Assembly Election 2023: क्या छोटे दल हिंदी बेल्ट में BJP, कांग्रेस का बिगाड़ सकते हैं गणित?

Assembly Elections 2023: इन राज्यों में छोटी पार्टियों के महत्व को भी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। इन तीन राज्यों में बहुजन समाज पार्टी (BSP) और समाजवादी पार्टी (SP) के सपोर्ट बेस में गिरावट देखने के बावजूद निर्दलीय समेत छोटे दल दो कट्टर प्रतिद्वंद्वियों की चुनावी गणना को बिगाड़ने की क्षमता रखते हैं। किसी को यह नहीं भूलना चाहिए कि जिन विधानसभा क्षेत्रों में BJP और कांग्रेस के बीच कड़ा मुकाबला है, वहां ये छोटी पार्टियां किसी न किसी का खेल बिगाड़ सकती हैं

अपडेटेड Nov 16, 2023 पर 4:03 PM
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Assembly Election 2023: क्या छोटे दल हिंदी बेल्ट में BJP, कांग्रेस का बिगाड़ सकते हैं गणित?

लेख: संजय कुमार

Assembly Elections 2023: तीन हिंदी भाषी राज्यों मध्य प्रदेश (MP), छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) और राजस्थान (Rajasthan) के चुनावों की चर्चा में केवल भारतीय जनता पार्टी (BJP) और कांग्रेस (Congress) के बीच टक्कर की है। ये सही भी है, क्योंकि मुकाबला वास्तव में इन्हीं दोनों पार्टियों के बीच है। लेकिन इन राज्यों में छोटी पार्टियों के महत्व को भी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। इन तीन राज्यों में बहुजन समाज पार्टी (BSP) और समाजवादी पार्टी (SP) के सपोर्ट बेस में गिरावट देखने के बावजूद निर्दलीय समेत छोटे दल दो कट्टर प्रतिद्वंद्वियों की चुनावी गणना को बिगाड़ने की क्षमता रखते हैं।

किसी को यह नहीं भूलना चाहिए कि जिन विधानसभा क्षेत्रों में BJP और कांग्रेस के बीच कड़ा मुकाबला है, वहां ये छोटी पार्टियां किसी न किसी का खेल बिगाड़ सकती हैं।


छोटी पार्टियों का ट्रैक रिकॉर्ड

मध्य प्रदेश में, BSP को 2003 के चुनावों के दौरान 7.2 प्रतिशत, 2008 में 8.9 प्रतिशत, 2013 में 6.2 प्रतिशत और 2018 के विधानसभा चुनावों में 5 प्रतिशत वोट मिले। राजस्थान में भी इसका वोट शेयर 2008 के विधानसभा चुनावों के दौरान 7.6 प्रतिशत से घटकर 2018 के विधानसभा चुनावों के दौरान 4 प्रतिशत हो गया।

कहानी छत्तीसगढ़ में भी वैसी ही है, जहां 2008 के विधानसभा चुनावों के दौरान इसका वोट शेयर 6.1 प्रतिशत से घटकर 2018 के विधानसभा चुनावों के दौरान 3.8 प्रतिशत हो गया।

BSP की तरह दूसरी छोटी पार्टियों का भी पतन हो गया। या तो उन पार्टियों के वोट शेयर में गिरावट देखी गई है या स्थिर बनी हुई है।

मध्य प्रदेश में, 2003 के विधानसभा चुनाव के दौरान SP का वोट शेयर 3.7 प्रतिशत से घटकर 2018 के विधानसभा चुनाव के दौरान 1.3 प्रतिशत हो गया। पिछले कुछ दशकों में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी का वोट शेयर छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश दोनों में कमोबेश स्थिर रहा है।

मध्य प्रदेश में GGP को 2013 को छोड़कर ज्यादातर चुनावों में 2 प्रतिशत से भी कम वोट मिले हैं, जब उसका वोट शेयर घटकर सिर्फ एक प्रतिशत रह गया था। छत्तीसगढ़ में 2003 के बाद से हुए सभी चुनावों में उसे हमेशा दो प्रतिशत से भी कम वोट मिले हैं।

कुछ पार्टियां ऐसी हैं, जिन्होंने अचानक हैरान कर दिया है, जैसे 2013 के विधानसभा चुनावों के दौरान NPP को राजस्थान में 4.3 प्रतिशत वोट मिले और JCC (J) को छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव 2018 में 7.6 प्रतिशत वोट मिले।

हालांकि, इन छोटे दलों की मौजूदगी मामूली रही है, लेकिन करीबी मुकाबले वाले चुनावों में वे BJP या कांग्रेस के सपोर्ट बेस में सेंध लगाकर अंतर पैदा कर सकते हैं।

