातर बूथों के बाहर किए जाते हैं। इसलिए जहां तमाम पार्टी के वर्कर मौजूत होते हैं, वहां लोग कितना सही जवाब देंगे?

2. कड़ा मुकाबला

एग्जिट पोल में आम तौर पर 1-3 प्रतिशत मतदाता ही हिस्सा लेते हैं। इस बार के एग्जिट पोल में हर राज्य में कांटे की टक्कर देखी जा रही है। 2018 में राजस्थान और एमपी में वोट शेयर का अंतर 1 फीसदी से भी कम था।

3. ठोस रिसर्च का अभाव

कम लागत और उचित रिसर्च एग्जिट पोल्स के डेटा कलेक्शन पर सवाल उठ रहे हैं। दरअसल, चैनलों का बजट काफी सीमित होता है जिसका असर गुणवत्ता पर पड़ सकता है। हर चुनावी सीजन में कई नई सर्वे एजेंसियां सामने आती हैं, लेकिन उनके प्रमोटर्स की पृष्ठभूमि के बारे में अधिक जानकारी नहीं होती है। उनके पास ठोस रिसर्च का अभाव हो सकता है।

4. मानवीय त्रुटियां

सैंपल में अभी भी कई मानवीय त्रुटियां है। अक्सर फील्ड में शहरी बूथों के मतदाताओं से राय ली जाती है। अगर चुनावी सर्वे एजेंसियां ग्रामीण इलाकों के पोलिंक बुथ पर जाकर लोगों की राय जानने की कोशिश करती तो इनकी विश्वसनीयता पर सवाल कम उठते।

5. ऐतिहासिक डेटा पर निर्भरता

भारत में विविधता, जनसंख्या वृद्धि, पहली बार मतदाताओं की संख्या और मतदान केंद्र कवरेज में ऐतिहासिक चुनाव डेटा यूरोप, अमेरिका या आस्ट्रेलिया की तुलना में बहुत कम विश्वसनीय है, जिससे चुनाव एक्सपर्ट के लिए जटिलता बढ़ गई है।

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6. जाति/सामाजिक आर्थिक डेटा की अनुपलब्धता

किसी भी निर्वाचन क्षेत्र का सटीक जाति डेटा उपलब्ध नहीं है, क्योंकि आखिरी जाति जनगणना 1934 में की गई थी। मतदाताओं के सामाजिक आर्थिक वर्ग-वार डेटा, आय स्तर भी उपलब्ध नहीं हैं, जो सर्वे एजेंसियों के लिए चुनौतियां पैदा करते हैं।

7. महिला सैंपल की कमी

पिछले कुछ वर्षों में महिला मतदाता किंगमेकर बनकर उभरी हैं। अधिकांश सर्वेक्षणों में महिलाओं का सैंपल आकार 25-30% है, जबकि जनसंख्या में उनकी हिस्सेदारी 50 प्रतिशत के करीब है। पांच में से तीन राज्यों में महिला मतदाता पुरुषों से ज्यादा संख्या में हैं। फिलहाल, 3 दिसंबर का इंतजार करिए। उस दिन पता चल जाएगा कि इस बार कौन सा सर्वेक्षणकर्ता सही साबित हुआ है।

Akhilesh

Akhilesh

First Published: Dec 01, 2023 2:23 PM

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