एमपी, राजस्थान में SP, BSP का असर

MP में कांटे की टक्कर की संभावना में SP अहम फैक्टर हो सकती है। MP में SP ने 71 विधानसभा क्षेत्रों में अपने उम्मीदवार उतारे हैं। SP के सपोर्ट बेस में गिरावट आ रही है, लेकिन इसके बावजूद SP मध्य प्रदेश में बिजावर विधानसभा सीट जीतने में कामयाब रही और बाकी 11 निर्वाचन क्षेत्रों में चुनावी मुकाबले में अहम भूमिका निभाई, जहां उसका वोट शेयर जीत के अंतर से ज्यादा था।

इन 11 विधानसभा क्षेत्रों में से, बीजेपी ने 8 सीटें जीतीं, कांग्रेस ने दो सीटें जीतीं, जबकि पथरिया विधानसभा क्षेत्र में BSP ने जीत हासिल की। अगर SP ने उम्मीदवार नहीं उतारे होते, तो 2018 में कांग्रेस का प्रदर्शन काफी बेहतर होता।

BSP ने 58 विधानसभा क्षेत्रों में भी अहम भूमिका निभाई, जिनमें से उसने दो सीटें, भिंड और पथरिया जीतीं, और बाकी 56 विधानसभा क्षेत्रों में जीत के अंतर से ज्यादा वोट हासिल किए, जिनमें से 28 बीजेपी ने और 27 सीटें कांग्रेस ने जीतीं।

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हालांकि, BSP की उपस्थिति ने SP के उलट किसी खास पार्टी का पक्ष नहीं लिया, लेकिन ये ध्यान दिया जाना चाहिए कि उसने निश्चित रूप से 58 विधानसभा क्षेत्रों में अपनी मौजूदगी दर्ज कराई।

2018 में BSP के संबंध में राजस्थान की कहानी मध्य प्रदेश से बहुत अलग नहीं थी। BSP ने छह विधानसभा सीटें जीतीं और उसका वोट शेयर 32 विधानसभा सीटों पर जीत के अंतर से ज्यादा था, जिसने बीजेपी और कांग्रेस की संभावनाओं को प्रभावित किया।

इन 32 विधानसभा सीटों में से बीजेपी ने 11 सीटें जीतीं, कांग्रेस ने 18 सीटें जीतीं और तीन सीटें निर्दलीयों ने जीतीं। असल में 2018 में राजस्थान में BSP की मौजूदगी से किसी तरह कांग्रेस को मदद मिली, क्योंकि वो बड़ी संख्या में सीमांत सीटें जीतने में सफल रही।

छत्तीसगढ़ में BSP

2018 में छत्तीसगढ़ में एक स्विंग चुनाव था और कांग्रेस ने बड़ी जीत दर्ज की थी, इसलिए चुनाव के फैसले पर BSP का असर कुछ ज्यादा नहीं दिखा। बसपा ने दो विधानसभा सीटें जैजैपुर और पामगढ़ जीती थीं, लेकिन उसे सात विधानसभा क्षेत्रों में जीत के अंतर से अधिक वोट मिले, जिनमें से भाजपा ने चार और कांग्रेस ने तीन सीटें जीतीं।

कोई भी ये देख सकता है कि BSP ने चुनावी नतीजों को न तो कांग्रेस और न ही BJP के लिए प्रतिकूल या अनुकूल रूप से प्रभावित किया। लेकिन 2013 के छत्तीसगढ़ चुनाव में BSP की अहम भूमिका को नहीं भूलना चाहिए।

उसने केवल पामगढ़ विधानसभा सीटों पर जीत हासिल की, लेकिन 16 विधानसभा सीटों पर उसे जीत के अंतर से ज्यादा वोट मिले, जिनमें से 11 सीटें बीजेपी ने जीतीं, जबकि कांग्रेस ने इनमें से केवल 5 सीटें जीतीं।

इस तरह BSP की मौजूदगी ने 2013 में छत्तीसगढ़ में करीबी चुनावी मुकाबले में बीजेपी की मदद की। 2008 के विधानसभा चुनावों के दौरान, BSP ने पामगढ़ और अकलतरा विधानसभा सीटें जीतीं, लेकिन 30 विधानसभा सीटों पर उसे जीत के अंतर से ज्यादा वोट मिले, जिनमें से 17 बीजेपी ने और 13 कांग्रेस ने जीतीं।

फिर से एक संकेत है कि 2008 के विधानसभा चुनाव के दौरान बसपा की मौजूदगी से बीजेपी को मदद मिली थी, क्योंकि बसपा और कांग्रेस का सपोर्ट बेस ओवरलैप होता दिख रहा है।

छोटी पार्टियों ने कैसा प्रदर्शन किया इसकी कहानी नतीजे आने के बाद ही पता चलेगी, लेकिन ये देखते हुए कि उन्होंने अतीत में चुनावी नतीजों को कैसे प्रभावित किया, उन पर बारीकी से नजर डालने की जरूरत है।

संजय कुमार सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (CSDC) में प्रोफेसर हैं। वह एक राजनीतिक विश्लेषक भी हैं। ये विचार उनके व्यक्तिगत हैं, और Moneycontrol Hindi वेबसाइट या मैनेजमैंट का इससे कोई संबंध नहीं है।

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